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________________ सर्व दुःखों से मुक्ति ५३ सर्व दुःखों से मुक्ति प्रश्नकर्ता : लोग तो ऐसा कहते है कि धर्म ही चाहिये और संसार को छोड देना चाहिये। यह सब है क्या? पीना चाहिये। मगर सच्ची बात समझकर करनी चाहिये। मगर सच्ची बात क्या है, वो तो समझनी चाहिये न? एक आदमी ने brandy पीया तो वो नाज-नखरे करता है न? ऐसे ये भी सब नाज-नखरे है। और अगर brandy नहीं पीये तो कोई परेशानी नहीं रहती है। ऐसी बात समझ गये तो brandy के जैसी कोई परेशानी नहीं रहती है। सच्ची बात तो समझनी चाहिये न? ऐसी झूठी बात कहाँ तक चलेगी? दादाश्री : नहीं, धर्म बिना संसार ही नहीं। पहला धर्म चाहिये। किस चीज को धर्म बोलती हो? आपके भाई के साथ आप धर्म रखोगी या अधर्म रखोगी? भाई को गाली देगी? प्रश्नकर्ता : ये life भौतिक है और भौतिकवाद में कुछ tension होना जरूरी है। tension के बिना तो कुछ नया हो नहीं सकता, कुछ प्राप्ति नहीं कर सकते। दादाश्री : आप क्या नया करेंगे? क्या नया आविष्कार करेंगे? नयी दुनिया बनायेंगे? जो आविष्कार करते है, उसको tension रहता ही नहीं। जो महेनत करता है, उसको ही tension रहता है। मैं सारी दुनिया में फिरता हूँ मगर मेरे को बिलकुल tension नहीं है। प्रश्नकर्ता : आपकी stage तो अलग है। दादाश्री : नहीं, मगर वो realise हो गया तो क्या होता है कि सब संसार का tension नहीं रहता और संसार में सबको बहुत अच्छा प्रेम, सच्चा प्रेम मिलता है। अभी तो आपके पास प्रेम नहीं है, आसक्ति है. इसीलिए तो थोडे थोडे time पर गुस्सा हो जाते हो। ये क्या रीत है? सच्चा प्रेम होना चाहिये। गुस्सा कभी भी नहीं होना चाहिये। व्यवहार के हिसाबी संबंध में समाधान कैसे? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : क्योंकि गाली देना अधर्म है और गाली नहीं देना, मेरा भाई अच्छा है, ऐसा कहना वो धर्म है। वो धर्म तो होना ही चाहिये। संसार को व्यवहार बोला जाता है। हम व्यवहार में आदर्श रहते है और सारा दिन धर्म में ही रहते है। हम किसी को गाली नहीं देते, किसी का बुरा नहीं करते। हमको कोई पत्थर मारे तो भी हम गाली नहीं देते और आपको कोई पथ्थर मारे, तो आप क्या करोगी? प्रश्नकर्ता : मैं भी पथ्थर लेकर मारूँगी। दादाश्री : हमको कोई पथ्थर मारे तो हम गाली नहीं देते और खुदा को बोलते है कि इसको सद् बुद्धि दो। दो नुकसान नहीं होने चाहिये। एक तो पथ्थर लग गया, फिर गाली देकर दूसरा नुकसान क्युं करे! प्रश्नकर्ता : पहला नुकसान physical और दूसरा spritiual! दादाश्री : हाँ, जेब काट ली तो पाँच हजार तो गये फिर उसके साथ झगडा क्युं करें? झगडा करने से दोनों नुकसान होते है। एक तो नुकसान हो गया और फिर दूसरा झगडा किया। उससे नींद भी नहीं आयेगी। उसको आशीर्वाद दे दिया तो अपने को नींद आयेगी। ये बात पसंद आयी आपको?! और शादी करेगी, फिर हसबन्ड के साथ कैसे रहेगी? प्रश्नकर्ता : यह संसार है, उसमें हम घर में रहते है, मोटर- बंगले है, इन सबमें रहते हुए भी, हम धर्म कर सके ऐसा हो सकता है क्या? दादाश्री : वो धर्म के बिना तो संसार चलता ही नहीं। पहला धर्म चाहिये और संसार उसके साथ रहना चाहिये। प्रश्नकर्ता : धर्म के साथ।
SR No.009601
Book TitleSarva Dukho Se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size94 KB
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