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________________ ६४ हमारे प्रेम से ही जीते हैं। निरंतर दादा, दादा, दादा! खाने का नहीं मिले तो कोई हर्ज नहीं। यानी प्रेम ऐसी वस्तु है यह। अब इस प्रेम से ही सब पाप उसके भस्मीभूत हो जाते हैं। नहीं तो कलियुग के पाप क्या धोनेवाले थे वे?! फिर भी रहा फर्क चौदस-पूनम में मतलब जगत् में कभी भी देखा न हो, वैसा प्रेम उत्पन्न हुआ है। क्योंकि प्रेम उत्पन्न हुआ था, पर उस जगह वीतराग हो गए थे। जहाँ प्रेम उत्पन्न हो वैसी जगह थी, वे संपूर्ण वीतराग थे। इसलिए वहाँ प्रेम दिखता नहीं था। हम कच्चे रह गए, इसलिए प्रेम रहा और संपूर्ण वीतरागता नहीं आई। ही कहलाता है और हमारा प्रेम लोगों को दिखता है। पर वह सच्चा प्रेम नहीं कहलाता। एक्जेक्टली जिसे प्रेम कहा जाता है न, वह नहीं कहलाता। एक्जेक्टली तो संपूर्ण वीतरागता हो तब सच्चा प्रेम और हमारा तो चौदस कहलाता है, पूनम नहीं है!! प्रश्नकर्ता : यानी पूनमवाले को इससे भी अधिक प्रेम होता है? दादाश्री : उस पूनमवाले का ही सच्चा प्रेम! इन चौदसवाले में किसी जगह पर कमी होती है। इसलिए पूनमवाले का ही सच्चा प्रेम। प्रश्नकर्ता : संपूर्ण वीतरागता हो और प्रेम बगैर का हो, ऐसा तो होता ही नहीं न? दादाश्री : प्रेम बगैर तो होता ही नहीं है न वह ! प्रश्नकर्ता : यानी दादा, चौदस और पूनम में इतना फर्क पड़ जाता है, इतना अधिक फर्क ऐसा? दादाश्री : बहुत फर्क ! वह तो अपने लोगों को पूनम जैसा लगता है पर बहुत फर्क है! हमारे हाथ में कुछ है भी क्या तो?! और उनके, तीर्थकरों के हाथ में तो सभी कुछ है। हमारे हाथ में क्या है? फिर भी हमें संतोष रहता है पूनम जितना! हमारी शक्ति, खुद के लिए शक्ति इतनी काम कर रही होती है कि पूनम हमें हो गया हो ऐसा लगता है !! 'ज्ञानी', बंधे 'प्रेम से प्रश्नकर्ता : अब यह ज्ञान लेने के बाद दो-तीन भव बाकी रहे तो उतने समय तो संपूर्ण करुणा-सहायता करने के लिए तो आप बंधे हुए प्रश्नकर्ता : आपने कहा है कि हम प्रेमस्वरूप हो गए पर तब संपूर्ण वीतरागता उत्पन्न नहीं हुई। वह ज़रा समझना था। दादाश्री: प्रेम मतलब क्या? किंचित मात्र किसीकी तरफ सहज भी भाव बिगड़े नहीं, उसका नाम प्रेम। यानी संपूर्ण वीतरागता उसका नाम ही प्रेम कहलाता है। प्रश्नकर्ता : तो प्रेम का स्थान कहाँ आया? यहाँ कौन-सी स्थिति में प्रेम कहलाएगा? दादाश्री : प्रेम तो, जितना वीतराग हुआ उतना प्रेम उत्पन्न हुआ। संपर्ण वीतराग और संपूर्ण प्रेम! इसलिए वीतद्वेष तो आप सब हो ही गए हो। अब वीतराग धीरे-धीरे होते जाओ हर एक चीज़ में, वैसे प्रेम उत्पन्न होता जाएगा। प्रश्नकर्ता : तह यहाँ आपने कहा था कि हमारा प्रेम कहलाता है, वीतरागता नहीं आई, वह क्या है? दादाश्री : वीतरागता मतलब यह हमारा प्रेम है, तो ऐसे प्रेम दिखता है और इन वीतरागों का प्रेम ऐसे दिखता नहीं है। पर सच्चा प्रेम तो उनका दादाश्री : बंधे हुए हैं मतलब ही कि हम प्रेम से बंधे हुए हैं। तो आप जब तक प्रेम रखोगे तब तक बंधे हुए हैं। आपका प्रेम छूटा कि हम छूटे। हम प्रेम से बंधे हुए हैं। आपका संसार के प्रति प्रेम झुक गया तो अलग हो जाओगे और आत्मा के प्रति प्रेम रहा तो बंधे हुए हैं। कैसा लगता
SR No.009600
Book TitlePrem
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size232 KB
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