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________________ इन 'दादा' का निदिध्यासन करें न तो उनमें जो गुण हैं न, वे उत्पन्न होते हैं अपने में। दूसरा यह कि जगत् की किसी भी वस्तु की स्पृहा नहीं करनी। भौतिक चीज़ की स्पृहा नहीं करनी है। आत्मसुख की ही वांछना, दूसरी किसी चीज़ की वांछना ही नहीं और कोई हमें गालियाँ दे गया हो, उसके साथ भी प्रेम! इतना हो कि काम हो गया फिर । 'ज्ञानी', बेजोड़ प्रेमावतार प्रश्नकर्ता : कईबार ऐसा होता है कि सोए हुए हों और फिर अर्धजागृत अवस्था होती है और 'दादा' अंदर बिराज जाते हैं, 'दादा' का शुरू हो जाता है, वह क्या है? दादाश्री : हाँ, शुरू हो जाता है। ऐसा है न, 'दादा' सूक्ष्म भाव से पूरे वर्ल्ड में घूमते रहते हैं। मैं स्थूल भाव से यहाँ हूँ और दादा सूक्ष्मभाव से पूरे वर्ल्ड में घूमते रहते हैं। सब जगह ध्यान रखते हैं और ऐसा नहीं कि दूसरों के साथ कोई भांजगड़ है। इसलिए बहुत लोगों को ख्वाब में आया ही करते हैं अपने आप ही, और कुछ तो दिन में भी 'दादा' के साथ बातचीत करते हैं। वे मुझे कहते भी हैं कि, 'मेरे साथ दादा, आप इस तरह बातचीत करके गए!' दिन में खुली आँखों से उसे दादा कहें और वह सुनता है और वह लिख लेता है वापिस । आठ बजे लिख लेता है कि इतना बोले हैं। वह मुझे पढ़ा भी जाते हैं वापिस। इसलिए यह सब हुआ ही करता है। फिर भी इसमें चमत्कार जैसी वस्तु नहीं है। यह स्वभाविक है। कोई भी मनुष्य की आवरण रहित स्थिति होती है और थोड़ा कुछ केवलज्ञान को अंतराय करे है उतना आवरण रहा हो और जगत् में जिसकी मिसाल न मिले, वैसा प्रेम उत्पन्न हुआ हो, जिसकी मिसाल न हो वैसा प्रेमावतार हो गया हो, वहाँ सबकुछ ही होता अहंकार का अंदर उसका एबज़ोर्ब करता है या नहीं करता? करता है। इसलिए उसमें संपूर्ण नि:स्पृह होते नहीं है। अहंकार जाए उसके बाद सारा सच्चा प्रेम होता है। इसलिए ये प्रेमावतार है। वह जहाँ किसीको कुछ भी सहज मन उलझ गया हो, वहाँ खुद आकर हाज़िर! प्रेम, सभी पर सरीखा यह प्रेम तो ईश्वरीय प्रेम है। ऐसा सब जगह होता नहीं न! यह तो किसी जगह पर ऐसा हो तो हो जाता है, नहीं तो होता नहीं न! अभी शरीर से मोटा दिखे उस पर भी प्रेम, गोरा दिखे उस पर भी प्रेम, काला दिखे है उस पर भी प्रेम, लूला-लंगड़ा दिखे उस पर भी प्रेम, अच्छे अंगोवाला मनुष्य दिखे उस पर भी प्रेम। सब जगह सरीखा प्रेम दिखता है। क्योंकि उनके आत्मा को ही देखते हैं। दूसरी वस्तु देखते ही नहीं। जैसे इस संसार में लोग मनुष्य के कपड़े नहीं देखते, उसके गुण कैसे हैं वह देखते हैं, उसी तरह 'ज्ञानी पुरुष' इस पुद्गल को नहीं देखते। पुद्गल तो किसीका अधिक होता है किसीका कम होता है, कोई ठिकाना ही नहीं न! और ऐसा प्रेम हो वहाँ बालक भी बैठे रहते हैं। अनपढ़ बैठे रहते हैं, पढ़े-लिखे बैठे रहते हैं, बुद्धिशाली बैठे रहते हैं, सभी लोग समा जाते हैं। बालक तो उठते नहीं। क्योंकि वातावरण इतना अधिक सुंदर होता है। ऐसा प्रेमस्वरूप 'ज्ञानी' का यानी प्रेम तो 'ज्ञानी पुरुष' का ही देखने जैसा है ! आज पचास हज़ार लोग बैठे हैं, पर कोई भी व्यक्ति थोड़ा भी प्रेम रहित हुआ नहीं होग। उस प्रेम से जी रहे हैं सभी। प्रश्नकर्ता : वह तो बहुत मुश्किल है। दादाश्री : पर हममें वैसा प्रेम प्रकट हुआ है तो कितने ही लोग अब निस्पृह प्रेम होता है, पर वह अहंकारी पुरुष को होता है। यानी
SR No.009600
Book TitlePrem
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size232 KB
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