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________________ प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण २४. आजीवन बहाव में बहते को तारे ज्ञान प्रश्नकर्ता : याद करके पिछले दोषों को देख सकते हैं? दादाश्री : पिछले दोष वास्तव में उपयोग से ही नजर आयेंगे, याद करने से नहीं नजर आयेंगे। याद करने में तो सिर खुजलाना पड़ेगा। आवरण आये इसलिए याद करना पड़े न? किसी के साथ झंझट हुई हो तो उसका प्रतिक्रमण करने पर वह व्यक्ति (चित्त में) हाजिर हो जाये। वह उपयोग ही रखने का है, हमारे मार्ग में याद करने का तो है ही नहीं। याद करना तो 'मेमरी' (स्मृति)के अधीन है। जो याद आता है वह प्रतिक्रमण करवाने के लिए आता है, शुद्ध करवाने के लिए। 'इस संसार की कोई भी विनाशी चीज़ मुझे नहीं चाहिए' ऐसा आपने तय किया है न? फिर भी याद क्यों आता है? इसलिए प्रतिक्रमण कीजिए। प्रतिक्रमण करने पर फिर से याद आने पर हम समझें कि यह अभी फरियाद है! इसलिए फिर से प्रतिक्रमण ही करने का। याद राग-द्वेष की वजह से है। यदि याद नहीं आता तो उलझी गुत्थी भूल जाते। आपको क्यों कोई फोरेनर्स (विदेशी) याद नहीं आते? और मरे हुए याद आते है? यह हिसाब है और वह राग-द्वेष की वजह से है। उसका प्रतिक्रमण करने से चोंट मिट जाती है। इच्छाएँ होती हैं वह प्रत्याख्यान नहीं हुए इसलिए। याद आता है वह प्रतिक्रमण नहीं किये इसलिए। प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण मालिकीभाव का होता है न? दादाश्री : मालिकीभाव का प्रत्याख्यान होता है और दोषों का प्रतिक्रमण होता है। प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण करने पर भी बार-बार वह गुनाह याद आये तो उसके माने, उसमें से अभी मुक्त नहीं हुए हैं क्या? दादाश्री : यह प्याज की एक परत निकल जाये तो दूसरी परत अपने आप आ कर खड़ी रहेगी, ऐसी कई परतोंवाले गुनाह है, इसलिए एक प्रतिक्रमण करने पर एक परत हटेगी ऐसा करतें करतें, सौ प्रतिक्रमण करने पर वह खतम होगा। कुछ दोषों के पाँच प्रतिक्रमण करें, तब वे खतम होंगे, कुछ के दस और कुछ के सौ होंगे। उसकी जितनी परतें हो उतने प्रतिक्रमण होंगे। लम्बा चले उतना लम्बा गुनाह होगा। प्रश्नकर्ता : याद आये उसका प्रतिक्रमण करना और इच्छा हो उसका प्रत्याख्यान करना, यह जरा समझाइए। दादाश्री : याद आने पर समझना कि यहाँ पर ज्यादा चिकना है, इसलिए वहाँ प्रतिक्रमण करते रहने से वह सब छूट जायेगा। प्रश्नकर्ता : वह जितनी बार याद आये उतनी बार करना? दादाश्री: हाँ, उतनी बार करना। हम करने का भाव रखें। ऐसा है न, याद आने के लिए समय तो चाहिए न! तो इसका समय मिलने पर, रात को कुछ याद नहीं आते होंगे? प्रश्नकर्ता : वह तो कोई संयोग होने पर। दादाश्री : हाँ, संयोगो को लेकर। प्रश्नकर्ता : और इच्छाएँ हो तो? दादाश्री : इच्छा होनी माने स्थूल वृत्तियाँ होना। पहले हमने जो भाव किये हो वे भाव अब फिर से प्रकट होते हैं, तो वहाँ पर प्रत्याख्यान करना। प्रश्नकर्ता : उस समय 'दादाजी' ने कहा है कि यह वस्तु अब नहीं होनी चाहिए। हर वक्त ऐसा कहा करें। दादाश्री : यह वस्तु मेरी नहीं है, उसे समर्पित करता हूँ। अज्ञानतावश मैंने इन सभी को बुलायी थीं। पर आज यह मेरी नहीं है, इसलिए समर्पित करता हूँ। मन-वचन-काया से समर्पित करता हूँ। अब मुझे कुछ नहीं चाहिए। यह सुख मैंने अज्ञानदशा में बुलाया था, किंतु आज यह सुख मेरा नहीं है, इसलिए समर्पित करता हूँ।
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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