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________________ प्रतिक्रमण ७२ प्रतिक्रमण समय पर विधि करना भूल जायें और बाद में याद आये तो बाद में प्रतिक्रमण करें। 'डिस्चार्ज में' जो अतिक्रमण हुए हैं उसके हम प्रतिक्रमण करते हैं। सामनेवाले को दुःख पहुँचाये ऐसे 'डिस्चार्ज' के प्रतिक्रमण करने हैं। यहाँ महात्माओं का अथवा दादाजी का कुछ भला किया हो उसके प्रतिक्रमण नहीं करने होंगे लेकिन बाहर किसी और का भला किया हो तो उसका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा क्योंकि स्व-उपयोग चूकने पर उसका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण करने पर सामनेवाले को पहुँचेगा? दादाश्री : सामनेवाले को पहुँचे, नरम होता जाये। उसे मालूम हो या न हो, लेकिन उसका हमारे प्रति भाव नरम होता जाये। हमारे प्रतिक्रमण तो बहुत असरकारी है। यदि एक घंटा प्रामाणिक रूप से हुए हो तो सामनेवाले में परिवर्तन आ जाता है। हम जिसका प्रतिक्रमण करें वह हमारे दोष तो नहीं देखेगा पर हमारे लिए उसको सम्मान उत्पन्न होगा। प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण करें तो नया 'चार्ज' नहीं करतें? दादाश्री : आत्मा कर्ता होने पर कर्म बंधेगा। प्रतिक्रमण आत्मा नहीं करता है। चन्दुभाई करें और आप उसके ज्ञाता-दृष्टा रहें। निजस्वरूप की प्राप्ति के पश्चात् सच्चे प्रतिक्रमण होंगे। प्रतिक्रमण करनेवाला चाहिए, प्रतिक्रमण करानेवाला चाहिए। हमारा प्रतिक्रमण माने क्या? कि गड़ारी खोलते समय जितने टूकड़े हो उसे जोड़कर स्वच्छ कर डालें वह हमारा प्रतिक्रमण है। प्रश्नकर्ता : नींद में से जागते ही प्रतिक्रमण शुरू होते हैं। दादाश्री : यह 'प्रतिक्रमण आत्मा' हुआ। शुद्धात्मा तो है पर यह प्रतिष्ठित आत्मा वह 'प्रतिक्रमण आत्मा' हो गया। लोगों को कषायी आत्मा है। इस संसार में कोई एक भी प्रतिक्रमण कर सके ऐसा नहीं है। जैसे जैसे नक़द प्रतिक्रमण होता जाये वैसे वैसे शुद्ध होता जाये। अतिक्रमण के सामने हम प्रतिक्रमण नक़द करें, अत: मन-वाणी शुद्ध होते जायें। प्रतिक्रमण माने बीज भुनकर बोना। आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान माने प्रतिदिन का लेखा-जोखा निकालना। जितने दोष दिखाई पड़े उतना कमाये। उतने प्रतिक्रमण करना। प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण न हो वह प्रकृति दोष है या वह अंतराय कर्म है? दादाश्री : वह प्रकृति दोष है और वह प्रकृति दोष हर जगह नहीं होता। कुछ जगह दोष होगा और कुछ जगह नहीं होगा। प्रकृति दोष में प्रतिक्रमण नहीं हो, तो उसमें हर्ज नहीं है। हमें तो यही देखना है कि हमारा भाव क्या है? दूसरा कुछ हमें नहीं देखना है। आपकी इच्छा प्रतिक्रमण करने की है न? प्रश्नकर्ता : हाँ, पूर्णतया। दादाश्री : फिर भी प्रतिक्रमण नहीं होता, तो वह प्रकृति दोष है। प्रकृति दोष में आप जिम्मेदार नहीं है। कभी-कभी प्रकृति आवाज उठायेगी और कभी नहीं भी उठाये। यह तो बाजा कहलाये, बजेगा तो बजेगा, वरना नहीं भी बजता। इसे अंतराय नहीं कहते। प्रश्नकर्ता : 'समभाव से निपटारा' करने का दृढ निश्चय होने पर भी झगड़ा खड़ा रहता है, ऐसा क्यों? दादाश्री : कितनी जगह ऐसा होता है? सौएक जगह? प्रश्नकर्ता : एक ही जगह होता है। दादाश्री : तो वह निकाचित कर्म है। वह निकाचित कर्म कैसे
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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