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________________ ८० पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार मनभेद से क्या होता है? मनभेद होने पर 'डिवोर्स' (तलाक़) ले लेते हैं और तनभेद हो तब अर्थी निकलती है ! प्रश्नकर्ता : व्यवहारिक मामलों में मतभेद हो वह विचारभेद कहलाता है या मतभेद कहलाता है? पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार प्रश्नकर्ता : पति को हेबिट (आदत) हो गई हो, तब क्या करें? दादाश्री : करना क्या? क्या उसे निकाल देंगे? निकालें तो फजीहत होगी बाहर! इसलिए ढककर रखना, और क्या कर सकते हैं तब! गटर को ढकते हैं या खोलते हैं? ये गटरों का ढक्कन बंद रखना होता है या खुला रखना होता है? प्रश्नकर्ता : बंद रखने पड़ते हैं। दादाश्री : वर्ना खोलने पर बू आएगी, हमारा सिर घूम जाए। प्रश्नकर्ता : अमरीका की बहुत-सी औरतें हमें पूछती हैं कि तुम लोग यहाँ टीका क्यों लगाती हो? दादाश्री : हाँ, टीका इसलिए कि हम आर्य स्त्रियाँ हैं न इसलिए। हम अनार्य नहीं हैं। आर्य स्त्रियाँ टीकेवाली होती हैं। अर्थात् पति से चाहे कितना भी झगड़ा हो, फिर भी वह घर छोड़कर जाती नहीं और बिना टीकेवाली तो दूसरे दिन ही चली जाए। और यह तो स्टेडी (स्थिर) रहती है, टीकेवाली। यहाँ (कपाल में दो भकटी के बीच भीतर) सक्ष्म मन का स्थान होता है, वह एक पति में मन एकाग्र रहे इसलिए। प्रश्नकर्ता : स्त्रियों को क्या करना चाहिए? पुरुष का तो आपने बताया, मगर स्त्रियाँ दोनों आँखो में क्या रखें? दादाश्री : स्त्रियों को तो, उन्हें चाहे जैसा पति मिला हो, वह अपने हिसाब का है। पति मिलना वह कोई गप नहीं। इसलिए जो पति मिला उसके प्रति एक पतिव्रता बनने का प्रयत्न करना। और अगर ऐसा नहीं हो सके तब उसकी फिर क्षमापना करो। पर तेरी दृष्टि ऐसी होनी चाहिए। और पति के साथ पार्टनरशिप (साझेदारी) में कैसे आगे बढ़ सकते हैं, अपनी उर्ध्वगति हो, किस प्रकार मोक्ष प्राप्त हो, ऐसे विचार करो! परिणाम, तलाक़ के मतभेद पसंद हैं? मतभेद हों तो झगड़े होते हैं, चिंता होती है, तब दादाश्री : वह मतभेद कहलाता है। यह ज्ञान लिया हो तो उसे विचारभेद हुआ कहलाए। वर्ना फिर मतभेद कहलाए। मतभेद से तो झटका लगता है! प्रश्नकर्ता : मतभेद कम रहें तो वह अच्छा है न? दादाश्री : मनुष्य को मतभेद होना ही नहीं चाहिए। यदि मतभेद है तब वह मानवता ही नहीं कहलाती। क्योंकि मतभेद में से कभी कभी मनभेद हो जाता है। मतभेद से मनभेद हो जाए तो 'तू ऐसी है और तू अपने घर चली जा' ऐसा कहने लगता है। इसमें फिर मजा नहीं रहता। जैसे-तैसे निभा लेना। प्रश्नकर्ता : अभी तो अंतिम मतभेद तक पहुँच गया है। दादाश्री : यही कहता हूँ न, यह सब अच्छा नहीं लगता। बाहर अच्छा नहीं दिखता। इसका कोई अर्थ नहीं है। अभी भी सुधार सकते हैं। हम मनुष्य हैं, इसलिए सुधार सकते हैं। किस लिए ऐसा होना चाहिए। मुए फ़जीहत किया करते हैं? कुछ समझना तो पड़ेगा न? समझे आप? इन सभी में सुपरफ्लुअस (ऊपर-ऊपर का) रहने का है, तब यहाँ तो स्त्री के पति (स्वामी) बन बैठे हैं, कुछ लोग तो! अरे! स्वामित्व क्यों जताता है? यह तो यहाँ जीया तब तक स्वामी और कल डिवोर्स (तलाक़) न ले, तब तक स्वामी। कल बीवी डिवॉर्स ले, तब तू किसका स्वामी? प्रश्नकर्ता : आजकल सभी डिवॉर्स लेते हैं, तलाक़ लेते हैं, तब छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर तलाक़ लेते हैं तो उनकी हाय नहीं लगती? दादाश्री : लगती है न मगर वह करे क्या? वास्तव में तलाक़ नहीं
SR No.009598
Book TitlePati Patni Ka Divya Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size43 KB
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