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________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार १९ बाद में वही दाग़ तुझ पर लगेगा, मुए। ये कर्म भुगतने होंगे। वह तो मन में समझता है कि अब कहाँ जानेवाली है ?! ऐसा नहीं बोलना चाहिए। अगर ऐसा बोलते हों तो वह भूल ही कहलाएगी। सभी ने थोड़े बहुत ताने तो दिये होंगे कि नहीं? प्रश्नकर्ता: हाँ, दिये थे। सभी ने दिये हैं, उनमें अपवाद नहीं । कम-ज्यादा हो पर अपवाद नहीं होगा। दादाश्री : ऐसा है सब । अब इन सबको सयाने बनाने हैं। बोलिए अब। ये किस प्रकार सयाने होंगे? देखो फ़जीहत, फ़जीहत! मुँह जैसे एरंडी का तेल पिया हो ऐसा हो गया हो ! मजेदार दूधपाक और अच्छी-अच्छी रसोई खाएँ फिर भी मुँह एरंडी का तेल पिया हो, ऐसा लगता है। एरंडी का तेल तो महँगा हो गया है, कहाँ से लाकर पियें? यह तो यूँ ही, एरंडी का तेल पिया हो ऐसा मुँह लिए फिरता है ! प्रश्नकर्ता : घर में मतभेद दूर करने के लिए क्या करें? दादाश्री : पहले मतभेद क्यों होता है, इसका पता लगाओ। कभी ऐसा मतभेद होता है कि, एक लड़का और एक लड़की है, दोनों लड़के क्यों नहीं, ऐसा मतभेद होता है ? प्रश्नकर्ता: नहीं, वैसे छोटी-छोटी बातों में मतभेद होता है। दादाश्री : अरे, वह तो इगोइज़म (अहंकार) है। इसलिए वह कहे कि 'ऐसा है', तब कहना, 'आपकी बात ठीक है।' फिर कुछ नहीं होगा। लेकिन हम फिर अपनी अक्ल बीच में लाते हैं। अक्ल से अक्ल लड़ती है, इसलिए मतभेद होता है। प्रश्नकर्ता : 'आपकी बात ठीक है' ऐसा मुँह से बोलने के लिए क्या करना चाहिए? ऐसा बोल नहीं पाते, वह अहम् कैसे दूर करें ? दादाश्री : ऐसा बोल नहीं पाते, सत्य कहते हो। इसके लिए थोड़े दिन प्रेक्टिस करनी होगी। यह जो में करता हूँ वह उपाय करने के लिए पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार २० थोड़े दिन प्रेक्टिस करो न! फिर वह फिट हो जाएगा, एकदम से नहीं होगा। प्रश्नकर्ता : मतभेद क्यों होते हैं? इसकी वजह क्या ? दादाश्री : मतभेद हुआ अर्थात् वह समझती है कि मैं अक्लमंद और यह समझता है मैं अक्लमंद हूँ। अक्ल के ठेकेदार आए ! बेचने जाएँ तो चार आने भी नहीं आएँ! इसके बजाय हम सयाने हो जाएँ, उसकी अक्ल को हम देखा करें कि अहोहो... कैसी अक्लमंद है ! तब वह ठंडी हो जाएगी। पर हम भी अक्लमंद और वह भी अक्लवाली, अक्ल ही जहाँ लड़ने लगे वहाँ क्या हो? तुम्हें मतभेद ज्यादा होता है कि उन्हें ज्यादा होता है? प्रश्नकर्ता: उन्हें ज्यादा होता है। दादाश्री : मतभेद यानी क्या? मतभेद का अर्थ तुम्हें समझाता हूँ। यह रस्सा-कशी का खेल होता है न, देखा है तुमने ? प्रश्नकर्ता: हाँ। दादाश्री : दो-चार आदमी इस ओर खींचते हैं और दो-चार आदमी उस ओर खींचते हैं। मतभेद अर्थात् रस्साकशी। इसलिए हमें देखना है कि घर में बीवी बहुत ज़ोर से खींच रही है और हम भी ज़ोर से खींचेंगे तब फिर क्या होगा ? प्रश्नकर्ता टूट जाएगा। दादाश्री : और टूट जाने पर गाँठ लगानी पड़ती है। तब गाँठ लगाकर चलाना पड़ता है, इससे तो साबुत रखें, उसमें क्या हर्ज है? इसलिए जब वह बहुत खींचे न, तब हमें छोड़ देना है। प्रश्नकर्ता: दो में से छोड़े कौन? दादाश्री समझदार, जिसमें अक्ल ज्यादा है वह छोड़ दे और
SR No.009598
Book TitlePati Patni Ka Divya Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size43 KB
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