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________________ पैसों का व्यवहार ५२ पैसों का व्यवहार कहते कि, 'भाई, पाँच सौ पूरे माँगता हो तो पाँच सौ पूरे लौटा दे वरना तू छूटेगा नहीं।' हम ऐसा कहना चाहते हैं कि, उसका निपटारा करना, पचास देकर भी तू निपटारा करना। और उसे पूछ लें कि, 'तू खुश है न?' और वह कहे कि, 'हाँ मैं खुश हूँ', अर्थात् हो गया निपटारा। जहाँ-जहाँ आपने राग-द्वेष किये हों, वे राग-द्वेष आपको वापस मिलेंगे। जैसे भी हो सारा हिसाब (ऋणानुबंध का हिसाब) चुकता करना। हिसाब चुकता करने के लिए यह अवतार है। जन्म से लेकर मृत्यु तक सब (कर्तव्य के अधीन) अनिवार्य है। एक लेनदार एक आदमी को सता रहा था, वह आदमी मुझे कहने लगा कि, 'यह लेनदार मुझे बहुत गालियाँ सुना रहा था। मैंने कहा, 'वह आये तब मुझे बुला लेना।' फिर उस लेनदार के आने पर, मैं उस आदमी के घर पहुँचा। मैं बाहर बैठा, भीतर वह लेनदार उसे (आदमी को) कह रहा था, 'आप ऐसी नालायकी करते हैं? यह तो बदमाशी कहलाये।' ऐसावैसा करके बहुत गालियाँ देने लगा, तब मैंने अंदर जाकर कहा, 'आप लेनदार है न?' तब कहे, 'हाँ'। मैंने उसे कहा, "देखिये, मैंने देने का ऐग्रीमेन्ट (करार) किया है और आपने लेने का ऐग्रीमेन्ट किया है। और आप जो ये गालियाँ देते हो, वे 'एकस्टा आइटम' (विशेष वस्त) है, उसका पेमेंट करना होगा। गालियाँ देने की शर्त करार में नहीं रखी है, प्रत्येक गाली के चालीस रुपये कट जायेंगे। विनय के बाहर बोले तो वह 'एकस्ट्रा आइटम' हुई कहलाये, क्योंकि आप करार से बाहर चले हैं।" ऐसा कहने पर वह जरूर सीधा हो जाये और दोबारा ऐसी गालियाँ नहीं निकालें। किसी व्यक्ति ने आपको ढाई सौ रुपये नहीं लौटाये और आपके ढाई सौ रुपये गये, उसमें भूल किसकी? आप ही की न? भगते उसकी भूल। इस ज्ञान से धर्म होगा, इसलिए सामनेवाले पर आरोप लगाना, कषाय होना, सब छूट जायेगा। अर्थात् 'भुगते उसकी भूल।' यह मोक्ष में ले जायें ऐसा है। एक्झेक्ट है ! 'भुगते उसकी भूल।' प्रश्नकर्ता : यह ज्ञान उत्पन्न हुआ उससे पहले आपकी भूमिका बहुतेक तैयार हो गई होगी न? दादाश्री : भूमिका यानी मुझे कुछ आता नहीं था। नहीं आने की वजह से ही तो मैट्रिक में नापास होकर पड़े रहे। मेरी भूमिका में चारित्र्यबल ऊँचा था इतना मैंने देखा था, फिर भी चोरियाँ की थी। खेतों में बेर आदि होते तब लड़कों के साथ जायें। तब पेड़ किसी का और आम हम लें वह चोरी नहीं कहलाये? बचपन में सब लडके आम खाने जाये तब हम भी साथ में जाते। मैं खाता जरूर पर घर पर नहीं ले जाता। दूसरे, जब से धंधा करता हूँ तब से मैंने अपने लिए धंधे के संबंध में विचार ही नहीं किया। हमारा धंधा चलता हो वैसे चलता रहे। पर आपसे मिलने पर सब से पहले पूछूगा कि आपका कैसे चल रहा है? आपको क्या तकलीफ है? अर्थात् आपका समाधान करूँ, बाद में यह भाई आये तब उनसे पूछू कि आपका कैसे चल रहा है? अर्थात् लोगों की अडचनों में ही पड़ा था। सारी जिन्दगी मैंने यही धंधा किया था, और कोई धंधा ही नहीं किया कभी। फिर भी धंधे में हम ज्यादा माहिर। किसी मुद्दे पर कोई चार महीने से उलझता हो तो उसे मैं एक दिन में सुलझा दूँ। क्योंकि किसी का भी दुःख मुझ से देखा नहीं जाता। किसी को नौकरी नहीं मिलती हो तब सिफ़ारिशनामा लिख दूँ। ऐसा-वैसा करके हल निकाल दूं। मैं धंधा करता था, उसमें हमारे हिस्सेदार के साथ एक नियम बना रखा था, कि अगर मैं नौकरी करता होऊँ तब वहाँ मुझे जितने पैसे मिलें उतने ही घर भेजना। उससे ज्यादा नहीं भेजना। इसलिए वे पैसे बिलकुल खरे होंगे। दूसरे पैसे वहीं धंधे में ही रहें, पीढ़ी में। तब वह मुझ से पूछे, 'फिर उसका क्या करना?' मैंने कहा, 'इन्कम टैक्सवाला कहे, डेढ़ लाख भरपाई कीजिए। तब वे पैसे दादा के नाम से भरपाई कर देना। मुझे खत मत लिखना।'
SR No.009597
Book TitlePaiso Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size302 KB
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