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________________ पैसों का व्यवहार ४९ दादाश्री : हाँ, रोक पाये उसे। यदि उसे यह ज्ञान प्राप्त हुआ हो कि बुरे विचार आने पर उसका पश्चाताप करें, और कहे कि, 'यह गलत है, ऐसा नहीं होना चाहिए।' इस तरह रोक पाये। बुरे विचार जो आते हैं। वह मूलतः गत ज्ञान के आधार पर आते हैं, पर आज का ज्ञान उसे ऐसा कहे कि यह (बुरा) करने जैसा नहीं है। तब फिर वह उसे (बुरे कार्य को) रोक सकता है। आया समझ में? कुछ खुलासा हुआ? नीयत बिगड़ना अर्थात् पाँच लाख रुपयों के लिए बिगाड़ना ऐसा नहीं। यह तो पच्चीस रुपयों के लिए भी नीयत बिगाड़े! अर्थात् इसमें (इस द्रष्टांत में), भूगतने की इच्छा से कोई लेना-देना नहीं है। उसे ऐसे प्रकार का ज्ञान प्राप्त हुआ है कि 'देने में क्या रखा है? देने के बजाय हम ही यहाँ इस्तमाल कर लें। जो होगा देखा जायेगा।' ऐसा उलटा ज्ञान मिला है उसे । इसलिए हम सभी से कहे कि, भाई चाहे उतने धंधे कीजिए, घाटा आये तो हर्ज नहीं, पर मन में एक भाव तय करना कि मुझे सभी को पैसे लौटाने हैं। क्योंकि पैसा किसको प्यारा नहीं होगा? सब को प्यारा लगे। इसलिए, उसका पैसा डूब जाये ऐसा भाव हमारे मन में पैदा नहीं होना चाहिए। चाहे कुछ भी हो पर मुझे लोटाना है, ऐसा डिसीझन पहले से रखना ही चाहिए। यह बहुत बड़ी चीज़ है। किसी और में नादारी निकली हो तो चलेगा पर पैसे में नादारी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि पैसा तो दुःखदायी है, पैसे को तो ग्यारहवाँ प्राण कहा है। इसलिए किसी के भी पैसे डूबो नहीं सकते। वह सबसे बड़ी वस्तु । प्रश्नकर्ता : मनुष्य कर्ज़ छोड़कर मर जाये तो क्या होगा ? दादाश्री : चाहे कर्ज़ अदा किये बिना मर जाये, पर उसके मन में आखिर तक मरते दम तक, एक बात तय होनी चाहिए कि मुझे यह पैसे लौटाने ही है। इस अवतार में संभव न हो तब अगले अवतार में भी मुझे अवश्य लौटाने है। जिसका ऐसा भाव है, उसे कोई कष्ट नहीं होगा । पैसों का व्यवहार नियम ऐसा है कि पैसे लेते समय ही वह तय कर ले कि इसके पैसे मुझे लौटाने है। फिर उसके बाद हर चौथे दिन उसे याद करके 'यह पैसे जल्दी से जल्दी लौटा दूँ' ऐसी भावना करे। ऐसी भावना होने पर रुपये लौटा सके, वरना राम तेरी माया । ५० हमने किसी से रुपये उधार लिए हों और हमारा भाव शुद्ध रहे तब समझना कि ये पैसे हम लौटा पायेंगे। फिर उसके लिए चिंता मत करना । भाव शुद्ध रहता है कि नहीं, उतना ही ध्यान रहे, यह उसका लेवल (नाप) है। सामनेवाला भाव शुद्ध रखता है या नहीं, उस पर से हम जान जायें। उसका भाव शुद्ध नहीं रहता हो तो वहीं से हमें समझ लेना चाहिए कि ये पैसे जानेवाले हैं। भाव शुद्ध होना ही चाहिए। भाव याने, अपने नीतिमत्ता से आप क्या करे? तब कहें कि, 'यदि उतने रुपये होते तो सारे आज ही लौटा देता!' इसका नाम शुद्ध भाव भाव में तो यही होगा कि जल्दी से जल्दी कैसे लौटा दूँ। प्रश्नकर्ता: दिवाला निकाले और फिर पैसे नहीं लौटाये तो फिर क्या दूसरे अवतार में चुकाने होंगे? दादाश्री : उसे फिर पैसों का संयोग प्राप्त ही नहीं होगा। उसके पास पैसा आयेगा ही नहीं। हमारा कानून क्या कहता है कि रुपये लौटाने संबंधी आपका भाव बिगड़ना नहीं चाहिए, तो एक दिन आपके पास रुपया आयेगा और कर्ज चुकता होगा। किसी के पास चाहे कितने भी रुपये हों पर आखिर में रुपया कुछ साथ में नहीं आता। इसलिए काम निकाल लीजिए (अपने स्वरूप को पहचान कर मोक्ष मार्ग प्राप्त कर लीजिए) । अब फिर मोक्षमार्ग मिलेगा नहीं। इकासी हजार साल तक मोक्षमार्ग हाथ लगनेवाला नहीं है। यह आखिरी 'स्टेन्ड' (मुकाम) है, अब आगे 'स्टेन्ड' नहीं है (आगे बहुत बुरा वक्त आनेवाला है ) । पैसों का या फिर और किसी संसारी चीज़ का कर्ज़ नहीं होता, राग-द्वेष का कर्ज़ होता है। पैसों का कर्ज़ होता तो हम ऐसा कभी नहीं
SR No.009597
Book TitlePaiso Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size302 KB
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