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________________ पाप-पुण्य २३ २४ पाप-पुण्य ही धर्म में रहे तो। पर यदि खुद भीतर दखल करने गया तो बिगड़ा। कुदरत में हाथ डालने गया कि बिगड़ा। लक्ष्मी आती है पर कुछ मिलता नहीं है। रेन्क, पुण्यशालियों की..... ये बड़े-बड़े चक्रवर्ती राजा थे, उन्हें यह दिन है या रात है, उसकी खबर नहीं रहती थी। उन्होंने सूर्यनारायण भी नहीं देखे हों, फिर भी बड़ा राज्य सँभालते थे। क्योंकि पुण्य काम करता है। प्रश्नकर्ता : शालिभद्र सेठ को देवी-देवता ऊपर से सोने के सिक्कों की पेटियाँ देते थे, तो क्या वह सच है? नहीं होता। थोड़ी भी मेहनत, कुछ तो चाहिए। प्रश्नकर्ता : परन्तु मनुष्यों में वैसा नहीं हो सकता। दादाश्री : मनुष्यों में भी होता है। क्यों नहीं होगा? मनुष्यों में तो चाहिए उतना होगा। प्रश्नकर्ता : वह तो ऐसा कहा हुआ है कि देवलोक में ऐसा होता दादाश्री : देवलोक का सबकुछ सिद्ध होता है। पर यहाँ पर भी किसी-किसीको संकल्प सिद्धि हो जाती है। सब होता है, अपना पुण्य चाहिए। पुण्य नहीं है। पुण्य कम पड़ गए हैं। जितनी मेहनत उतने अंतराय, क्योंकि मेहनत क्यों करनी पड़ रही दादाश्री : हाँ, देते हैं। सबकुछ देते हैं। उनका पुण्य हो तब तक क्या नहीं देंगे? और देवी-देवता के साथ ऋणानुबंध होता है। उनके रिश्तेदार वहाँ (देवलोक) गए हों और पुण्य हो तो उन्हें क्या नहीं देंगे? पुण्यशालियों को कम मेहनत से सबकुछ फलता है। इतने तक पुण्य हो सकता है। सहज विचार आया, कुछ प्रयत्न नहीं करें तो भी सभी वस्तुएँ सोचे अनुसार मिल जाती हैं, वह सहज प्रयत्न। प्रयत्न निमित्त है पर सहज प्रयत्न को पुरुषार्थ कहना, वह सारी परिभाषा भूल से भरी हुई है। लक्ष्मी अर्थात् पुण्यशाली लोगों का काम है। पुण्य का हिसाब ऐसा है कि खूब मेहनत करे और कम से कम मिलता है, वह बहुत ही थोड़ा साधारण पुण्य कहलाता है। फिर शारीरिक मेहनत बहत नहीं करनी पड़े और वाणी की मेहनत बहुत करनी पड़े, वकीलों की तरह, वह थोड़ा अधिक पुण्य कहलाता है, मजदूर की तुलना में और उससे आगे का क्या? वाणी की झंझट भी नहीं करनी पड़ती, शरीर की झंझट भी नहीं करनी पड़ती, पर मानसिक झंझट से कमाता है, वह अधिक पुण्यशाली कहलाता है। और उससे भी आगे कौन-सा? संकल्प करते ही तैयार हो जाए। संकल्प किया वह मेहनत । संकल्प किया कि दो बंगले, यह एक गोदाम। ऐसा संकल्प किया कि सब तैयार हो जाता है, वह महान पुण्यशाली। संकल्प करे वह मेहनत, बस संकल्प करना पड़ता है। संकल्प के बिना अर्थात् इस जगत् में सबसे अधिक पुण्यशाली कौन? जिसे थोड़ा भी विचार आए, वह निश्चित करे और वर्षों तक बिना इच्छा के, बिना मेहनत के मिलता ही रहे वह। दूसरे नंबर पर, इच्छा हो, और वह बारबार निश्चित करे और शाम को सहज प्रकार से मिल जाए वह। तीसरे नंबरवाले को इच्छा होती है और प्रयत्न करता है और प्राप्त हो जाता है। चौथे नंबरवाले को इच्छा होती है और भयंकर प्रयत्न से प्राप्त होता है। पाँचवे को इच्छा होती है और भयंकर प्रयत्नों से भी प्राप्त नहीं होता। इन मजदूरों को कठोर मेहनत करनी पड़ती है और ऊपर से गालियाँ खाते हैं फिर भी पैसे नहीं मिलते। मिलें तो भी ठिकाना नहीं कि घर जाकर खाने को मिलेगा। वे सबसे अधिक प्रयत्न करते हैं, फिर भी प्राप्ति नहीं होती। पुण्य से ही प्राप्त सत्संग आपने पुण्य किया हुआ है या नहीं? इसीलिए तो सी.ए. हुए। प्रश्नकर्ता : अभी तक पाप नहीं किया, पुण्य ही किया है। दादाश्री : वह तो ऐसा लगता है। पाप भी किया है पर पाप कम
SR No.009596
Book TitlePap Punya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
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