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________________ पाप-पुण्य २१ श्रीमंतता किसे मिलती है? क्या किया हो तो श्रीमंतता आती है? कितने अधिक लोगों की हैल्प की हो तब लक्ष्मी अपने यहाँ आती है! नहीं तो लक्ष्मी आती नहीं। लक्ष्मी तो देने की इच्छावाले के वहीं पर आती है। जो दूसरों के लिए घिसे, धोखा खाए, नोबेलिटी का उपयोग करे, उसके पास लक्ष्मी आती है। चली गई ऐसा लगता जरूर है, पर आकर फिर वहीं पर खड़ी रहती है। प्रश्नकर्ता: आपने लिखा है कि जो कमाता है, वह बड़े मनवाला ही कमाता है । देने-लेने में जो बड़ा मन रखे वही कमाई करता है। बाक़ी, संकुचित मनवाला कमाता ही नहीं कभी भी! दादाश्री : हाँ, सभी प्रकार से नोबल हो, तो लक्ष्मी वहाँ जाती है। इन पाजियों के पास लक्ष्मी जाती होगी? प्रश्नकर्ता: यानी पुण्य के कारण मनुष्य धनवान बनता है? दादाश्री : धनवान होने के लिए तो पुण्य चाहिए। पुण्य हो तो पैसा आता है। प्रश्नकर्ता: पैसे के लिए तो लिखा है न कि बुद्धि की जरूरत पड़ती है। दादाश्री : नहीं। बुद्धि तो नफा-नुकसान दो ही दिखाती है। जहाँ जाओ वहाँ नफा-नुकसान वह दिखा देती है। वह कुछ पैसे-वैसे नहीं देती। बुद्धि यदि पैसे दे रही होती न तो ये भूलेश्वर (मुंबई का एक इलाका) में इतने सारे बुद्धिशाली मुनीम होते हैं, जो सेठ को समझ में नहीं आता वह सब उसे समझ में आ जाता है। पर चप्पल बेचारे के पीछे से आधे घिस गए होते हैं और सेठ तो साढ़े तीन सौ रुपये के बूट पहनकर घूमते हैं, फिर भी ढपोल होते हैं ! पैसा कमाने के लिए पुण्य की ज़रूरत है। बुद्धि से तो उल्टे पा बँधते हैं। बुद्धि से पैसे कमाने जाएँ तो पाप बँधते हैं। मुझमें बुद्धि नहीं है इसलिए पाप नहीं बँधते । हममें बुद्धि एक सेन्ट परसेन्ट नहीं है ! २२ पाप-पुण्य लक्ष्मीजी किसके पीछे? लक्ष्मीजी तो पुण्यशालियों के पीछे ही घूमती रहती है। और मेहनती लोग लक्ष्मीजी के पीछे घूमते रहते हैं। इसलिए हमें देख लेना चाहिए कि पुण्य होंगे तो लक्ष्मीजी पीछे आएँगी। नहीं तो मेहनत से तो रोटी मिलेगी, खाने-पीने का मिलेगा और एकाध बेटी होगी तो उसकी शादी होगी। बाक़ी, पुण्य के बिना लक्ष्मी नहीं मिलती। इसलिए खरी हक़ीक़त क्या कहती है। कि 'तू यदि पुण्यशाली है तो किसलिए छटपटाता है? और तू पुण्यशाली नहीं है तो भी छटपटाता किसलिए है?' पुण्यशाली तो कैसे होते हैं? ये अमलदार भी ऑफिस से अकुलाकर घर वापिस आते हैं, तब मेमसाहिबा क्या कहेगी, 'डेढ़ घंटा लेट हुए, कहाँ गए थे?' ये देखो पुण्यशाली! पुण्यशाली को ऐसा होता होगा? पुण्यशाली को एक उल्टा हवा का झोंका नहीं लगता। बचपन से ही वह क्वॉलिटी अलग होती है। अपमान का योग नहीं मिलता है। जहाँ जाए वहाँ 'आओ, आओ भाई' उस तरह से पले-बड़े होते हैं। और ये तो जहाँ-तहाँ टकराता रहता है। उसका अर्थ क्या है फिर ? वापिस पुण्य खतम हो जाएँ न, तब थे वैसे के वैसे ! इसलिए तू पुण्यशाली नहीं तो पूरी रात पट्टा बाँधकर घूमे तो भी सुबह में क्या पचास मिल जाएँगे? इसलिए छटपटाना मत, और जो मिला उसमें खा-पीकर सो जा न चुपचाप । प्रश्नकर्ता: वह तो प्रारब्धवाद हुआ न? दादाश्री : नहीं, प्रारब्धवाद नहीं। तू अपनी तरह से काम कर । मेहनत करके रोटी खा। बाक़ी, अन्य प्रकार से क्यों छटपटाता रहता है? ऐसे इकट्ठा करूँ और वैसे इकट्ठा करूँ ! यदि तुझे घर में मान नहीं है, बाहर मान नहीं है तो किसलिए हाथ-पैर मारता है? और जहाँ जाए वहाँ उसे 'आओ, बैठो' कहनेवाले होते हैं, ऐसे बड़े-बड़े पुण्य लाए हों, उनकी बात ही अलग होती है न? ये सेठ पूरी ज़िन्दगी के पच्चीस लाख लेकर आए होते हैं, वे पच्चीस लाख के बाइस लाख करते हैं पर बढ़ाते नहीं हैं। बढ़ते कब है? हमेशा
SR No.009596
Book TitlePap Punya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
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