SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८८ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! पाप किया वह 'वज्रलेपो भविष्यति।' इसलिए मैंने कहा, 'धो डालना।' तब कहे, 'हाँ। भूल गया। अब कभी ऐसा नहीं होगा।' मैंने कहा, 'किसीका भी दोष देखना मत, यहाँ मत देखना, बाहर जाकर देखना। बाहर जाकर देखोगे तो यहाँ पर धुल जाएगा, पर यहाँ देखोगे तो वज्रलेप हो जाएगा। जरा-सा भी किसीका दोष नहीं देखना चाहिए। चाहे जैसा उल्टा करता हो, फिर भी दोष नहीं देखना चाहिए और दिख जाए तो हमें धो डालना चाहिए और नहीं तो वह वज्रलेप हो जाएगा।' निजदोष दर्शन से... निर्दोष! हुए। दोष देखने की मनुष्य में शक्ति है, वह खुद के दोष देखने के लिए ही है। दूसरों के दोष देखने के लिए नहीं है। उसका दुरुपयोग होने से खुद के दोष देखने की शक्ति बंद हो गई है। दूसरों के दोष निकालने के लिए नहीं है यह । वह अपने खुद के दोष नहीं निकालेगा न? हम दूसरों के दोष निकालें तो उन्हें अच्छा लगता है? प्रश्नकर्ता : अच्छा नहीं लगता। दादाश्री : नापसंद व्यापार बंद नहीं करने चाहिए हमें? 'व्यवस्थित' कर्ता, वहाँ भूल किसकी? जागृति रखनी है, ऐसा निश्चय होना चाहिए। भूल का प्रश्न नहीं है। अपने यहाँ भूल होती ही नहीं। भूल तो 'जिसकी' होती है, उसे फिर खुद को समझ में आता है कि यह भूल हुई, पर व्यवस्थित करता है, पर खुद निमित्त बना, इसलिए उसके आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान करने चाहिए कि, 'ऐसा नहीं होना चाहिए।' नहीं तो फिर चलेगा ही नहीं न! चीज ही पूरी अलग है। करता है व्यवस्थित। अपने यहाँ इसलिए किसीका दोष देखना ही नहीं चाहिए न! इस सत्संग में किसीकी भूल देखने की दृष्टि छोड़ देना। भूल होती ही नहीं किसीकी। वह सब 'व्यवस्थित' करता है। इसलिए दोष की दृष्टि ही निकाल देनी चाहिए। नहीं तो हमारा आत्मा बिगड़ जाएगा। प्रश्नकर्ता : भूल की दृष्टि रहे, तो सीढ़ी उतर जाते हैं न? दादाश्री : खतम हो जाता है मनुष्य! सब 'व्यवस्थित' करता है। यह ज्ञान मिलने के बाद सब व्यवस्थित के अधीन होता है। वज्रलेपो भविष्यति... अन्य क्षेत्रे कृतम पापम् धर्म क्षेत्रे विनश्यति, धर्म क्षेत्रे कृतम् पापम् वज्र लेपो भविष्यति। बाहर कोई दोष हुआ हो तो यहाँ पर नाश हो जाएगा, पर यहाँ पर इसलिए यहाँ तो धो डालना तुरन्त ही। उल्टा विचार आया कि तुरन्त धो डालना। कोई उल्टा करे या सीधा करे, वह हमें देखने की जरूरत नहीं है। यह धर्मस्थान कहलाता है। घर पर भूल की हो, तो यहाँ पर सत्संग में वह भूल मिट जाएगी। पर धर्मस्थान में भूल हुई तो निकाचित हो जाती है। प्रश्नकर्ता : दादा के पास बैठे हों तो भी निकाचित होगी? दादाश्री : नहीं होगी। पर उसका जो लाभ मिलता हो वह नहीं मिलेगा न! उससे लाभ मिलता हो, वह नहीं मिलता। ऐसी भूलें हो जाती हैं, इसलिए सावधान करते हैं आपको। भूल हो, उससे ज्ञान चला नहीं जाता है। सावधान करने से चोखा होता है न? देखे दोष ज्ञानी के, उसे.... तुझे हमारा दोष दिखता है कभी? प्रश्नकर्ता : ना। दादाश्री : कभी भी नहीं? और यह पहली बार इस बेचारे को हमारा दोष दिखता है। इसलिए हम अपरिचित व्यक्तियों को हमारे टच में नहीं रखते। बुद्धि का उपयोग करे तो दोष ही दिखेंगे लोगों को, गिर जाता है फिर। वे तो नरक में जाते हैं, नासमझ। अरे, ज्ञानी पुरुष के, जो
SR No.009595
Book TitleNijdosh Darshan Se Nirdosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size48 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy