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________________ ५२ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! प्रश्नकर्ता : आप सिम्पटम्स (लक्षण) नहीं देखते हैं और मूल कॉज (कारण) का इलाज करते हैं, ऐसे डॉक्टर कहाँ मिलेंगे?! दादाश्री : डॉक्टर नहीं है, उसीका तो यह झमेला है न? ऐसे डॉक्टर मिले नहीं और ऐसी दवाई भी मिली नहीं, इसलिए फिर यह चला तूफ़ान ! इसलिए फिर परिणाम को मारने लगे, इफेक्ट को! श्रद्धा से पैठा। वह प्रतीति संपूर्ण बैठी, इसलिए वह पैठा और प्रतीति से उतरेगा। संपूर्ण प्रतीति होनी चाहिए कि यह दोष ही है। इसलिए निकल जाएगा। यही नियम है। फिर उसका रक्षण नहीं करे, प्रोटेक्शन (तरफ़दारी) नहीं दे तो चला जाता है। पर फिर प्रोटेक्शन देता ही है। हम कहें, 'साहब यह नसवार सूंघते हो अभी भी?' तब कहे, 'उसमें हर्ज नहीं।' यह प्रोटेक्शन दिया कहलाता है। मन में समझता है कि यह गलत है। प्रतीति बैठी होती है, पर फिर प्रोटेक्शन देता है। प्रोटेक्शन नहीं देना चाहिए। देते हैं न प्रोटेक्शन? प्रश्नकर्ता : हाँ जी, प्रोटेक्शन देते ही हैं न! दादाश्री : आबरू चली गई है, है ही कहाँ आबरू? आबरूवाला तो कपड़े पहनकर घूमता होगा? ये तो हँकते रहते हैं आबरू! हँक-ढंककर आबरू बचाते रहते हैं। फटे तब सिल देते हैं, अरे कोई देख लेगा, सिल निजदोष दर्शन से... निर्दोष! इसलिए ही 'ज्ञानी पुरुष' आपकी 'भूल' मिटा सकते हैं! औरों के बस का नहीं है। भगवान ने संसारी दोष को दोष माना नहीं है। 'तेरे स्वरूप का अज्ञान' वही सबसे बड़ा दोष है। यह तो मैं चंदूलाल हूँ', तब तक अन्य दोष भी खड़े हैं और एक बार 'खुद के स्वरूप' का भान हो, तब फिर अन्य दोष भी जाने लगते हैं! भूल बिना का दर्शन और भूलवाला वर्तन खुद की भूल खुद को पता चले वह भगवान हो जाए। प्रश्नकर्ता : इस तरह कोई भगवान हुआ था? दादाश्री : जितने भी भगवान हुए, उन सभी को खुद की भूल खुद को पता चली थी और भूल को मिटाया था, वे ही भगवान हुए। भूल रहे नहीं उस तरह से वे भूल को मिटा देते हैं। सारी भूलें दिखती हैं, एक ऐसी भूल नहीं थी कि उन्हें नहीं दिखी हो। सुक्ष्म से सूक्ष्म, ऐसी सभी भूलें दिखती थीं। हमें भी हमारी पाँच-पचास भलें तो हररोज दिखती हैं और वे भी सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम भूलें दिखती हैं, जो लोगों को नुकसानदायक बिलकुल भी नहीं होती। ये बोलते-बोलते किसीका अवर्णवाद बोला जाए, वह भी भूल कहलाती है। वह तो फिर स्थूल भूल कहलाती है। भल मिटा दे, वह भगवान खुद की एक भूल मिटाए, वह भगवान कहलाता है। खुद की भूल बतानेवाले बहुत होते हैं, पर कोई मिटा नहीं सकता। भूल दिखाना भी आना चाहिए। यदि भूल दिखाना नहीं आए तो अपनी भूल है, ऐसा कबूल कर लेना चाहिए। यह किसीकी भूल दिखाना, वह तो भारी काम है और वह भूल मिटा दे, वह तो भगवान ही कहलाता है। वह तो 'ज्ञानी पुरुष' का ही काम। हमें इस जगत् में कोई दोषित दिखता ही नहीं है। 'हमने' संपूर्ण निर्दोष दृष्टि की और सारे जगत् को निर्दोष देखा! अब भूल किसे दिखती है? तब कहे, भूल बिना का चारित्र, श्रद्धा में है खुद को! हाँ, और भूलवाला वर्तन, वर्तन में है, उसे भूल दिखती है। भूल बिना का चारित्र उसकी श्रद्धा में हो, भूल बिना का चारित्र संपूर्ण दर्शन में हो और भूलवाला वर्तन उसके वर्तन में हो, तो उसे हम मुक्त हुआ कहते हैं। भूलवाला वर्तन भले ही रहा, पर उसके दर्शन में क्या है? एक सूक्ष्म से सूक्ष्म भूल रहितवाला चारित्र कैसा होना चाहिए? वह भीतर दर्शन में होना चाहिए। दर्शन में सक्ष्म से सक्ष्म भल नहीं रहे. ऐसा दर्शन होना चाहिए। तभी भूल दिख जाती है न?! देखनेवाला क्लियर हो. तब ही देख सकता है। इसलिए हम कहते हैं न कि ३६० डिग्रीवाले जो
SR No.009595
Book TitleNijdosh Darshan Se Nirdosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size48 KB
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