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________________ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! भगवान ने कोई ऐसा कहा है कि तप करना, जप करना, भूखों मरना, उपवास करना, त्याग करना, ऐसा कहा है? तेरा ज्ञान और तेरी समझ भूल बिना की कर, उस दिन तू खुद ही मोक्ष स्वरूप है। जीवित देहधारी का मोक्ष !! ४७ भगवान की बात तो आसान ही है न पर हमने पता लगाया कभी कि भूल बिना का ज्ञान और भूल बिना की समझ किस तरह हो सकती है ? हमने तो ऐसा ढूँढा, कि आज कौन-सा उपवास करना है या आज किसका त्याग करूँ? अरे! भगवान ने त्याग की शर्त कहाँ रखी है? यह तो उलटे रास्ते चल पड़े। आड़ी गलियों में घुस गए। भगवान ने क्या कहा था, 'ज्ञान और समझ भूल बिना के कर डाल तू । ' प्रश्नकर्ता: समझ भूल बिना की, यह बात फिर से समझाइए ! दादाश्री : हाँ, आपकी समझ भूल बिना की होगी, तब आपका मोक्ष होगा। समझ में ही भूल है आपकी, वह जब भूल बिना की होगी, मेरे साथ बैठ-बैठकर, तब निबटारा होगा। जब तक भूल है, तब तक निबटारा कैसे होगा? किसीकी भूलें होंगी ! फिर क्या कहते हैं, तू खुद मोक्ष स्वरूप है। तू खुद ही परमात्मा है। केवल भूल बिना का ज्ञान और भूल बिना की समझ का भान होना चाहिए। ज्ञान कैसा होना चाहिए? भूल बिना का। और समझ कैसी होनी चाहिए? भूल बिना की। यदि ज्ञान अकेला होगा तो पपीता नहीं लगेंगे। है पेड़ पपीता का, पर एक भी पपीता नहीं लगता, ऐसा होता है क्या? आपने देखे नहीं होंगे पपीते? प्रश्नकर्ता: देखे हैं। दादाश्री : देखे हैं न? अरे मुए ! पाल-पोसकर बड़ा किया तो ऐसा निकला? पानी पिलाकर, पाल-पोसकर बड़ा किया तो अंदर से ऐसा निकला? उसमें पपीता ही नहीं लगता। निजदोष दर्शन से... निर्दोष! इसलिए ज्ञान भूल बिना का होना चाहिए और भूल बिना की समझ । अब सिर्फ ज्ञान भूल बिना का हुआ तो भी कुछ होता नहीं। समझ भूल बिना की हो जाए तो चलेगा। समझ, वह हार्ट को पहुँचती है और ज्ञान, वह बुद्धि को पहुँचता है। ४८ आज चलता है ज्ञान वह, लोगों का व्यावहारिक ज्ञान, वह बुद्धि को पहुँचता है और समझ हार्ट को पहुँचती है, हार्टवाला (हार्दिक ) ठेठ तक पहुँचाता है, मोक्ष तक पहुँचाता है। उसे हमारे लोग सूझ कहते हैं। यह समझ जो है, उससे सूझ उत्पन्न होती है और सूझ से समझ उत्पन्न होती है, ठेठ तक पहुँचानेवाली सर्वोत्तम वस्तु यह है। भूल से तो यह संसार भी ठीक से नहीं चलता है, तो भूल से तो मोक्ष होता होगा कभी? ज्ञान और समझ भूल बिना के होंगे, आप जानो कि ज्ञान तो ऐसा है और यह तो सब अज्ञान है, भूलवाला है, तबसे ज्ञान हुआ करता है। यह तो इतनी उम्र में भी उसे ऐसे शर्म नहीं आती कि 'मैं इनका पति हूँ, ' कहते हुए शर्म आती है? ऐसा कहता है। ये मेरे पति हैं, ऐसा पत्नी भी कहती है। इतनी उम्र में उन्हें शर्म भी नहीं आती। क्योंकि अस्सी साल के हो गए, उसे भी शर्म नहीं आती। क्योंकि जैसा जानते हैं वैसा बोलते हैंन । और लोग भी समझें, वैसा बोलते हैं न? नहीं तो कहाँ जाएँ ? पर वह ज्ञान गलत नहीं है। यह जो जानते हैं, वह भी व्यवहार का ज्ञान है, सच्चा ज्ञान नहीं है। इस सच्चे ज्ञान में तो आप शुद्धात्मा हो और वह भी शुद्धात्मा है। पर उस शुद्धात्मा का भान होना चाहिए न? अभी तो 'मैं चंदूलाल हूँ' यह भान है, 'मैं जैन हूँ' यह दूसरा भान है। उम्र चौहत्तर साल की है, वह भी भान है। सब भान है। बचपन में कहाँ-कहाँ खेलने गए थे, वह भी भान है। नौकरी कहाँ-कहाँ की थी, व्यापार कहाँ-कहाँ किया, वह भी सब भान हैं पर 'खुद कौन है?' वह भान नहीं है। प्रश्नकर्ता अब वह दो आप वह भान करने की इच्छा जागृत
SR No.009595
Book TitleNijdosh Darshan Se Nirdosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size48 KB
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