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________________ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! का पत्र पोस्टमेन दे जाए, उसमें पोस्टमेन का क्या दोष? सामनेवाला तो है मात्र निमित्त हमें मकान की अड़चन हो और कोई मनुष्य हमें मदद करे और मकान हमें रहने के लिए दे, तो जगत् के मनुष्यों को उस पर राग होता है, और जब वह मकान वापस लेना चाहे तो उसके प्रति द्वेष होता है। ये राग-द्वेष हैं। अब असल में तो राग-द्वेष करने की जरूरत नहीं है, वह निमित्त ही है। वह देनेवाला और लेनेवाला, दोनों निमित्त हैं। आपके पुण्य का उदय हो, तब वह देने के लिए आ मिलता है, पाप का उदय हो तब वापस लेने के लिए आ मिलता है। उसमें उसका कोई दोष नहीं है। आपके उदय का आधार है। सामनेवाले का किंचित् मात्र दोष नहीं है। वह निमित्त मात्र है, ऐसा अपना ज्ञान कहता है। कैसी सुंदर बात करता है !! अज्ञानी को तो कोई मीठा-मीठा बोले, वहाँ पर राग होता है और कड़वा बोले तब द्वेष होता है। सामनेवाला मीठा बोलता है, वह खुद का पुण्य प्रकाशित है और सामनेवाला कड़वा बोलता है, वह खुद का पाप प्रकाशित है। इसलिए मूल बात में, दोनों सामनेवाले मनुष्यों को कुछ लेनादेना नहीं है। बोलनेवाले को कुछ लेना-देना नहीं है। सामनेवाला मनुष्य तो निमित्त ही बनता है। जो यश का निमित्त होता है, उससे यश मिलता रहता है और अपयश का निमित्त हो, उससे अपयश मिलता रहता है। वह निमित्त ही है खाली । उसमें किसीका दोष नहीं है ! प्रश्नकर्ता: सभी निमित्त ही माने जाते हैं न? दादाश्री : निमित्त के अलावा इस जगत् में दूसरी कोई चीज़ है। ही नहीं। वह भी निमित्त ही है। प्रश्नकर्ता: बाज़ार में से यहाँ सत्संग में आया वह कौन-सा निमित्त ? दादाश्री : वह तो कर्म का उदय । निमित्त का कोई सवाल ही नहीं है। उदयकर्म, बाज़ार के कर्म का उदय पूरा हुआ, इसलिए इस कर्म का ६ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! उदय यहाँ शुरू हुआ। इसलिए अपने आप विचार आता है कि चलो वहाँ जाते हैं। निमित्त कब कहलाता है? यहाँ आने के लिए निकले, दादर स्टेशन पर उतरे, थोड़ी दूर पहुँचे और कोई आकर मिला कि, 'भई, वापस चलो, मुझे ऐसा है और मुझे खास काम है।' तब हम जानें कि यह निमित्त आया। नहीं तो चलती हुई गाड़ी, वह तो कर्म के उदय के अनुसार चलती रहती है। नहीं लगते बोल, बगैर दोष के प्रश्नकर्ता: कोई हमें कुछ कह जाए वह भी नैमित्तिक ही न? अपना दोष नहीं हो, फिर भी बोले तो? दादाश्री : अपना दोष नहीं हो और वह बोले, तो किसीको ऐसा अधिकार नहीं है बोलने का। जगत् में किसी मनुष्य को, यदि आपका दोष नहीं हो, तो बोलने का अधिकार नहीं है। इसलिए, ये जो बोलता है वह आपकी भूल है, उसका बदला देता है यह। हाँ, वह आपकी पिछले जन्म की जो भूल है, उस भूल का बदला यह मनुष्य आपको दे रहा है। वह निमित्त है और भूल आपकी है। इसलिए ही वह बोल रहा है। अब वह अपनी भूल है, इसलिए यह बोल रहा है। तो वह मनुष्य हमें उस भूल में से मुक्त करवाता है। उसके प्रति भाव नहीं बिगाड़ना चाहिए। और हमें क्या कहना चाहिए कि प्रभु उसे सद्बुद्धि देना। इतना ही कहना चाहिए, क्योंकि वह निमित्त है। काटना निमित्त को? हमें तो किसी मनुष्य के लिए खराब विचार तक भी नहीं आता है। उल्टा-सीधा कर जाए, तब भी खराब विचार नहीं ! क्योंकि उसकी दृष्टि, बेचारे को जैसा दिखता है वैसा करता है। उसमें उसका क्या दोष? और वास्तव में, एक्ज़ेक्टली क्या है यह जगत् कि इस जगत् में कोई दोषित है ही नहीं। आपको दोष दिखता है, वह आपकी देखने की दृष्टि में अंतर है। मुझे कोई दोषित दिखा नहीं आज तक। इसलिए कोई दोषित है नहीं,
SR No.009595
Book TitleNijdosh Darshan Se Nirdosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size48 KB
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