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________________ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! बेटा हूँ', वह दूसरा ब्लंडर। 'मैं इसका पति हूँ', वह तीसरा ब्लंडर। 'मैं इस लड़के का बाप हूँ', वह चौथा ब्लंडर। ऐसे कितने ब्लंडर्स किए हैं? प्रश्नकर्ता : अनेकों हुए होंगे। दादाश्री : हाँ, ये जो ब्लंडर्स हैं वे आपसे टूटेंगे नहीं। हम ब्लंडर्स तोड़ देते हैं और फिर मिस्टेक्स हों वे आपको निकालनी हैं। वैसा कोई ऊपरी है नहीं। बिना काम के बेचैनी !! आपको समझ में आता है न, ऊपरी नहीं है ऐसा? पक्का विश्वास हो गया? भूलें कब पता चलती हैं? लोग मानते हैं कि भगवान ऊपरी हैं, इसलिए उनकी भक्ति करेंगे तो छूट जाएँगे। पर नहीं, कोई बाप भी ऊपरी नहीं है। तू ही तेरा ऊपरी, तेरा रक्षक भी तू और तेरा भक्षक भी तू ही। यू आर होल एन्ड सोल रिस्पोन्सिबल फॉर योर सेल्फ (आप ही अपने खुद के लिए संपूर्ण जिम्मेदार हो।) खुद ही खुद का ऊपरी है। इसमें दूसरा कोई बाप भी हस्तक्षेप नहीं करता है। हमारा बॉस है, वह भी हमारी भूल से है और अन्डरहैन्ड (मातहत) है, वह भी हमारी भूल से ही है। इसलिए भूल तो मिटानी ही पड़ेगी न! खुद की संपूर्ण स्वतंत्रता-आजादी चाहिए तो खुद की सभी भूलें मिट जाएँ तब मिलेगी। भूल तो कब पता चलती है कि 'खद कौन है?' उसका भान हो, परमात्मा का साक्षात्कार हो, तब! कौन जगत् का मालिक? इस ब्रह्मांड का हर एक जीव ब्रह्मांड का मालिक है। केवल खद का भान नहीं है इसलिए ही जीव की तरह रहता है। खुद के देह की मालिकी का जिसे दावा नहीं है, वह परे ब्रह्मांड का मालिक हो गया! यह जगत् अपनी मालिकी का है, ऐसा समझ में आए. वही मोक्ष! अभी ऐसा क्यों समझ में नहीं आया है? क्योंकि हमारी ही भलों ने बाँधा है, इसलिए। सारा जगत् अपनी ही मालिकी का है। निजदोष दर्शन से... निर्दोष! हमारा ऊपरी कोई बाप भी नहीं है। यह ऊपर बॉस है या बाप ऊपर बैठा है, ऐसा नहीं है। जो हो, वह आप ही हो, और आपको दंड देनेवाला भी कोई नहीं है और आपको जन्म देनेवाला भी कोई नहीं है। आप खुद जन्म लेते हो और देह धारण करते हो और फिर वापस जाते हो और आते हो। जाते हो और आते हो। आपकी मर्जी मुताबिक के सौदे हैं। हिन्दुस्तान में आने तक तो मानो कि कुदरती, साहजिक रूप से है, पर हिन्दुस्तान में आने के बाद थोड़ा-बहुत समझ में आता है कि हमारी कुछ भूल हो रही है। समझदार आदमी यदि इतना ही समझे कि क्या मुझे कोई भी मनुष्य परेशान कर सके ऐसा नहीं है? तो हम कहें कि नहीं है, नहीं है, नहीं है!!! और कहे कि, मेरा कोई ऊपरी नहीं है क्या? तब कहें, नहीं है, नहीं है, नहीं है!!! तेरे ऊपरी तेरे ब्लंडर्स और मिस्टेक्स हैं। ब्लंडर्स कैसे तोड़ने? तो हम कहेंगे कि, यहाँ पर आ जाना भाई, और मिस्टेक्स कैसे मिटानी? वह हमें आपको समझाना पड़ेगा। फिर तुझे मिटानी हैं। हम रास्ता दिखाएँगे। मिस्टेक्स तुझे मिटानी हैं और ब्लंडर्स हमें तोड़ देने हैं। नासमझी ने सर्जित किए दुःख दुःख सब नासमझी का ही है इस जगत् में। दूसरा कोई भी दुःख है, वह सब नासमझी का ही है। खुद ने खड़ा किया हुआ है सब, नहीं दिखने के कारण! जले तब कहें न, कि भाई! कैसे आप जल गए? तब कहता है, 'भूल से जल गया, कोई जान-बूझकर जलूँगा?' ऐसे ये सारे दु:ख भूल से हैं। सब दुःख अपनी भूल का परिणाम है। भूल चली जाएगी तो हो गया। प्रश्नकर्ता : कर्म चिकने होते हैं, उसके कारण हमें दुःख भुगतना पड़ता है? दादाश्री : अपने ही कर्म किए हुए हैं, अपनी ही भूल है। किसी अन्य का दोष इस जगत् में है ही नहीं। दूसरे तो निमित्त मात्र हैं। दुःख आपका है और सामनेवाले निमित्त के हाथों दिया जाता है। ससुर की मृत्यु
SR No.009595
Book TitleNijdosh Darshan Se Nirdosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size48 KB
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