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________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता : अब हम अमरिकन लड़कों के साथ पार्टी में नहीं जाते। क्योंकि उस पार्टी में खाना-पीना (माँसाहार-शराब) सब होता है। इसलिए हम उन लोगों की पार्टी में नहीं जाते, पर 'इन्डियन' लड़के पार्टी रखते हैं, उसमें जाते हैं और सबको, एक दूसरे के मम्मी-पापा पहचानते हैं। दादाश्री : पर इसमें फायदा क्या मिलेगा? प्रश्नकर्ता : एन्जोयमेन्ट, मज़ा आता है। दादाश्री : एन्जोयमेन्ट ! खाने में बहुत एन्जोयमेन्ट होता है पर खाने में क्या करना चाहिए? उसे कंट्रोल करना चाहिए कि भाई, तुझे इतना ही मिलेगा। फिर वह धीरे धीरे एन्जोय करते करते खाते हैं। यह तो ज्यादा छूट देते हैं न, इसलिए एन्जोय नहीं करते। किसी दूसरी जगह एन्जोयमेन्ट खोजते हैं। इसलिए भोजन में पहले कंट्रोल करना चाहिए कि अब इतना ही मिलेगा, ज्यादा नहीं मिलेगा। प्रश्नकर्ता : हम हमारे लड़के-लड़कियों को ऐसी 'पार्टियों' में जाने दें? ऐसी पार्टियों में साल में कितनी बार जाने दें? दादाश्री : ऐसा है न, लड़कियों को उनके माता-पिता के कहने के मुताबिक चलना चाहिए। हमारे अनुभवियों की खोज है कि लड़कियों को सदैव उनके माता-पिता के कहने के अनुसार चलना चाहिए। शादी के बाद पति के कहने के अनुसार चलना चाहिए। अपनी मर्जी के अनुसार नहीं करना चाहिए। ऐसा हमारे जानकारों का कहना है। प्रश्नकर्ता : लड़कों को माता-पिता के कहने के अनुसार करना चाहिए या नहीं? दादाश्री: लड़कों को भी माता-पिता के कहने के अनुसार चलना है, पर लड़कों के लिए थोड़ी ढील रखो तो चलेगा! क्योंकि लड़के को रात बारह बजे जाने को कहो तो अकेला जाए, तो हर्ज नहीं, किन्तु तुझे रात बारह बजे अकेली जाने को कहा हो तो अकेली जाएगी? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दादाश्री : और लड़का हो तो हर्ज नहीं, लड़के को छूट ज्यादा होनी चाहिए और लड़कियों को छूट कम होनी चाहिए, क्योंकि तुम बारह बजे जा नहीं सकतीं। अर्थात् यह तुम्हारे भविष्य के सुख के खातिर कहते हैं। भविष्य के सुख के लिए यह तुम्हें मना करते हैं। अभी तुम इस झंझट में पड़ोगी न, तो भविष्य बिगाड़ दोगी। तुम्हारा भविष्य का सुख उड़ जाएगा। इसलिए भविष्य नहीं बिगड़े इस कारण तुम्हें कहते हैं कि 'बिवेर, बिवेर बिवेर (सावधान, सावधान, सावधान)।' प्रश्नकर्ता : हमारे हिन्दू फेमिली (परिवार) में कहते हैं, 'लड़की पराये घर चली जाएगी और लड़का कमा कर खिलानेवाला है या हमारा सहारा होनेवाला है।' ऐसी अपेक्षाएँ हों, ऐसी दृष्टि रखें और लड़की के प्रति परिवारवाले प्रेम न रखें तो वह ठीक है? दादाश्री : प्रेम नहीं रखते, यह शिकायत करनेवाली खुद ही गलत है। यह विरोध ही गलत है। यही नासमझी है! प्रेम नहीं रखें ऐसे कोई माता-पिता ही नहीं होते। यह तो उनको समझ ही नहीं, तो फिर क्या हो? प्रेम नहीं रखते ऐसा कहें, तो माता-पिता को कितना दु:ख हो कि तुझे बचपन से पाला-पोसा किस लिए, अगर तुझे प्रेम नहीं करना था तो? प्रश्नकर्ता : तब फिर मुझे ऐसा फीलिंग (भाव) क्यों हुआ कि माता-पिता प्रेम नहीं करते? मुझे ऐसी दृष्टि कहाँ से आई? दादाश्री : नहीं, सभी ऐसे प्रश्न खड़े करते हैं, क्या करें इसका? छोटी हो तो एड़ी से दबा दें, पर बड़ी हो गई इसलिए करें भी क्या? अब हमें नज़र आता है, उसे यह अक्ल मिली है न, बाहर से बुद्धि मिली है न वह विपरीत बुद्धि है। इसलिए खुद भी दुःखी होती है और औरों को भी दु:खी करती है। प्रश्नकर्ता : हाँ, आजकल लड़कियाँ भी जल्दी शादी करने को तैयार नहीं होती! प्रश्नकर्ता : नहीं जाऊँगी, डर लगता है।
SR No.009593
Book TitleMata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages61
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size38 KB
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