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________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ५१ ठंडक पहुँचाओ। किसी की मुश्किल दूर करो। यह रास्ता है आगे ड्राफट भेजने का । इसलिए पैसों का सदुपयोग करो। चिंता मत करो। खाओपीओ, खाने-पीने में कंजूसी मत करो। इसलिए कहता हूँ कि 'खर्च डालो और ओवरड्राफट लो । ' मैंने उनके लड़कों से कहा कि तुम्हारे बाप ने यह सब सम्पत्ति तुम्हारे लिए इकट्ठा की है, धोती पहनकर (कंजूसी करके )। तब बोले, 'आप हमारे बाप को जानते ही नहीं हो।' मैंने पूछा, 'कैसे?' तब कहा, 'अगर यहाँ से पैसा ले जा सकते न तो मेरा बाप तो लोगों से कर्ज लेकर दस लाख ले जाए ऐसा पक्का है। इसलिए यह बात मन में रखने जैसी नहीं है।' उस लड़के ने ही मुझे ऐसे समझाया और मैंने कहा कि, 'अब मुझे सच्ची बात मालूम हुई ! मैं जो जानना चाहता था, वह मुझे मिल गया।' इकलौता लड़का हो, उसे वारिस बनाकर सौंप दिया। कहते हैं कि 'बेटा, यह सब तेरा, अब हम दोनों धर्मध्यान करेंगे।' 'अब यह सारी सम्पत्ति उसी की ही तो है', ऐसा बोलोगे तो फजीहत होगी। क्योंकि उसे सारी सम्पत्ति दे दी तो क्या होगा? बाप सारी सम्पत्ति इकलौते बेटे को दे दे तो लड़का माता-पिता को कुछ दिन तो साथ रखेगा लेकिन एक दिन लड़का कहेगा, 'तुम्हें अक्ल नहीं, तुम एक जगह बैठे रहो, यहाँ पर । ' अब बाप के मन में ऐसा हो कि मैंने इसके हाथ में लगाम क्यों सौंपी ? ! ऐसे पछतावा हो, उसके बजाय हमें लग़ाम अपने पास ही रखनी चाहिए। एक बाप ने अपने लड़के से कहा कि, 'सब सम्पत्ति तुझे देनी है।' तब उसने कहा कि, आपकी सम्पत्ति की मैंने आशा नहीं रखी है। उसे आप जहाँ चाहो वहाँ इस्तेमाल करो। अंत में कुदरत जो परिणाम दे वह अलग बात है। लेकिन उसका ऐसा निश्चय, अपना अभिप्राय दे दिया न! इसलिए वह सर्टिफाइड हो गया और अब मौज- शौक कुछ रहा नहीं । १२. मोह के मार से मरे अनेकों बार प्रश्नकर्ता : बच्चे बड़े होंगे, फिर अपने रहेंगे या नहीं यह किसे मालूम है? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दादाश्री : हाँ, अपना कुछ रहता नहीं। यह शरीर ही अपना नहीं रहता तो! यह शरीर भी बाद में हमसे ले लेते हैं। क्योंकि परायी चीज़ हमारे पास कितने दिन रहे? ५२ बच्च मोहवश 'पापा, पापा' बोलता है, तो पापाजी बहुत खुश हो जाते हैं और 'मम्मी मम्मी' बोलता है तो मम्मी भी बहुत खुश होकर हवा में उड़ने लगती है। पापाजी की मूँछें खींचे तो भी पापा कुछ बोलते नहीं । ये छोटे बच्चे तो बहुत काम करते हैं। अगर पापा-मम्मी के बीच झगड़ा हुआ हो, तो वह बच्चा ही मध्यस्थी के रूप में समाधान करता है। झगड़ा तो हमेशा होता ही है न! पति-पत्नी के बीच वैसे भी 'तू-तू, मैं-मैं' होती ही रहती है, तब बेटा किस प्रकार समाधान करता है? सवेरे वे चाय न पीते हों जरा सा रूठे हों, तो वह स्त्री बच्चे से क्या कहेगी कि, बेटा, जा, पापाजी से कह, 'मेरी मम्मी चाय पीने बुलाती है, पापाजी चलिए ।' अब लड़का पापाजी के पास जाकर बोला, 'पापाजी, पापाजी' और यह सुनते ही सबकुछ भूल कर तुरन्त चाय पीने आता है। इस तरह सब चलता है। बेटा 'पापाजी' बोला कि ओहो! न जाने कौन-सा मंत्र बोला। अरे, अभी तो कहता था कि मुझे चाय नहीं पीनी ! ऐसा है यह जगत् ! इस दुनिया में कोई किसी का लड़का हुआ नहीं। सारी दुनिया में से ऐसा लड़का ढूंढ लाओ कि जो अपने बाप के साथ तीन घण्टा झगड़ा किया हो और बाद में कहे कि, 'हे पूज्य पिताश्री, आप चाहें जितना भी डाँटे फिर भी आप और मैं एक ही हैं।' ऐसा बोलनेवाला खोज लाओगे? यह तो आधा घण्टा 'टेस्ट' पर लिया हो तो फूट जाए। बन्दूक की टिकड़ी फूटते देर लगे, पर यह तो तुरन्त फूट जाता है। जरा डाँटना शुरू करें, उसके पहले ही फूट जाता है कि नहीं फूटता ? लड़का 'पापाजी-पापाजी' करे तब वह कड़वा लगना चाहिए। अगर मीठा लगे तो वह सुख उधार लिया ऐसा कहलाता है । फिर वह दुःख के रूप में लौटाना होगा। लड़का बड़ा होगा, तब तुम्हें कहेगा कि, 'आप में अक्ल ही नहीं हैं।' तब हमें लगे कि ऐसा क्यों? तुमने जो उधार लिया था, वह
SR No.009593
Book TitleMata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages61
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size38 KB
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