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________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ठोक कर कहता है कि 'कढ़ी खारी कर दी है।' अरे! सीधा होकर खाना खा ले न! घर का मालिक, वहाँ कोई उसके ऊपर नहीं। वह खुद ही बॉस, इसलिए डॉट-डपट शुरू कर देता है। बच्चे डर जाते हैं कि पापा ऐसे पागल क्यों हो गए? पर बोल नहीं सकते। क्योंकि बेचारे दबे हुए हैं, लेकिन मन में अभिप्राय बांध लेते हैं कि पापा पागल लगते हैं। माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ३. नहीं झगड़ते, बच्चों की उपस्थिति में.. अगर हम मांसाहार न करें, शराब न पीयें और घर में पत्नी के साथ झगड़ा न करें तो बच्चे देखते हैं कि पापाजी बहुत अच्छे हैं। दूसरों के पापा-मम्मी झगड़ते है, मेरे मम्मी पापा नहीं झगड़ते। इतना देखें तो फिर बच्चे भी सीखते हैं। रोज़ाना पति पत्नी के साथ झगड़े तो बच्चे यों देखते रहते हैं। यह पापा है ही ऐसे' कहेंगे। क्योंकि भले इतना छोटा-सा हो फिर भी इसका न्याय करनेवाली न्यायाधीश बुद्धि उसमें होती है। लड़कियों में न्यायाधीश बुद्धि कम होती है। लड़कियाँ हर वक्त उनकी माँ का ही पक्ष लेती हैं। लेकिन ये लड़के तो न्यायाधीश बुद्धिवाले, जानते हैं कि पापा का दोष है ! फिर दो-चार व्यक्तियों को पापा का दोष बताते-बताते, निश्चय भी करता है कि बड़ा होकर सिखाऊँगा! बाद में बड़ा होने पर वैसा करता भी है। तेरी ही अमानत तुझे वापस! बच्चों की मौजूदगी में लड़ना नहीं चाहिए। हमें संस्कारी होना चाहिए। तुम्हारी गलती हो तो भी पत्नी कहे, 'कोई बात नहीं।' और उसकी गलती हो तो तुम कहो, 'कोई बात नहीं।' बच्चे ऐसा देखते हैं तो ऑलराइट (अच्छे) होते जाते हैं। और अगर लडना हो तो इन्तजार करना, जब बच्चे स्कूल जाएँ तब जितना लड़ना हो उतना लड़ना। लेकिन बच्चों की उपस्थिति में ऐसा लड़ाई-झगड़ा हो, तो वे देखते हैं और फिर उनके मन में बचपन से पापा और मम्मी के लिए विरोध भावना बनने लगती है। उनका सकारात्मक भाव छूटकर नकारात्मक शुरू हो ही जाता है। अर्थात् बच्चों को बिगाड़नेवाले इस समय माता पिता ही हैं! अत: हमें लड़ना हो तो एकांत में लड़ें, बच्चों की मौजूदगी में नहीं। एकांत में दरवाजा बंद करके दोनों आमने-सामने लड़ना है तो लड़ो। महंगे आम लाये हों और उस आम का रस, साथ में रोटियाँ तैयार कर के सब पत्नी ने परोसा हों, और भोजन की शुरूआत हुई। थोड़ा खाया और जैसे ही कढ़ी में हाथ डाला, थोड़ी खारी लगी कि डाइकनग टेबल अत: बच्चे सब ऊब गए हैं। वे कहते हैं कि फादर-मदर शादीशुदा हैं, उनका सुख (व्यंग में) देखकर हम ऊब गए हैं। मैंने पूछा, 'क्यों? क्या देखा?' तब वे कहते हैं कि रोजाना क्लेश होता है। इसलिए हम समझ गये है कि शादी करने से दु:ख मिलता है। अब हमें शादी नहीं करनी। ४. अनसर्टिफाइड फादर्स एण्ड मदर्स एक बाप कहता है, 'ये सारे बच्चे मेरे विरोधी हो गए हैं।' मैंने कहा, 'तुम्हारे में योग्यता नहीं यह स्पष्ट हो जाता है। तम्हारे में योग्यता हो तो लड़के क्यो विरोध करें? इसलिए इस प्रकार अपनी आबरु मत बिगाड़ना। और बच्चों को डाँटते रहें तो बिगड़ जाते हैं। उन्हें सुधारना हो तो हमारे पास बुलाकर कुछ बातचीत करवायें तो वे सुधर जाएँ! इसलिए मैंने पुस्तक में लिखा है कि 'अनक्वालिफाइड फादर्स एण्ड अनक्वालिफाइड मदर्स' (बिना योग्यतावाले माता-पिता) तब बच्चे भी वैसे ही हो जाएगें न! इसलिए मुझे कहना पड़ा, फादर बनने की योग्यता का सर्टिफिकेट लेने के बाद शादी करनी चाहिए। इन्हें तो जीवन जीना भी नहीं आता, कुछ भी नहीं आता! यह संसार-व्यवहार किस तरह चलाना, यही नहीं आता। इसलिए फिर बच्चों की धुलाई करता है! अरे उन्हें पीटता है तो क्या वे कपड़े हैं, जो धुलाई करता है? बच्चों को इस तरह सुधारें, मारपीट करें, यह कहाँ की रीत है? जैसे पापड का आटा गूंध रहे हों! मगरी से पापड़ का आटा गूंधते हैं, इस तरह एक आदमी को धुलाई करते मैंने देखा।
SR No.009593
Book TitleMata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages61
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size38 KB
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