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________________ क्रोध क्रोध तब ज्वाला भड़कती है। भीतरी बारूद पूरा हो जाने पर अपने आप कोठी शांत हो जाती है। ऐसा ही क्रोध का है। क्रोध उग्र परमाणु है, और वे जब 'व्यवस्थित' के नियम के हिसाब से फूटते हैं, तब चारों और से सुलगते है। हम उग्र रहे उसे क्रोध नहीं कहते, जिस क्रोध में ताँता रहे, वही क्रोध कहलाता है। क्रोध तो कब कहलाये कि भीतर जलन हो। जलन हो और ज्वाला भड़कती रहे और दूसरों को भी उसका असर पहुंचे। वह कुढ़न रूप कहलाये और बैचेनी रूप में खद अकेला अन्दर ही अन्दर जला करता है, पर ताँता तो दोनों ही रूपों में रहेगा। जब कि उग्रता अलग वस्तु है। कुढ़ना, सहन करना ये भी क्रोध क्रोधवाली वाणी नहीं निकले तो सामनेवाले को नहीं लगती। मुँह से बोल दें, वही क्रोध कहलाये ऐसा नहीं है, भीतर कुढ़ता रहे वह भी क्रोध है। उसे सहन करना वह तो डबल (दोहरा) क्रोध है। सहन करना यानी दबाते रहना। वह तो एक दिन स्प्रिंग उछले तब पता चलेगा। सहन किस लिए करना? इसका तो ज्ञान से हल निकाल देना है। मरते हैं, इमोशनल होने की वजह से! क्रोध जीता जाये ऐसे द्रव्य अर्थात बाहरी व्यवहार, वह नहीं पलटता पर भाव पलटे तो बहुत हो गया। कोई कहे कि क्रोध बंद करना है, तो आज ही क्रोध बंद नहीं होगा। क्रोध बंद करना हो तो किस प्रकार होगा? क्रोध को तो पहचानना होगा, कि क्रोध क्या है ? क्यों उत्पन्न होता है ? उसका जन्म किस आधार पर होता है ? उसकी माँ कौन ? बाप कौन ? सब खोज करने के बाद क्रोध को पहचान पायें। छूटा हुआ छुड़ाये आपको सब निकालना है ? क्या क्या निकालना है, बताइए। लिस्ट (सूचि) बनाकर मुझे दीजिए। वह सब निकाल देंगे। आप क्रोध-मानमाया-लोभ से बँधे है ? प्रश्नकर्ता : एकदम। दादाश्री : अर्थात बँधा हुआ मनुष्य अपने आप किस प्रकार छूट सकता है ? ऐसे चारों ओर से हाथ-पैर सब कसकर बँधे हो. तो वह अपने आप किस तरह मुक्त हो सकता है ? प्रश्नकर्ता : उसे किसी का सहारा लेना पड़ेगा। दादाश्री : बँधे हुए की हेल्प (मदद) लेनी चाहिए? प्रश्नकर्ता : स्वतंत्र हो उसकी हेल्प लेनी चाहिए। दादाश्री : हम किसी से पूछे कि भाई, कोई है यहाँ छूटा हुआ? मुक्त है ? तो हमें यहाँ हेल्प करो। अर्थात जो मुक्त हुआ हो वह मुक्त क्रोध में बड़ी हिंसा बुद्धि इमोशनल (आवेशमय) होती है, ज्ञान मोशन (गति) में रहता है। जैसे वह ट्रेईन मोशन में चलती है, यदि वह इमोशनल हो जाये तो? प्रश्नकर्ता : एक्सिडेन्ट हो जाये। दादाश्री: आडी-टेढी होती चले तो एक्सिडेन्ट हो जाये। इसी तरह मनुष्य जब इमोशनल होता है, तब कई जीव भीतर मर जाते हैं। क्रोध हुआ कि कितने ही छोटे छोटे जीव मर कर खतम हो जाते हैं और ऊपर से खद दावा करता है कि, "मैं तो अहिंसा धर्म का पालन करता हूँ, जीव हिंसा तो करता ही नहीं हूँ।" अरे, पर क्रोध से तो निरे जीव ही
SR No.009590
Book TitleKrodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
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