SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रोध क्रोध प्रश्नकर्ता : रूबरू सबके बीच में ? दादाश्री : ऐसे कोई नहीं माँगे और वैसे ही अन्दर माफी माँग ले तो चलेगा, उसमें हर्ज नहीं। क्योंकि यह गनाह चार्ज नहीं है. यह डिस्चार्ज है। 'डिस्चार्ज' गुनाह यानी यह चार्ज गुनाह नहीं है ! इसलिए इतना बुरा फल नहीं देता! खुद की प्रतिष्ठा से खड़े कषाय यह सब व्यवहार आप नहीं चलाते, क्रोध-मान-माया-लोभ आदि कषाय चलाते हैं। कषायों का ही राज है ! खुद कौन है' उसका भान होने पर कषाय जायेंगे। क्रोध होने पर पछतावा हो, मगर भगवान का बताया गया प्रतिक्रमण नहीं आता तो क्या होगा? प्रतिक्रमण आता तो छुटकारा हो जाता। अधिक तगड़ा हुआ।" मान तगड़ा होता रहता है, क्योंकि माया के ये बेटे मरें ऐसे नहीं हैं। उनका उपाय करें तो जायें ऐसे हैं, वर्ना जानेवालों में से नहीं। वे माया की संताने हैं। वह मान नामक भैंसा इतना तगड़ा हुआ। जितना मैं ने क्रोध को दबा दिया, मैं ने क्रोध को दबा दिया कहता है, तो फिर वह तगड़ा हुआ। इसकी तुलना में चारों समान थे, वह ठीक था। क्रोध और माया हैं रक्षक क्रोध और माया, वे तो रक्षक हैं। वे तो लोभ और मान के रक्षक हैं। लोभ की यथार्थ रक्षक माया और मान का यथार्थ रक्षक क्रोध। फिर भी मान के लिए थोड़ी बहुत माया इस्तेमाल होगी, कपट करते हैं। कपट करके भी मान प्राप्त कर लें, क्या ऐसा करते हैं लोग? अर्थात यह क्रोध-मान-माया-लोभ की सृष्टि कहाँ तक खड़ी है ? 'मैं चन्दुलाल हूँ और ऐसा ही हूँ' ऐसा निश्चय है वहाँ तक खड़ी रहेगी। जब तक हमने प्रतिष्ठा की हुई है कि 'मैं चन्दुलाल हूँ', इन लोगों ने हमारी प्रतिष्ठा की और हमने उसे मान लिया कि 'मैं चन्दुलाल हूँ', तब तक ये क्रोध-मान-माया-लोभ अन्दर रहते हैं। और क्रोध कर के लोभ कर ले। लोभी क्रोधी नहीं होता और यदि क्रोध करे तो समझना कि इसे लोभ में कोई बाधा आई है, इसलिए मूआ क्रोध करता है। वर्ना लोभी को गालियाँ देने पर भी उल्टा कहेगा, "भले ही वह शोर मचाता रहे, हमें तो अपना रूपया मिल गया न।" लोभी ऐसे होते हैं, क्योंकि कपट सब का रक्षण करेगा ही न! कपट अर्थात माया और क्रोध वे सभी रक्षक है। खुद की प्रतिष्ठा कब समाप्त होगी कि जब 'मैं शुद्धात्मा हूँ' यह भान होगा तब। अर्थात खुद के निज स्वरूप में आये तो प्रतिष्ठा टूट जाती है। तब क्रोध-मान-माया-लोभ जायेंगे वर्ना नहीं जायेंगे। मारते रहने पर भी नहीं जायेंगे और उल्टे बढ़ते रहेंगे। एक को मारें तो दूसरा बढ़ेगा और दूसरे को मारें तो तीसरा बढ़ेगा। क्रोध दुबला वहाँ मान तगड़ा एक महाराज कहते है, मैं ने क्रोध को दबा-दबा कर निर्मूल कर डाला। मैं ने कहा, "उसके परिणाम स्वरूप यह 'मान' नाम का भैंसा अपने मान पर आँच आए, तब मनुष्य क्रोध कर लेता है। अपना मान भंग होता हो, वहाँ क्रोध होता है। क्रोध भोला है। भोला पहले नष्ट होता है। क्रोध तो गोला-बारूद है और गोला-बारूद होगी, वहाँ लश्कर लड़ेगा ही। क्रोध गया फिर लश्कर क्यों लड़ेगा? फिर तो (ऐरे-गैरे) सब भाग जायेंगे। कोई खड़ा नहीं रहेगा। क्रोध का स्वरूप क्रोध उग्र परमाणु है। कोठी के अन्दर बारूद भरा हो और फूटे
SR No.009590
Book TitleKrodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy