SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रोध क्रोध कि अनिवार्य है? अनिवार्य संयोग होते हैं कि नहीं होते? सेठ नौकर को डाँटे कि. "कप-रकाबी क्यों फोड डाले? तेरे हाथ टूटे हुए थे? और तू ऐसा है, वैसा है।" यदि अनिवार्य है तो उसे डाँटना चाहिए? जमाई के हाथों कप-रकाबी टूट जाने पर वहाँ तो एक शब्द भी नहीं बोलते! क्योंकि वह सुपिरियर ठहरा, वहाँ चुप्पी! और इन्फिरियर आया वहाँ दुतकार दिया!!! ये सारे इगोइज़म (अहंकार) है। सुपिरियर के आगे सभी चुप्पी नहीं साध लेते? यह 'दादाजी' के हाथों यदि कुछ ट जाये तो मन में कुछ भी नहीं होगा और उस नौकर के हाथों टूट जाये तो ? इस संसार ने कभी न्याय देखा ही नहीं है। नासमझी की वजह से यह सब है। यदि बुद्धिपूर्वक की समझ होती तो भी बहुत हो जाता ! बुद्धि यदि विकसित होती, समझदारीवाली होती, तो कहीं कोई झगड़ा हो ऐसा है ही नहीं। अब झगड़ा करने पर कुछ कप-रकाबी साबूत हो जानेवाले हैं? सिर्फ संतोष लेता है, उतना ही न ! और मन में क्लेश होता है सो अलग। इसलिए इस व्यापार में एक तो कप-रकाबी गये वह नुकसान, दूसरे यह क्लेश हुआ वह नुकसान और नौकर के साथ बैर बँधा वह नुकसान!!! नौकर बैर बाँधेगा कि "मैं गरीब हूँ" इसलिए मुझे ऐसा कहते हैं न! पर वह बैर कुछ छोड़नेवाला नहीं है और भगवान ने भी कहा है कि किसी के साथ बैर मत बाँधना। हो सके तो प्रेम बाँधना, मगर बैर मत बाँधना। क्योंकि प्रेम बँधेगा, तो वह प्रेम अपने आप ही बैर को उखाड फैंकेगा। प्रेम की क़बर तो बैर को खोद डाले ऐसी है. पर बैर की क़बर कौन खोदेगा? बैर से तो बैरबढ़ता ही रहता है। ऐसे निरंतर बढ़ता ही रहता है। बैर की वजह से तो यह भटकना है सब! ये मनुष्य क्यों भटकते हैं? क्या तीर्थंकर नहीं मिले थे? तब कहे, "तीर्थंकर तो मिले. उनकी देशना भी सुनी मगर कुछ काम नहीं आयी।" है। इसलिए ज्ञानीपुरुष लोंग साइट (दीर्घ दृष्टि) दे देते हैं। लोंग साइट के आधार पर सब 'जैसा है वैसा' नज़र आता है। __ बच्चों पर गुस्सा आये तब... प्रश्नकर्ता : ये घर में बच्चों पर क्रोध आता है उसका क्या करें? दादाश्री : नासमझी से क्रोध आता है। उसे हम पूछे कि तुझे बड़ा मज़ा आया था? तब कहे कि मुझे अन्दर बहुत बुरा लगा, भीतर बहुत दुःख हुआ था। उसे दुःख हो, हमें दुःख हो ! इसमें बच्चे पर चिढ़ने की ज़रूरत ही कहाँ रही फिर? और चिढ़ने पर सुधरते हों तो चिढ़ना। रिजल्ट (परिणाम) अच्छा आता हो तो चिढ़ना काम का, रिज़ल्ट ही अच्छा नहीं आता हो तो चिढ़ने का क्या अर्थ है? क्रोध करने से फायदा होता हो तो करना और यदि फ़ायदा नहीं होता हो तो ऐसे ही चला लेना। प्रश्नकर्ता : अगर हम क्रोध ना करे तो वे हमारा सने ही नहीं. खायें भी नहीं। दादाश्री : क्रोध करने के बाद भी कहाँ सुनते हैं ?! वीतरागों की सूक्ष्म दृष्टि तो देखिये ! फिर भी हमारे लोग क्या कहते हैं कि पिता अपने बच्चों पर इतना क्रोधित हो गया है, इसलिये यह बाप नालायक है। और कुदरत के यहाँ इसका कैसा न्याय होता है? पिता को पुण्य बंधता है। हाँ, क्योंकि इसने बच्चे के हित के लिये अपने आप पर संघर्षण किया। बच्चे के सुख की खातिर खुद पर संघर्षण किया, इसलिए पुण्य बंधेगा। बाकी सब प्रकार का क्रोध पाप ही बांधता है। यही एक प्रकार है, जो बच्चे के या शिष्य के भले के लिये क्रोध करते हैं। वो अपना सुलगाकर उनके सुख के लिए करते हैं। इसलिए पुण्य बंधेगा। फिर भी लोग तो उसे अपयश ही देंगे। पर ईश्वर के घर सच्चा न्याय है या नहीं? अपने बेटे पर, बेटी पर क्या-क्या अड़चनें आती है, कहाँ-कहाँ विरोध होता है, तो उन विरोधों को मिटा दे न ! विरोध होता है, यह छोटी नज़र (संकुचित दृष्टि)
SR No.009590
Book TitleKrodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy