SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रोध क्रोध है, उसके बाद क्रोध बंद हो जायेगा। हमने दोष देखना बंद किया, इसलिए सब बंद हो गया। क्रोध के मूल में अहंकार बार उसके साथ हो जानेवाला है और उसके लिए ग्रंथि भी बंध गई है, पर अब हमें क्या करना चाहिए? जिस पर क्रोध आता हो, उसके लिए मन खराब नहीं होने देना चाहिए। मन सुधारना कि भाई, हमारे प्रारब्ध के हिसाब से यह मनुष्य ऐसा करता है। वह जो कुछ भी करता है वह हमारे कर्मों का उदय है, इसलिए ऐसा करता है। इस प्रकार हम मन को सुधारें। मन को सुधारते रहे और जब सामनेवाले के लिए मन सुधर जायेगा, फिर उसके लिए क्रोध होना बंद हो जायेगा। थोड़े समय तक पिछला इफेक्ट (पहले की असर) है, उतना इफेक्ट देकर फिर बंद हो जायेगा। लोग पूछते है, "यह हमारे क्रोध की दवाई क्या करें?" मैं ने कहा. "आप अभी क्या करते हैं?" तब कहें. "क्रोध को दबाते रहते है।" मैं ने पछा, "पहचान कर दबाते हो या बिना पहचाने? क्रोध को पहचानना तो होगा न?" क्रोध और शांति दोनों साथ-साथ बैठे होते है। अब हम क्रोध को नहीं पहचानें तो वह शांति को दबा दें, तो शांति मर जायेगी ! अर्थात दबाने जैसी चीज़ नहीं है। तब उसकी समझ में आता है कि क्रोध अहंकार है। अब किस प्रकार के अहंकार से क्रोध होता है, इसकी तहक़ीकात करनी चाहिए। यह जरा सूक्ष्म बात है और लोग ढूँढ नहीं पाये। हर एक का उपाय तो होता ही है न? उपाय बगैर तो संसार होता ही नहीं न! संसार तो परिणाम का ही नाश करना चाहता है। अर्थात क्रोध-मान-माया-लोभ का उपाय यह है कि परिणाम को कुछ नहीं करें, उसके कारणों को उड़ा दें, तो वे सभी चले जायेंगे। इसलिए खद विचारक होने चाहिए। वर्ना अजागृत होने पर किस तरह उपाय करेगा? प्रश्नकर्ता : कारणों को किस तरह उड़ाना, यह जरा फिर से समझाइये। दादाश्री : इस भाई पर मुझे क्रोध आता हो तो फिर में निष्कर्ष निकालुं कि इसके उपर जो क्रोध आता है, वह मैं ने पहले उसके दोष देखे थे उसका परिणाम है। अब वह जो जो दोष करे, उसे मन पर नहीं लॅ, तो फिर उसके प्रति जो क्रोध है वह बंद होता जायेगा। पर थोडे पूर्व परिणाम होंगे, उतना आने के बाद दूसरा आगे बंद हो जायेगा। प्रश्नकर्ता : दूसरों के दोष देखते हैं इसलिए क्रोध आता है ? __इस लड़के ने ग्लास फोड़ा तो क्रोध आ गया, वहाँ हमारा क्या अहंकार है? इस ग्लास का नुकसान होगा, ऐसा अहंकार है। नफा-नुकसान का अहंकार है हमारा! इसलिए नफा-नुकसान के अहंकार को, उस पर विचार कर के, निर्मूल कीजिए। गलत अहंकार का संग्रह करने पर क्रोध होता रहेगा। क्रोध है, लोभ है, वे तो वास्तव में मूलतः सारे अहंकार ही हैं। क्रोध का शमन, किस समझ से? क्रोध खुद ही अहंकार है। अब इसकी जाँच-पड़ताल करनी चाहिए कि, किस तरह वह अहंकार है। तब उसे पकड़ पायेंगे कि क्रोध वह अहंकार है। यह क्रोध उत्पन्न क्यों हआ? तब कहे कि, "इस बहन ने कप-रकाबी फोड़ डाले, इसलिए क्रोध उत्पन्न हआ।" अब कप-रकाबी फोड़ डाले, उसमें हमें क्या हर्ज है? तब कहे कि, "हमारे घर का नुकसान हुआ" और नुकसान हुआ इसलिए फिर उसे डाँटना उपर से? यह अहंकार करना, डाँटना, यह सब बारीकी से यदि सोचा जाये, तो सोचने पर वह सारा अहंकार धुल जाये ऐसा है। अब यह कप टूट गया वह निवार्य है दादाश्री : हाँ। उन दोषों को देखते हैं, उसे भी हम जान लें कि ये भी गलत परिणाम ही हैं। जब वे गलत परिणाम दिखना बंद हो जाते
SR No.009590
Book TitleKrodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy