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________________ क्रोध क्रोध कुढ़न रूप को जीतते है। इसमें ऐसा होता है कि एक को दबाने पर दूसरा बढ़ेगा और कहेंगे कि मैं ने क्रोध को जीत लिया। परिणाम स्वरूप मान बढ़ेगा। वास्तव में क्रोध पूर्णतया नहीं जीता जा सकता। जो दिखाई देता है उस क्रोध को ही जीता कहलाये। ताँता उसका नाम क्रोध जिस क्रोध में ताँता हो, वही क्रोध कहलाता है। उदाहरणार्थ, पतिपनि रात में खब लडे, क्रोध ज़बरदस्त धधक उठा। सारी रात दोनों जागते पड़े रहे। सुबह बीवी ने चाय का प्याला जरा पटक कर रखा, तो पति समझ जायेगा कि अभी ताँता (क्रोध की पकड़) है ! उसी का नाम क्रोध। फिर चाहे कितने भी समय का हो! अरे, कितनों को तो सारी जिंदगी का होता है ! बाप बेटे का मुँह नहीं देखता और बेटा बाप का मुँह नहीं देखता! क्रोध का ताँता तो बिगड़े हुए चेहरे से ही पता चलता है। ताँता एक ऐसी वस्तु है कि पंद्रह साल पहले मेरा अपमान हुआ हो और वह मनुष्य पंद्रह साल तक मझे नहीं मिला हो। पर आज मुझे मिल जाये तो मिलने के साथ ही मुझे सब याद आ जाता है, वह ताँता। ताँता किसी का जाता नहीं है। बड़े-बड़े साधु महाराज भी ताँतेवाले होते है। रात को यदि आपने कुछ मज़ाक की हो तो पंद्रह-पंद्रह दिनों तक आप से नहीं बोलेंगे, ऐसा होता है वह ताँता। ____ फर्क, क्रोध और गुस्से में प्रश्नकर्ता : दादाजी, गुस्सा और क्रोध में क्या फर्क है ? दादाश्री : क्रोध उसका नाम, जो अहंकार सहित हो। गुस्सा और अहंकार दोनों मिलने पर क्रोध कहलाता हैं। और बेटे के साथ बाप गस्सा करे, वह क्रोध नहीं कहलाता। उस क्रोध में अहंकार सम्मिलित नहीं होता, इसलिए वह गुस्सा कहलाता है। इस पर भगवान ने कहा कि, "यह गुस्सा करे तो भी इसका पुण्य जमा करना।" तब कहते हैं, "यह गुस्सा करे तो भी?" इस पर कहा, "क्रोध करे तो पाप है, गुस्से का पाप नहीं है।" क्रोध में अहंकार मिला होता है और आपको गुस्सा आने पर भीतर आपको बुरा लगता है न! क्रोध-मान-माया-लोभ दो तरह के होते है: एक मोड़े जा सकें ऐसे-निवार्य। किसी के ऊपर क्रोध आया हो तो उसे अंदर ही अंदर बदल सकें और उसे शांत कर सके, ऐसा मोड़ सकनेवाला क्रोध। इस स्टेज तक पहुँचे तो व्यवहार बहुत सुंदर हो जाता है। दूसरे प्रकार का क्रोध जो मोड़ा नहीं जा सकता ऐसा - अनिवार्य । बहुत प्रयत्न करने के बावजूद भी फटाका फूटे बगैर रहते ही नहीं! वह नहीं मुड़नेवाला अनिवार्य क्रोध। यह क्रोध खुद का अहित करता है और सामनेवाले का भी अहित करता है। भगवान ने कहाँ तक का क्रोध चला लिया है ? साधुओ और चारित्र्यवालों के लिए, कि क्रोध जहाँ तक सामनेवाले मनुष्य को दुःखदायी न हो, उतने क्रोध को भगवान ने चला लिया है। मेरा क्रोध मझे अकेले को दु:खदायी हो, पर अन्य किसी को दु:खदायी न हो उतना क्रोध चला लिया है। जाननेवाले को पहचानिए प्रश्नकर्ता : हम सभी जानते हैं कि यह क्रोध आया, वह खराब है। फिर भी... दादाश्री : ऐसा है न, जो क्रोधी है वह जानता नहीं, लोभी है वह जानता नहीं, मानी है वह जानता नहीं, जाननेवाला उससे अलग ही है। और इन सभी लोगों को मन में होता है कि मैं जानता हूँ फिर भी क्यों होता है? अब जानता हूँ, वह कौन? यह मालूम नहीं। 'कौन जानता है'
SR No.009590
Book TitleKrodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
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