SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५. समझ से सोहे गृहसंसार ८७ लगा देता था, उसकी ज़रा-सी भूल दिखे तो मार देता था। फिर मैं उसे अकेले में समझाता कि ये तमाचा तूने उसे मारा पर उसकी वह नोंध रखेगी। तू नोंध नहीं रखता पर वह तो नोंध रखेगी ही। अरे, यह तेरे छोटे-छोटे बच्चे, तू तमाचा मारता है तब तुझे टुकुर-टुकुर देखते रहते हैं, वे भी नोंध रखेंगे। और वे वापिस, माँ और बच्चे इकट्ठे मिलकर इसका बदला लेंगे। वे कब बदला लेंगे? तेरा शरीर ढीला पड़ेगा तब। इसलिए स्त्री को मारने जैसा नहीं है। मारने से तो उल्टे हमें ही नुकसानदायक, अंतरायरूप हो जाते हैं। आश्रित किस कहा जाता है? खूंटे से बंधी गाय होती है, उसे मारें तो वह कहाँ जाए? घर के लोग खूंटे से बाँधे हुए जैसे हैं, उन्हें मारें तो हम टुच्चे कहलाएँगे। उन्हें छोड़ दे और फिर मार, तो वह तुझे मारेंगे या फिर भाग जाएँगे। बाँधे हुए को मारना, वह शूरवीर का मार्ग कैसे कहलाए ? वह तो निर्बल का काम कहलाए। घर के मनुष्य को तो तनिक भी दुःख दिया ही नहीं जाना चाहिए। जिसमें समझ न हो वे घरवालों को दुःख देते हैं। फरियाद नहीं, निकाल लाना है प्रश्नकर्ता: दादा, मेरी फरियाद कौन सुने? दादाश्री : तू फरियाद करेगा तो तू फरियादी हो जाएगा। मैं तो जो फरियाद करने आए, उसे ही गुनहगार मानता हूँ। तुझे फरियाद करने का समय ही क्यों आया? फरियाद करनेवाला ज़्यादातर गुनहगार ही होता है। खुद गुनहगार होता है तो फरियाद करने आता है। तू फरियाद करेगा तो तू फरियादी बन जाएगा और सामनेवाला आरोपी बन जाएगा। इसलिए उसकी दृष्टि में आरोपी तू ठहरेगा। इसीलिए किसी के विरुद्ध फरियाद नहीं करनी चाहिए। प्रश्नकर्ता: तो मुझे क्या करना चाहिए? दादाश्री : 'वे' उल्टे दिखें तो कहना कि वे तो सबसे अच्छे मनुष्य « क्लेश रहित जीवन है, तू ही गलत है। ऐसे, गुणा हो गया हो तो भाग कर देना चाहिए और भाग हो गया हो तो गुणा कर देना चाहिए। यह गुणा-भाग किसलिए सिखाते हैं? संसार में निबेड़ा लाने के लिए। वह भाग करता हो तो हम गुणा करें, ताकि रकम उड़ जाए। सामनेवाले मनुष्य के लिए विचार करना कि उसने मुझे ऐसा कहा, वैसा कहा वही गुनाह है। यह रास्ते में जाते समय दीवार से टकराएँ तो उसे क्यों डाँटते नहीं है? पेड़ को जड़ क्यों कहा जाता है? जिसे चोट लगती है वे सब हरे पेड़ ही हैं। गाय का पैर अपने ऊपर पड़े तो हम क्या कुछ कहते हैं? ऐसा ही सब लोगों का है। ज्ञानी पुरुष सबको किस तरह माफ कर देते हैं? वे समझते हैं कि ये बेचारा समझता नहीं है, पैड़ जैसा है। और समझदार को तो कहना ही नहीं पड़ता, वह तो अंदर तुरन्त प्रतिक्रमण कर डालता है। सामनेवाले का दोष ही नहीं देखें, नहीं तो उससे तो संसार बिगड़ जाता है। खुद के ही दोष देखते रहने चाहिए। अपने ही कर्म के उदय का फल है यह! इसलिए कुछ कहने का ही नहीं रहा न ? सब अन्योन्य दोष देते हैं कि आप ऐसे हो, आप वैसे हो। और साथ में बैठकर टेबल पर भोजन करते हैं। ऐसे अंदर बैर बंधता है, इस बैर से दुनिया खड़ी रही है। इसीलिए तो हमने कहा है कि 'समभावे निकाल' करना। उससे बैर बंद होते हैं। सुख लेने में फँसाव बढ़ा संसारी मिठाई में क्या है? कोई ऐसी मिठाई है कि जो घड़ीभर भी टिके ? अधिक खाई हो तो अजीर्ण होता है, कम खाई हो तो अंदर लालच रहता है। अधिक खाए तो अंदर तरफड़ाहट होती है। सुख ऐसा होना चाहिए कि तरफड़ाहट न हो। देखो न, इन दादा को है न ऐसा सनातन सुख! सुख मिले उसके लिए लोग शादी करते हैं, तब उल्टा अधिक
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy