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________________ Ve ५. समझ से सोहे गृहसंसार _ 'न्याय स्वरूप', वहाँ उपाय तप प्रश्नकर्ता : टकराव टालने की, 'समभावे निकाल' करने की हमारी वृत्ति होती है, फिर भी सामनेवाला व्यक्ति हमें परेशान करे, अपमान करे, तो क्या करना चाहिए हमें? दादाश्री : कुछ नहीं। वह अपना हिसाब है, तो हमें उसका 'समभावे निकाल' करना है ऐसा निश्चित रखना चाहिए। हमें अपने नियम में ही रहना चाहिए, और हमें अपने आप अपना पज़ल सॉल्व करते रहना चाहिए। प्रश्नकर्ता : सामनेवाला व्यक्ति अपना अपमान करे और हमें अपमान लगे, उसका कारण अपना अहंकार है? दादाश्री : सच में तो सामनेवाला अपमान करता है, तब हमारा अहंकार पिघला देता है, और वह भी वो ड्रामेटिक अहंकार। जितना एक्सेस अहंकार होता है वह पिघलता है, उसमें क्या बिगड़ जानेवाला है? ये कर्म छूटने नहीं देते हैं। हमें तो छोटा बच्चा सामने हो तब भी कहना चाहिए, अब छुटकारा कर। आपके साथ किसी ने अन्याय किया और आपको ऐसा हो कि मेरे साथ यह अन्याय क्यों किया, तो आपको कर्म बंधेगा। क्योंकि आपकी भूल को लेकर सामनेवाले को अन्याय करना पड़ता है। अब यहाँ कहाँ मति पहुँचे? जगत् तो कलह करके रख देता है! भगवान की भाषा में कोई न्याय भी करता नहीं है, और अन्याय भी करता नहीं है। करेक्ट करता है। अब इन लोगों की मति कहाँ से पहुँचे? घर में मतभेद कम हों, तोड़फोड़ कम हो, आसपासवालों का प्रेम बढ़े तो समझें कि बात समझ में आई। नहीं तो बात समझ में आई नहीं। ज्ञान कहता है कि तू न्याय खोजेगा तो तू मूर्ख है ! इसलिए उसका उपाय है, तप! किसी ने आपके साथ अन्याय किया हो तो वह भगवान की भाषा में करेक्ट हैं, जिसे संसार की भाषा में गलत किया ऐसा कहेंगे। क्लेश रहित जीवन यह जगत् न्यायस्वरूप है, गप्प नहीं है। एक मच्छर भी ऐसे ही आपको छुए ऐसा नहीं है। मच्छर ने छुआ इसलिए आपका कोई कारण है। बाकी यों ही एक स्पंदन भी आपको छुए ऐसा नहीं है। आप संपूर्ण स्वतंत्र हो। किसी की दखल आपमें नहीं है। प्रश्नकर्ता : टकराव में मौन हितकारी है या नहीं? दादाश्री : मौन तो बहुत हितकारी कहलाता है। प्रश्नकर्ता : परन्तु दादा, बाहर मौन होता है, परन्तु अंदर तो बहुत घमासान चल रहा होता है, उसका क्या हो? दादाश्री : वह काम का नहीं है। मौन तो सबसे पहले मन का चाहिए। उत्तम तो, एडजस्ट एवरीव्हेर प्रश्नकर्ता : जीवन में स्वभाव नहीं मिलते इसलिए टकराव होता है न? दादाश्री : टकराव होता है उसका ही नाम संसार है! प्रश्नकर्ता : टकराव होने का कारण क्या है? दादाश्री : अज्ञानता। प्रश्नकर्ता : सिर्फ सेठ के साथ ही टकराव होता है ऐसा नहीं है, सबके साथ होता है, उसका क्या? दादाश्री : हाँ, सबके साथ होता है। अरे! इस दीवार के साथ भी होता है। प्रश्नकर्ता : उसका रास्ता क्या होगा? दादाश्री : हम बताते हैं, फिर दीवार के साथ भी टकराव नहीं होगा। इस दीवार के साथ टकराता है उसमें किसका दोष? जिसे लगा उसका
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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