SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्लेश रहित जीवन ४. फैमिलि आर्गेनाइजेशन प्रश्नकर्ता : दादा, मेरा बेटा पंद्रह सौ रुपये महीने कमाता है, मैं रिटायर्ड हूँ, उसके साथ रहता हूँ। अब बेटा और बह मझे टोकते रहते हैं कि आप ऐसा क्यों करते हो? बाहर क्यों जाते हो? इसलिए मैं उनको कहनेवाला हूँ कि मैं घर में से चला जाऊँगा। दादाश्री : खिलाते-पिलाते हैं अच्छी तरह से? प्रश्नकर्ता : हाँ, दादा। दादाश्री : तब फिर चला जाऊँगा ऐसा नहीं बोलते। और कभी कहने के बाद में जाने का नहीं हो पाए, तो अपने बोल खुद को ही निगलने पड़े। प्रश्नकर्ता : तब फिर मुझे उन्हें कुछ भी नहीं कहना चाहिए? दादाश्री : बहुत हुआ तो धीरे से कहें कि ऐसा करो तो अच्छा, फिर मानना न मानना आपकी मरजी की बात है। आपकी धौल सामनेवाले को लगे ऐसी हो और उससे सामनेवाले में बदलाव होता हो तभी धौल मारना और यदि वह पोली धौल मारोगे तो वह उल्टा विफरेगा। उससे उत्तम तो धौल नहीं मारनी वह है। घर में चार बच्चे हों, उनमें से दो की कोई भूल नहीं हो तब भी बाप उनको डाँटता रहता है और दूसरे दो भूल करते ही रहते हों, फिर भी उन्हें कुछ नहीं करता। यह सब उसके पूर्व के रूटकॉज़ के कारण है। उसकी तो आशा ही मत रखना प्रश्नकर्ता : बच्चों को चिरंजीवी क्यों कहते होंगे? दादाश्री : चिरंजीवी नहीं लिखें तो दूसरे शब्द घुस जाएँगे। यह बेटा बड़ा हो और सुखी हो, हमारी अरथी उठने से पहले उसे सुखी देखें ऐसी भावना है न? फिर भी अंदर मन में ऐसी आशा है कि यह बढापे में सेवा करे। ये आम के पेड़ क्यों उगाते हैं? आम खाने के लिए। पर आज के बच्चे, वे आम के पेड़ कैसे हैं? उनमें दो ही आम आएँगे और बाप के पास से दूसरे दो आम माँगेंगे। इसलिए आशा मत रखना। एक भाई कहते हैं कि मेरा बेटा कहता है कि आपको महीने के सौ रुपये भेजूं? तब वे भाई कहते हैं कि मैंने तो उसे कह दिया कि भाई, मुझे तेरे बासमती की ज़रूरत नहीं है, मेरे यहाँ बाजरा उगता है। उससे पेट भरता है। यह नया व्यापार कहाँ शुरू करें? जो है उसमें संतोष है। 'मित्रता', वह भी 'एडजस्टमेन्ट' प्रश्नकर्ता : बच्चों को मेहमान मानें? दादाश्री : मेहमान मानने की ज़रूरत नहीं है। इन बच्चों को सुधारने के लिए एक रास्ता है, उनके साथ मित्रता करो। हमने तो बचपन से ही यह रास्ता चुना था। इसलिए इतने छोटे बच्चे के साथ भी मित्रता है और पचासी साल के बूढ़े के साथ भी मित्रता! बच्चों के साथ मित्रता का सेवन करना चाहिए। बच्चे प्रेम ढूँढते हैं, पर प्रेम उनको मिलता नहीं है। इसलिए फिर उनकी मुश्किलें वे ही जानें, कह भी नहीं सकते और सह भी नहीं सकते। आज के युवाओं के लिए रास्ता हमारे पास है। इस जहाज का मस्तूल किस तरफ लेना, वह हमें अंदर से ही रास्ता मिलता है। मेरे पास प्रेम ऐसा उत्पन्न हुआ है कि जो बढ़ता नहीं और घटता भी नहीं। बढ़ताघटता है वह आसक्ति कहलाता है। जो बढ़े-घटे नहीं वह परमात्म प्रेम है। इसीलिए चाहे वह मनुष्य वश में हो जाता है। मुझे किसी को वश में करना नहीं है, फिर भी प्रेम में हरकोई वश में रहा करता है, हम तो निमित्त हैं। खरा धर्मोदय ही अब प्रश्नकर्ता : इस नयी प्रजा में से धर्म का लोप किसलिए होता जा रहा है? दादाश्री : धर्म का लोप तो हो ही गया है, लोप होना बाकी ही नहीं रहा। अब तो धर्म का उदय हो रहा है। लोप हो जाता है, तब उदय की शुरूआत होती है। जैसे इस सागर में भाटा पूरा हो, तब आधे घंटे में
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy