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________________ कर्म का सिद्धांत कर्म का सिद्धांत हम तो सारे जगत के शिष्य है और लघुत्तम है। By relative view point, में लघुत्तम हूँ और by real view point, में गुरुत्तम हूँ! ये बाहर सब लोग है, वो relative में गुरुतम होने गये। मगर relative में गुरुत्तम नहीं होने का है। Relative में लघुत्तम होने का है, तो real में automatic गुरुतम पद मिल जायेगा। भगवान की भक्ति करते है, वो भी प्रारब्ध है। हरेक चीज प्रारब्ध ही है और बिना पुरुषार्थ प्रारब्ध हो नहीं सकता। पुरुषार्थ बीज स्वरूप है और उसका जो पेड़ होता है, वो सब प्रारब्ध है। पैसा मिलता है, वो भी प्रारब्ध है मगर पैसा दान में देने की भावना है, वो पुरुषार्थ है। आप भगवान की भक्ति करने के लिए बैठे है और बाहर कोई आदमी आपको बुलाने आया। तो आपके मन में भक्ति जल्दी पूरा कर देने का विचार हो गया। तो जल्दी पूरा करने का विचार वो पुरुषार्थ है और भक्ति किया वो सब प्रारब्ध है। अपने अंदर जो भाव है, वो ही परुषार्थ है। ये मन. बद्धि. शरीर सब साथ होकर जो होता है, वो सब प्रारब्ध है। ये line of demarkation प्रारब्ध और पुरुषार्थ के बीच है, वो आप समझ गया न?! है, मगर भाव है कि 'ऐसा कभी नहीं करना चाहिए' तो वो परुषार्थ है। चोरी करता है मगर हर दफे बोलता है कि 'मर जावे तो भी ऐसे चोरी नहीं करना चाहिए', तो वो पुरुषार्थ है। प्रश्नकर्ता : गरीबों की घर जाकर सेवा की है, मुफ्त दवाईयाँ दी है। खुद आध्यात्मिक विचार के है, फिर भी उनको एक ऐसा शारिरीक दर्द हुआ है, उससे उनको बहुत तकलीफ होती है। वो क्यों? ये समझ में नहीं आता। दादाश्री : आपने जो देखा, उसने बहुत अच्छे अच्छे काम किये, उसका फल आगे के जन्म में मिलेगा। ये जन्म में पिछले जन्म का फल मिला है। प्रश्नकर्ता : आगे की बात नहीं है? आगे क्युं मिलेगा? why not now itself ? अभी भूख लगती है, तो अभी खाता है। अभी खाया तो उसको संतोष होता है। देर से उठा, वो प्रारब्ध है मगर भगवान की भक्ति करने का भाव किया था, वो पुरुषार्थ है। कोई जल्दी उठता है, वो भी प्रारब्ध है। किसी ने आपके उपर उपकार किया मगर उसको तकलीफ आया तो तुम help करते हो वो प्रारब्ध है, मगर तुमने विचार किया कि 'उसको help करने की जरूरत नहीं है, तो वो तुमने पुरुषार्थ गलत कर दिया। भाव को मत बिगाडो। भाव वो तो पुरुषार्थ है। किसी ने आपको पैसा दिया है. तो पैसा देनेवाले का भी प्रारब्ध है, आपका भी प्रारब्ध है। मगर आपने विचार किया कि 'पैसा नहीं देगें तो क्या करनेवाला है', तो वो उल्टा पुरुषार्थ हो गया। अगर तो उसको पैसा वापस देने का भाव है, तो वो भी पुरुषार्थ है, सीधा पुरुषार्थ है। चोरी किया वो भी प्रारब्ध है, मगर पश्चात्ताप हो गया, तो वो पुरुषार्थ है। चोरी किया फिर उसको आनंद हो गया तो वो भी प्रारब्ध दादाश्री : ये दु:ख आता है, वो पिछले जन्म के बुरे कर्म का फल है। अच्छा काम करता है, वो भी पिछले जन्म के अच्छे कर्म का फल है। मगर इसमें से अगले जन्म के लिए नया कर्म बांधता है। कर्म का अर्थ क्या है कि एक लडका होटेल में ही खाता है। आपने बोला कि होटेल में मत खाव, वो लडका भी समझता है कि ये गलत हो रहा है, फिर भी रोज जाकर खाता है। क्यों? वो पीछे का कर्म का फल आया है और अभी खाता है, इसका फल उसको अभी मिल जाएगा। वो शरीर की खराबी हो जाएगी और इधर ही फल मिल जाएगा। मगर आंतरिक कर्म है. भावकर्म कि 'ये नहीं खाना चाहिए', तो उसका फल आगे मिल जाएगा। ऐसे दो प्रकार के कर्म है। स्थल कर्म है, उसका फल इधर ही मिलता है। सूक्ष्म कर्म है, उसका फल अगले जन्म में मिलता है। प्रश्नकर्ता : I can't believe this ! दादाश्री : हाँ, आप नहीं मानो तो भी कायदे में तो रहना ही पड़ेगा
SR No.009588
Book TitleKarma Ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size274 KB
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