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________________ कर्म का सिद्धांत कर्म का सिद्धांत की लगाम छोड देने की और कैसे चल रहा है, 'रविन्द्र' क्या कर रहा है, वो ही 'देखने' का है। ये 'रविन्द्र' है, वो अपना गत अवतार (पूर्वजन्म) का कर्मफल है। वो हमें फल देखने का है कि कर्म क्या हुआ है, कर्म कितने है और कर्मफल क्या है? वो कर्मचेतना भी 'तुम्हारी' नहीं और कर्मफल चेतना भी तुम्हारी नहीं है। आप तो देखनेवाला-जाननेवाला है। जिवन में मरजियात क्या? फरजियात किया है। आपने शादी किया, वो भी फरजियात किया। फरजियात को दुनिया क्या बोलती है? मरजियात बोलती है। मरजियात होता तो कोई मरनेवाला है ही नहीं। मगर मरना तो पडता है। जो अच्छा होता है, वो भी फरजियात है और बरा होता है वो भी फरजियात है। मगर उसके पीछे अपना भाव क्या है, वो ही तुम्हारा मरजियात है। आपने क्या हेतु से कर दिया, वो ही तुम्हारा मरजियात है। भगवान तो वो ही देखता है कि तुम्हारा हेतु क्या था। समझ गया न? सब लोग नियति बोलता है कि जो होनेवाला है वो होगा, नहीं होनेवाला है वो नहीं होगा। मगर अकेली नियति कुछ नहीं कर सकती है। वो हरेक चीज इकट्ठा हो गई, scientific cirumstantial evidence इकट्ठे हो गये तो सब होता है, parliamentary पद्धति से होता है। प्रश्नकर्ता : आप्तवाणी में फरजियात (compulsory) और मरजियात (voluntary) की बात पढ़ी। फरजियात तो समझ में आया मगर मरजियात कौन सी चीज है, वह समझ में नहीं आया। दादाश्री : मरजियात कुछ है ही नहीं। मरजियात तो जब 'पुरुष' होता है, तब मरजियात होता है। जहाँ तक पुरुष हुआ नहीं, वहाँ तक मरजियात ही नहीं है। आप पुरुष हुए है? आप इधर आये तो आपके मन में ऐसा होता है कि इधर आये वह बहुत अच्छा हुआ और दूसरे एक के मन में ऐसा होता है कि इधर नहीं आया होता तो अच्छा था। वो दोनों पुरुषार्थ अलग है। तुम्हारे अंदर जो हेतु है, जो भाव है, वो ही पुरुषार्थ है। इधर आये वो सब फरजियात है, प्रारब्ध है और प्रारब्ध तो दूसरे के हाथ में है, तुम्हारे हाथ में नहीं है। प्रश्नकर्ता : यह आपका प्रश्न समझ में नहीं आया। दादाश्री : आपको कौन चलाता है? आपकी प्रकृति आपको चलाती है। इसलिए आप पुरुष नहीं हुए है। प्रकृति और पुरुष, दोनों जुदा हो जावे, फिर ये प्रकृति अपनी फरजियात है और पुरुष मरजियात है। जब तुम पुरुष हो गये, तो मरजियात में आ गये, मगर प्रकृति का भाग फरजियात रहेगा। भूख लगेगी, प्यास लगेगी, ठंडी भी लगेगी मगर आप खुद मरजियात रहेगा। प्रश्नकर्ता : यहाँ सत्संग में है, वह फरजियात है कि मरजियात? दादाश्री : वो है तो फरजियात, मगर ये मरजियातवाला फरजियात है। जो पुरुष नहीं हुआ है, वो तो मरजियातवाला फरजियात से नहीं आया है। उसको तो फरजियात ही है। ये world तो क्या है? फरजियात है। आपका जन्म हुआ वो भी फरजियात है। आपने सारी जिंदगी जो कुछ किया है, वो भी सब आप जो कर सकते है, आपको जो भी करने की शक्ति है मगर आपको खयाल नहीं है और जिधर नहीं करने का है, जो परसत्ता में है, उधर आप हाथ डालते हो। सर्जन शक्ति आपके हाथ में है और विसर्जन शक्ति आपके हाथ में नहीं है। जो सर्जन आपने किया है, इसका विसर्जन आपके हाथ में नहीं है। ये पूरी जिंदगी विसर्जन ही हो रहा है मात्र । उसमें सर्जन भी हो रहा है, वो आँख से नहीं दिखे ऐसा है। प्रारब्ध-पुरुषार्थ का Demarkation ! भगवान कुछ देते नहीं है। तुम जो करते हो, उसका फल तुमको मिलता है। तुम अच्छा काम करेगा तो अच्छा फल मिलेगा और बुरा काम
SR No.009588
Book TitleKarma Ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size274 KB
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