SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानी पुरुष की पहचान वैसी हालत सारी दुनिया की हो गयी है। हम उसको ठंडा कर देते है। This is the cash bank of divine solution. धर्म में कभी cash bank नहीं होती। धर्म में तो बोलते है कि आज अच्छा काम करोगे तो अगले जन्म में अच्छा फल मिलेगा। मगर ये तो cash bank है, तुरंत फल मिल जाता है। हम इसमें निमित्त है। हम तो वीतरागता से काम लेते है। हम आपको बोलेंगे कि इधर से आत्मा प्राप्त कर लो। फिर हम आपको पत्र नहीं लिखेंगे। हम पहले बोलेंगे कि ये दुकान में क्या चीज है? इधर आपको परमनन्ट सुख मिलेगा। मोक्ष में जाने का विचार हो तो आ जाना। और आपका सब दुःख हमको दे दो। कोई आदमी दुःख देता है और कोई आदमी दुःख नहीं भी देता । वो समझते है कि 'आपको दुःख दे दें, तो फिर हम क्या करेंगे?' अरे, भाई, दुःख हमको दे दो और सुख आपकी पास रखो। २७ 'दादा भगवान' है, उनको ये संसार का दुःख नहीं है। जो संसार के दुःख बर्दाश्त नहीं कर सकते है और जिसको मुक्ति ही चाहिये, मोक्ष चाहिये, उसको 'दादा भगवान' एक घंटे में मोक्ष दे देते है। जिसको संसार में कोई अड़चन हो तो हम देवलोग को बोल देते है, क्योंकि वो सब हमारे पहचानवाले है। वो पहचानवाले को बोल देते है। लेकिन उसके लिए लोभ नहीं करने का, सिर्फ अड़चन होनी चाहिये। सबके लिए 'ज्ञानी पुरुष' है। चोर के लिए, बदमाश के लिए, शेठ के लिए, सब के लिए ज्ञानी पुरुष है। वो मानता है कि मैं चौर हूँ। 'ज्ञानी पुरुष' जानते है कि वो चोर नहीं है। उसकी बिलीफ रोंग है। 'ज्ञानी पुरुष' वो बिलीफ सही कर देंगे तो वो अच्छा हो जायेगा । दो प्रकार ज्ञानी होते है। एक बुद्धि से जाननेवाले ज्ञानी, दूसरा ज्ञान से जाननेवाले ज्ञानी ज्ञान से जाननेवाले ज्ञानी है, उनको कुछ जानने को बाकी नहीं है, पुस्तक पढ़ने की जरूरत नहीं है, माला फेरने की जरूरत नहीं है, सब काम पूरे हो गये है। बुद्धि से जाननेवाले ज्ञानी है, उसको पुस्तक की जरूरत है, माला की जरूरत है, सब चीज की जरूरत है। ज्ञान से ज्ञानी पुरुष की पहचान ही सब कुछ जानते है, वो ज्ञानी और भगवान में कोई फर्क नहीं है। तीर्थंकर भगवान बहुत बड़े आदमी है, उनके दर्शन से बहुत आदमी मोक्ष में चले गये। वो तीर्थंकर भगवान को जिनेश्वर बोला जाता है और आत्मज्ञानी पुरुष है, उनको जिन बोला जाता है। उनको पूरा ज्ञान है, दुनिया किसने बनाया, कैसे बन गया, किस तरह से चलता है, कौन चलाता है, हम कौन है, आप कौन है, सभी चीजों का खुलासा उनके पास है। उनकी ही आराधना होनी चाहिये। २८ वे दुनिया के कल्याण के लिए अवतार है। सिर्फ हिन्दुस्तान के लिए ही नहीं, दुनिया के सभी धर्मो के लिए। सब धर्म अपसेट हो गये हैं। तो उनको फिर से एक बार अपसेट करना पड़ेगा। लोग हमको बोलते है कि, 'क्यों भाई, धर्म को आप क्यों अपसेट करते हो?' मैं बोलता हूँ, 'जो अपसेट हो गया है, उसको अपसेट करता हूँ याने फिर से सेटअप हो जायेगा।' प्रश्नकर्ता : यह बात समझ में नहीं आयी। दादाश्री : धर्म ऐसा सीधा था, वो अभी दुषमकाल की वजह से अपसेट याने ऐसे ऊलटा हो गया है। उसको फिर से ऊलटा करने से सुलट जायेगा। अंत में वेद क्या कहते है? प्रश्नकर्ता : मैं तो गीता पढ़ता हूँ, वह धीरे धीरे सब समझुंगा । दादाश्री : मैं आपको सच बता दूँ। गीता में जो ज्ञान है, चार वेद है, जैनों के चार अनुयोग है, वो सब रिलेटिव ज्ञान है, रियल ज्ञान नहीं है। पुस्तक के अंदर रियल ज्ञान कभी होता ही नहीं। रियल ज्ञान 'ज्ञानी पुरुष' अकेले के पास ही है और दुनिया में किसी के पास नहीं होता है। आपको जो कुछ जानना हो इधर जान लो ये बात शास्त्रों में नहीं मिलेगी। वेद में सब बुद्धि की बात है। जहाँ तक बुद्धि चलती है, वहाँ
SR No.009585
Book TitleGyani Purush Ki Pahechaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size325 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy