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________________ ज्ञानी पुरुष की पहचान ज्ञानी पुरुष की पहचान फिरते है न, उन्हों ने आत्मा जानी तो ठीक बात है, नहीं तो फिर गलत बात है। शास्त्र जानने की जरूरत नहीं, आत्मा जानने के लिए शास्त्र जानने का है। आत्मा नहीं जान ली तो फिर सब व्यर्थ है। आपने आत्मा जान ली? संत-गुरु होते है, वो तो सब भगवान के भक्त रहते है और 'ज्ञानी पुरुष' तो खुद ही परमात्मा है। 'ज्ञानी पुरुष' को देहधारी परमात्मा बोला जाता है। प्रश्नकर्ता : हमारे लिए ये समस्या है कि सही 'ज्ञानी पुरुष' तो हमारे सामने आते ही नहीं और जो आते है, उनको ही 'ज्ञानी पुरुष' हम समझें? दादाश्री : नहीं, आपको सच्ची समझ पड़ सकती है। आपका प्रारब्ध हो तो सच्चे 'ज्ञानी पुरुष' मिल जाते है, नहीं तो कभी मिलते ही नहीं। आज आपके प्रारब्ध ने हमको और आपको मिला दिया है मगर आपको हमारी पहचान नहीं होती। क्या करेंगे? प्रश्नकर्ता : हमें तो वो द्रष्टि, पहचानने की द्रष्टि नहीं है। दादाश्री : ऐसे पहचानने की द्रष्टि कब होती है कि जब आप कोई न कोई रहस्यवाली बात, गूढ़ बात पूछे, जो आपकी समझ में नही आती है, ऐसी बात पूछ लो और उसका जवाब मिले, समाधान हो जाये, तो फिर इससे आपको ज्ञानी को पहचानने की द्रष्टि हो जाती है। 'ज्ञानी पुरुष' सभी खुलासा(स्पष्टीकरण) कर सकते है, ये दुनिया में जो चीज चल रही है, वो इधर सब खलासा कर सकते है। जो सब लोग जानते है, ऐसी दुनिया नहीं है। वो तो सब भ्रांति की बात है, सच्ची बात नहीं है। सच्ची बात तो 'ज्ञानी' के पास है। वास्तविकता जानने की इच्छा हो तो हमारे पास आना जरूरी है, नहीं तो हमारे पास आना जरूरी नहीं है। वास्तविकता में जगत क्या चीज है, वो इधर जानने को मिल सकता है। हम सभी चीजें बता देते है। सब लोग क्या बोलते है कि 'हम जानते है, हम जानते है', वो सब लौकिक जानते है। फिर उसका नशा चढता है, कि 'हम जानते है।' मगर क्या जानते है? जाननेवालों को कभी ठोकर नहीं लगती। जाननेवालों को कुछ नहीं होता। नहीं जानने का जाना है और जानने का है वो नहीं जाना। खुद भगवान है, वो आपको मालूम नहीं। हिमालय में साधु लोग घुमते प्रश्नकर्ता : वो ही जानने के लिए प्रवचन सुनते है। दादाश्री : प्रवचन में आत्मा होती ही नहीं। आत्मा 'ज्ञानी' के पास ही होती है, वहाँ ही प्रगट हो गयी है। 'ज्ञानी पुरुष' 360 degree का ज्ञान जानते है। वे ब्रह्मांड का perspective view (परस्पेक्टीव व्यु) बता सकते है, back view (बेक व्य) बता सकते है, front view (फ्रन्ट व्य) बता सकते है। वो centre (सेन्टर) में आ जाते है और फेक्ट बता सकते है। वो ब्रह्मांड के बाहर रहकर देख सकते है और ब्रह्मांड में रहकर भी देख सकते है। यहाँ तो मुस्लिम भी आ सकते है, पारसी भी आ सकते है, जैन भी आ सकते है, वैष्णव भी आ सकते है, सभी के लिए है। हमारी भाषा ऐसी किसी एक के लिए आग्रही नहीं है। एक धर्म के लिए जो आग्रही होती है न, वो एकान्तिक वाणी है। वो वाणी कैसी होती है कि अपने खुद के धर्म की आग्रही रहती है। मगर हमारे में कोई आग्रह नहीं है। ये स्याद्वाद वाणी है। ये वाणी तो प्रत्यक्ष सरस्वती है। वो फोटो की सरस्वती है, ये प्रत्यक्ष सरस्वती है। प्रत्यक्ष नहीं मिले तो फोटो का दर्शन करना और प्रत्यक्ष मिले तो प्रत्यक्ष सुनो। __ 'ज्ञानी पुरुष' की वाणी प्रत्यक्ष सरस्वती है। किसी को दु:ख नहीं होता और सबकी आत्मा कबुल करती है। कोई आत्मा ना नहीं बोल सकती है। ना कौन बोलता है कि जो टेड़ा है, दुराग्रही है। मोक्ष चाहिये तो आपको आड़ापन निकालना होगा। मोक्ष नहीं चाहिये तो हमको कोई हर्ज नहीं। नहीं तो हमारी जो वाणी है, वो हरेक की आत्मा कबूल करती ही है। मछली पानी के बाहर रखें तो जैसी हालत होती है, छटपटाती है,
SR No.009585
Book TitleGyani Purush Ki Pahechaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size325 KB
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