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________________ दादा भगवान? धारा ही नहीं टूटती । वह धारा मुझे थी, ऐसी दशा थी। हाँ, कई दिनों तक लगातार वही चीज़ चलती रहती, धारा टूटती ही नहीं थी। मैंने शास्त्रों में देखा था कि भैया, यह दशा कौन सी है? तब मेरी समझ में आया कि यह तो ज्ञानक्षेपकवंत दशा बरतती है ! आपको किसकी आराधना ? प्रश्नकर्ता : लोग दादाजी के दर्शन को आते हैं पर दादाजी किसकी सेवा-पूजा करते हैं? उनके आराध्य देवता कौन हैं? दादाश्री : भीतर भगवान प्रकट हुए हैं, उनकी पूजा करता हूँ । 'मैं' और 'दादा भगवान' एक नहीं है प्रश्नकर्ता: फिर आप अपने को भगवान कैसे कहलवाते हैं? ७ दादाश्री : मैं खुद भगवान नहीं हूँ दादा भगवान को तो मैं भी नमस्कार करता हूँ। मैं खुद तीन सौ छप्पन डिग्री पर हूँ और दादा भगवान तीन सौ साठ डिग्री पर हैं। इस प्रकार मेरी चार डिग्री कम है, इसलिए मैं दादा भगवान को नमस्कार करता हूँ । प्रश्नकर्ता: ऐसा किस लिए? दादाश्री : क्योंकि मुझे अभी चार डिग्री पूरी करनी है। मुझे पूरी तो करनी होगी न? चार डिग्री अधूरी रही, अनुत्तीर्ण हुआ, पर फिर से उत्तीर्ण हुए बगैर छुटकारा है क्या? प्रश्नकर्ता: आपको भगवान बनने का मोह है? दादाश्री : भगवान बनना तो मुझे बोझ समान लगता है। मैं तो लघुत्तम पुरुष हूँ। इस संसार में कोई भी मुझ से लघु नहीं, ऐसा लघुत्तम पुरुष हूँ। प्रश्नकर्ता: यदि भगवान नहीं होना चाहते तो फिर यह चार डिग्री पूरी करने का पुरुषार्थ किस लिए करना ? ८ दादा भगवान ? दादाश्री : वह तो मेरे मोक्ष के हेतु। मुझे भगवान बनकर क्या पाना है? भगवान तो जो भी भगवत् गुण धारण करतें हैं, वे सभी भगवान होंगे। भगवान शब्द विशेषण है। जो भी मनुष्य उसके लिए तैयार होगा, लोग उसे भगवान कहेंगे ही। है? यहाँ प्रकट हुए, चौदह लोक के नाथ ! प्रश्नकर्ता: 'दादा भगवान' यह शब्द प्रयोग किसके लिए किया गया दादाश्री : दादा भगवान के लिए, मेरे लिए नहीं है। मैं तो ज्ञानी पुरुष हूँ । प्रश्नकर्ता: कौन से भगवान ? दादाश्री दादा भगवान, जो चौदह लोक के नाथ हैं। जो आपके भीतर भी हैं, पर आप में प्रकट नहीं हुए हैं। आपके भीतर अव्यक्त रूप में बसे हैं और 'यहाँ' (हमारे भीतर) व्यक्त हो गये हैं। जो व्यक्त हुए हैं, वे फल दे ऐसे हैं। एक बार भी हमारे बोलने पर काम बन जाएँ ऐसा है । पर यदि उन्हें पहचान कर बोले तो कल्याण हो जायें। यदि सांसारिक चीज़ों को लेकर कोई अड़चन होगी, वह अड़चन भी दूर हो जायेगी। पर उसमें लोभ मत करना। यदि लोभ करने गये तो कोई अंत ही नहीं आनेवाला। दादा भगवान कौन है, यह आपकी समझ में आया ? 'दादा भगवान' का स्वरूप क्या? प्रश्नकर्ता: दादा भगवान का स्वरूप क्या है? दादाश्री : दादा भगवान का स्वरूप कौन-सा ? भगवान, और कौनसा? जिसे इस वर्ल्ड (दुनिया) में किसी प्रकार की ममता नहीं है, जिसे अहंकार नहीं है, जिसमें बुद्धि नहीं है, वह दादा स्वरूप ! आत्मज्ञान से ऊपर और केवलज्ञान से नीचे ज्ञानीपुरुष को केवलज्ञान चार डिग्री कम पर अटका हुआ है और
SR No.009584
Book TitleDada Bhagvana Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size283 KB
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