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________________ दादा भगवान? दादा भगवान? आत्मज्ञान के ऊपर गया है। आत्मज्ञान से आगे निकल गया और केवलज्ञान के स्टेशन तक नहीं पहँचा है। इसमें बीचवाले हिस्से के जो ज्ञेय हैं. उनका पता जगत को नहीं होता। हम यह जो बोलते है न, उसमें से एक वाक्य का भी जगत को पता नहीं होता, भान ही नहीं होता। वैसे हमारे बोलने के बाद बुद्धि से उसे समझ में आ जाए, समझ में नहीं आये ऐसा नहीं है। बुद्धि वह प्रकाश है, उस प्रकाश के द्वारा सामनेवाला जो कहता है वह समझ में आ जाए कि बात सही है। पर फिर से उसे याद नहीं आता। सिर्फ ज्ञानीपुरुष का वाक्य ऐसा है कि उसमें वचनबल होने के कारण जरूरत हो तब हाज़िर होगा। जब संकट का समय आये न, तब वह वाक्य हाज़िर हो जाए, उसे वचनबल कहते हैं। __ संसार देखा मगर जाना नहीं पूर्ण रूप से हम केवलज्ञान में अनुत्तीर्ण हुए मनुष्य हैं। प्रश्नकर्ता : चार अंश माने वे कौन से चार अंश? दादाश्री : यह जो चारित्रमोह आपको नज़र आता है, इसकी भले ही मुझे मूर्छा नहीं हो, फिर भी सामनेवाले को नज़र आता है, इसलिए उतने अंश कम हो जाते हैं और दूसरा, संसार मेरी समझ में अवश्य आया है पर जानने में नहीं आया अब तक। केवलज्ञान माने जानने में भी आना चाहिये, जबकि यह तो समझ में ही आया है। प्रश्नकर्ता : जो जानने में नहीं आया हो, उसका भेद कैसे किया जाए? दादाश्री : समझ में आया है, जानने में नहीं आया है। यदि जानने में आया होता तो केवलज्ञान कहलाता। समझने में आया है इसलिए केवलदर्शन कहलाता है। प्रश्नकर्ता : यह 'जाना नहीं पर समझ में आया है' यह ज़रा समझ में नहीं आया। दादाश्री : समझ में माने यह जगत क्या है, कैसे उत्पन्न हुआ, मन क्या है, मन के फादर-मदर (माता-पिता) कौन है, यह बुद्धि क्या है, यह चित्त क्या है, अहंकार क्या है, मनुष्य का जन्म क्यों होता है, फलाँ का जन्म कैसे होता है, यह सब कैसे चलता है, कौन चलाता है, भगवान चलाते हैं कि अन्य कोई चलाता है, मैं कौन हूँ, आप कौन हैं, ये सारी बातें हमारी समझ में आ गई हैं और दिव्यचक्षु के द्वारा प्रत्येक जीव में आत्मा नज़र आता हो। अर्थात् सब कुछ समझ में आ गया हो, इसलिए उसे केवलदर्शन कहते हैं। बोलता है वह है टेपरिकार्ड दादाश्री : यह कौन बोल रहा है? आपसे कौन बात करता है ? प्रश्नकर्ता : उस ज्ञान का तो मुझे पता नहीं। दादाश्री : अर्थात् यह 'मैं' आपसे बात नहीं करता हूँ। 'मैं' तो क्षेत्रज्ञ के तौर पर देखा करता हूँ। 'मैं' अपने क्षेत्र में ही रहता हूँ। यह आपसे जो बात करता है वह तो रिकार्ड बात करता है, कम्पलीट (पूर्ण रूप से) रिकार्ड है। इसलिए इस पर से दूसरा रिकार्ड निकल सकता है और वह भी पूर्ण रूप से मिकेनिकल (यांत्रिक) रिकार्ड है। अर्थात् यह दिखाई देनेवाले भादरण के पटेल है और यह जो बोल रहा है (मुँह से जो वाणी निकल रही है) वह ऑरिजिनल टेपरिकार्ड है! और भीतर दादा भगवान प्रकट हुए हैं, उनके साथ रहता हूँ एकता से। और कभी बाहर निकलकर अंबालाल के साथ भी एकरूप होता हूँ। दोनों ओर व्यवहार करने देना होगा। अंबालाल के साथ भी आना होगा। इस समय व्यवहार में आया कहलाए यह, अन्यथा भीतर खुद अभेद रहे। गुरुपूर्णिमा के दिन पूर्णदशा में आत्मचंद्र हमारे यहाँ ये तीन दिन उत्तम कहलाएँ : नये साल का पहला दिन, जन्मजयंती और गुरुपूर्णिमा। ये तीन दिनों हम दूसरे किसी भी व्यक्ति के साथ कोई व्यवहार नहीं रखते, अर्थात् हम उस समय अपने पूर्ण स्वरूप में एकाकार होते हैं। मैं (ज्ञानी पुरुष) अपने स्वरूप में (दादा भगवान के
SR No.009584
Book TitleDada Bhagvana Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size283 KB
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