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________________ पदार्पण करनेवाले चमत्कारिक पुरुष को साक्षात् परमात्मा कहकर लोग नवाजते! और आज?!!! धर्म में चमत्कार आजकल बहुत देखने को मिलते हैं, जैसे कि माताजी किसीके शरीर में आती हैं, कुमकुम झरता है, हवा में से भस्म आती है, वस्तुएँ आती हैं वगैरह-वगैरह। हमारे लोग उससे खूब प्रभावित भी होते हैं। थोड़े समय के लिए अंत:करण वहाँ स्थंभित हो जाता है और दु:ख सारे विस्मृत हो जाते हैं और आशा की एक नवीन किरण प्रकट होती है कि, 'हा..., अब मेरे सब दुःख जाएँगे। देव-देवियों की कृपा बरसी!' पर थोड़े ही समय के बाद देखें तो सब वैसे का वैसा ही। एक चिंता कम नहीं हुई होती है। अंतरशांति थोड़ी भी नहीं हुई होती है। मात्र बार-बार याद करने लायक ही रहती है वह बात ! हाँ, लोगों को उतने समय तक धर्म में पकड़कर रखती है, उतना फायदा स्वीकार्य है। तरह-तरह की पारिवारिक, सामाजिक या व्यक्तिगत मुसीबतों में चारों तरफ से घिरे हए, फिर भी शांति से जीने के लिए अथक प्रयास कर रहे मनुष्यों को जरूरत है जलन में से ठंडक की ओर ले जाने की, अंधकार में से प्रकाश की तरफ रास्ता दिखाने की, न कि थोडे-बहत उजाले को भी घोर अंधेरा कर देने की! अध्यात्म के सच्चे मार्ग पर जानेवालों, नर में से नारायण पद पर जानेवालों की कक्षा के महान मूल पुरुषों ने कभी भी कोई चमत्कार किया नहीं और उन्होंने कभी भी चमत्कार को महत्व नहीं दिया है। बाद के संत, भक्त सामान्य प्रकार से समझी जा सकें, वैसी बातों को भी एक्जाजरेट (जरूरत से ज्यादा बड़ा दिखाकर) करके चमत्कारों की तरह दिखाते हैं। भक्ति के बावरेपन में भक्त भगवान को क्या नहीं कहते? वह भी स्वीकार्य है उनके लिए। पर आज हम पढ़े-लिखे समझदार लोगों को इतना तो सोचना चाहिए कि इन चमत्कारों का सहारा लेकर अंत में हमें मिला क्या? कृष्ण, राम या महावीर ने कोई चमत्कार नहीं किए थे और उस तरफ लोगों को भ्रमित भी नहीं किया था। वे खुद का आदर्श जीवन जी गए। जो आज लोगों को कथानुयोग की तरह काम में आता है और दूसरी तरफ अध्यात्म का अचीवमेन्ट कर गए जो कि लोगों को ज्ञान प्राप्ति की राह दिखाते हैं। संक्षेप में, आत्मा जानकर मोक्ष में ही जाने की ज्ञानवाणी का प्रतिबोध किया है। चमत्कार कौन ढूंढता है? ढूंढने की ज़रूरत किसे है? जिसे इस संसार के भौतिक सुखों की कामना है. फिर वह स्थल स्वरूप या सूक्ष्म स्वरूप की हो सकती है। और जिसे भौतिक सुखों से परे, ऐसे मात्र आत्मसुख पाने की लगन है, उन्हें आत्मसुख से परे, करनेवाले चमत्कारों की क्या ज़रूरत है? अध्यात्म जगत् में भी जहाँ अंतिम लक्ष्य तक पहुँचना है और वह है 'मैं कौन हूँ' की पहचान करनी, आत्म तत्त्व की पहचान करके निरंतर आत्मसुख में डूबे रहना है, वहाँ इस अनात्म विभाग के लुभानेवाले चमत्कारों में फँसने का स्थान कहाँ रहता है? मूल पुरुषों की मूल बात तो एक तरफ रही पर उनकी कथाएँ सुनते रहे, गाते रहे और उसमें से जीवन में कुछ उतारा नहीं और ज्ञान भाग को तो दबा ही दिया तले में! इन मल परुषों की मल बात को प्रकाश में लाकर चमत्कार से संबंधित अज्ञान मान्यताओं को परम पूज्य दादाश्री ने झकझोर दिया है। चमत्कार के बारे में सच्ची समझ दादाश्री ने बहुत कड़ी वाणी में प्रस्तुत की है। वाचक वर्ग को उसके पीछे का आशय समझने की विनती है। - डॉ. नीरुबहन अमीन के जय सच्चिदानंद
SR No.009581
Book TitleChamatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size228 KB
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