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________________ चमत्कार चमत्कार माना, उसका मुझे यह फल मिला है।' अब यह भी गलत था और वह 'चमत्कार किया' वह भी गलत था। मैंने ऐसा किया ही नहीं था। प्रश्नकर्ता : मंदिर में दादा त्रिमंत्र बोले, तभी चावल गिरे ऐसा क्यों हो, जादूगरी कहते हो, उसे चालाकी कहा और यह जो चावल की वृष्टि हुई, वह तो देवताओं की कृपा है। हुआ? दादाश्री: हाँ, तो कौन मना करता है? वह तो है ही न! पर उसे हम चमत्कार नहीं कहते। यह तो देवताओं की कृपा लगती है। पर अपने लोगों को यह चमत्कार शब्द बोलने की आदत है, वह हम निकालना चाहते हैं! मूर्ति में से अमृतवर्षा प्रश्नकर्ता : अब कितनी जगह पर मूर्तियों में प्राणप्रतिष्ठा करते हैं, उस समय अमृतवर्षा होती है, तो वह क्या वस्तु है? दादाश्री : वह तो निमित्त ऐसा बनता है न! मैं देखू न, तब उधर से डालते हैं। प्रश्नकर्ता : दादा निमित्त तो हैं न? दादाश्री : वह तो हमारी हाज़िरी से सब खुश होकर गिरते हैं कभी, पर उसमें मैंने किया नहीं है! प्रश्नकर्ता : वह तो चमत्कार कहलाएगा या नहीं? दादाश्री : ना, वह चमत्कार नहीं कहलाएगा। देवता ऐसा सब करते हैं, वह भी सिर्फ एक हेतु है उसके पीछे, कि लोगों की श्रद्धा बैठाने के लिए। प्रश्नकर्ता : हाँ, मनुष्य करे वह तो चमत्कार नहीं कहलाएगा, पर देवता करें वह चमत्कार नहीं कहलाएगा? दादाश्री : यदि वे देवता चमत्कार कर सकते तो फिर यहाँ मनुष्य में किसलिए आएँगे? उन्हें तो अवधिज्ञान भी है न, उन्हें जब जाने का समय आता है तब माला मुरझा जाती है.... तब उपाधि (बाहर से आनेवाला दुःख) होने लगती है कि अरेरे, यह तो तेली के वहाँ मेरा जन्म है! और आप चमत्कारवाले हो, फिर यहाँ किसलिए जन्म लेते हो? वहीं बैठे रहो न! सिर्फ तीर्थंकर अकेले ही न होनेवाली वस्तु कर सकते हैं, जो दूसरों से नहीं होती, उनका इतना सामर्थ्य है। पर वैसा करें तो उनका तीर्थकर पद चला जाएगा, तुरन्त खो देंगे! प्रश्नकर्ता : तो ये दो वस्तुएँ अलग हुईं। जो हाथ की सफाई कहते दादाश्री : जिनकी प्रतिष्ठा करते हैं न, उनके शासनदेव होते हैं, वे शासनदेव उनका महात्म्य बढ़ाने के लिए सभी रास्ते करते हैं। जितने मत हैं, उतने उनके शासनदेव होते हैं। वे शासनदेव अपने-अपने धर्म का रक्षण करते हैं। प्रश्नकर्ता : यहाँ पास में एक मंदिर है. वहाँ महोत्सव चल रहा है। तो दो दिन पहले वहाँ अमृतवर्षा हुई थी, और वह दो-तीन घंटे तक चली थी। फिर आज कहते हैं, वहाँ केसर के छींटे गिरे हैं। बहत पब्लिक वहाँ इकट्ठी हुई है। दादाश्री : पर घर जाकर फिर आपके मतभेद तो वैसे ही रहे न! क्रोध-मान-माया-लोभ वही के वही रहे। इसलिए अमृतवर्षा बरसे या नहीं बरसे उससे अपना कुछ बदला नहीं! प्रश्नकर्ता : पर अमृतवर्षावाली जो मूर्ति होती है, उनके दर्शन करने से कुछ लाभ तो होता होगा न, दादा? दादाश्री: लाभ होता हो तो घर जाकर मतभेद कम होने चाहिए न? ऐसी अमृतवर्षा कितनी ही बार हुई है, पर मतभेद किसीके कम नहीं हुए हैं। हमें मुख्य काम क्या है कि मतभेद कम होने चाहिए, क्रोध-मान
SR No.009581
Book TitleChamatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size228 KB
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