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________________ चमत्कार चमत्कार प्रश्नकर्ता : पर दादा, एक संत ने आम का पत्ता लेकर चमत्कार किए थे। ऐसे दो अनुभव मैंने खुद देखे हैं! दादाश्री : हाँ। पर वह जो पत्ता मँगवाया था, वह किसका पत्ता मँगवाया था? आम का न? अब उसके बदले, हम कहें कि, 'भाई, इस महुए का पत्ता है, वह लेगा?' तब वह कहेगा, 'नहीं, यह नहीं चलेगा। मुझे आम के पत्ते दो!' इसलिए हम यदि कहें कि इस महुए के पत्ते लेकर तू वैसा चमत्कार कर दे, तो वह नहीं हो सकेगा। मतलब ये सारे एविडेन्स हैं। यह 'स्टील' तो ऐसा है कि लाख चमत्कार करे तो भी मुड़े नहीं! प्रश्नकर्ता : तो ये सब निकालते हैं, राख और कुमकुम या चावल, वह जादूगरी है या चमत्कार है? दादाश्री : जादूगरी, हाथ की सफाई! हमें समझ में नहीं आता इसलिए अपने मन में ऐसा होता है कि चमत्कार किया। पर चमत्कार होगा किस तरह? उसे संडास जाने की शक्ति नहीं है, वह किस तरह चमत्कार करेगा?! चाहे जैसा हो, पर संडास जाने की शक्ति हो तो मझे कह कि मेरी शक्ति है और नहीं हो तो चमत्कार किस तरह करनेवाला है तू? प्रश्नकर्ता : तो फिर चमत्कार का जीवन में कितना स्थान है? चमत्कार अंधश्रद्धा की ओर ले जा सकता है क्या? की मनुष्य में शक्ति कैसे हो सकती है? भगवान में वह शक्ति नहीं थी। कृष्ण भगवान जैसे बड़े व्यक्ति चमत्कार के बारे में कुछ बोले नहीं और ये सामान्य लोग, बिना काम के बोलते रहते हैं! यह बहुत अधिक बोलने का कारण क्या है कि इन लोगों ने हिन्दुस्तान पर बहुत अत्याचार किया है। यह नहीं होना चाहिए। जब कि मुझे उन लोगों के प्रति चिढ़ नहीं है, किसी व्यक्ति के प्रति मुझे चिढ़ नहीं है। मनुष्य तो जो करता है, वह कर्माधीन है। पर आप उसे सत्य मनवाते हो? ऐसा करवाते हो? क्या लाभ उठाना है आपको? लाभ उठाने के लिए ही होता है न ऐसा? जिसे लाभ नहीं उठाना हो, वह कहता है कुछ? और फिर भी उस सिलोनवाले वैज्ञानिक ने कहा कि, 'चमत्कार साबित कर दो, तो उसे मैं लाख रुपये का इनाम दूँगा।' तब क्यों कोई लाख रुपये लेने नहीं गया? तब ये सब कहाँ गए थे? क्योंकि पूछनेवाले होते हैं न वे, लाख रुपये देनेवाला कोई ऐसा-वैसा होगा? ऐसे पूछेगा, वैसे पूछेगा, उसका दिमाग घुमा देगा, उस घड़ी वे सभी भाग जाएँगे। बड़े-बड़े 'जज' वहाँ बैठे हों, तो वे तुरन्त ही पकड़ लेंगे कि यह चमत्कार यहाँ नहीं चलेगा। इन लोगों ने चमत्कार के बारे में बहुत गलत दिमाग़ में फिट कर दिया है, पर अपने लोग भी लालची हैं ! इसलिए ही यह सब झंझट है न! फ़ॉरेन में भी चमत्कार चलते हैं। वे भी थोड़े-थोड़े लालची हैं। ये तो 'मेरा बेटा है न, उसके वहाँ बेटा नहीं है' ऐसा कहते हैं। अरे, तेरा तो बेटा है न? यह सिलसिला कब तक चलेगा? यह तो लौकी के पीछे दूसरी लौकी उगती ही रहती है। कोई एक ही लौकी उगनेवाली है? बेल चढ़ी उतनी लौकियाँ उगती रहती हैं। बस, यह एक ही लालच, 'मेरे बेटे के घर बेटा नहीं है।' दादाश्री : यह सारी अंधश्रद्धा, वही चमत्कार है। इसलिए चमत्कार करते हैं न, वह कहनेवाला ही अंधश्रद्धालु हैं। खुद अपने आप को मूर्ख बनाता है तो भी नहीं समझता ! मैं तो इतना आपको सिखाता है कि हमें चमत्कार करनेवाले से पूछना चाहिए कि, 'साहब, कभी संडास जाते हो?' तब वह कहे, 'हाँ।' तो हम उसे पूछे 'तो वह आप बंद कर सकते हो? या फिर उसकी आपके हाथ में सत्ता है?' तब वह कहे, 'नहीं।''तो फिर संडास जाने की आपमें शक्ति नहीं है, तो किसलिए इन सब लोगों को मूर्ख बनाते हो?' कहें। इसलिए चमत्कार का जीवन में स्थान नहीं है! यह चमत्कार करने बाक़ी. चमत्कार जैसी वस्तु नहीं है और तू चमत्कार करनेवाला हो तो ऐसा चमत्कार कर न कि भाई, इस देश को अनाज बाहर से नहीं लाना पड़े। इतना कर न, तो भी बहुत हो गया। वैसा चमत्कार कर। ये यों ही राख निकालता है और कुमकुम निकालता है, वैसे लोगों को मूर्ख बनाता है। दूसरे चमत्कार क्यों नहीं करता? वही का वही कमकुम और
SR No.009581
Book TitleChamatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size228 KB
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