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________________ चमत्कार चमत्कार रखा गया। बहुत लोग इकट्ठे नहीं हुए थे। दस हम और दूसरे पाँचपच्चीस लोग थे। वहाँ मैंने यह प्रयोग किया और एक स्टोव मँगवाया, कागज़ की कढ़ाई बनाई और पकौड़ी का घोल बनाया। ऐसे पकौड़ियाँ तो मुझे बनानी आती थीं। बचपन में खाने की आदत थी न, इसलिए घर पर कोई नहीं हो तो हम खुद ही बनाकर खा लें। इसलिए ये यहाँ पर मैंने तो तेल रखा और कढ़ाई स्टोव पर रखते ही पहले मैंने क्या किया? ऐसा किया। हाथ ऊँचे-नीचे करके जादुमंतर बोले, वह अभिनय किया। इसलिए वे लोग सब ऐसे समझे कि यह कुछ मंत्र पढ़ा। क्योंकि वैसा नहीं करूँ तो वे लोग डर जाएँ। मतलब हिम्मत रहे इसलिए किया। नहीं तो उनके डर का असर मुझ पर पड़ता, 'साइकोलोजी' पड़ती है न? कि अभी जल जाएगा! वह मंत्र पढ़ा न इसलिए लोग उत्कंठा से देखते ही रहे कि कोई मंत्र पढ़ा होगा! फिर मैंने कढ़ाई स्टोव पर रखी। पर जली नहीं इसलिए वे समझे कि मैंने ज़रूर मंत्र बोला है! तेल गरम हुआ और फिर एक-एक पकौड़ी अंदर रखी। पकौडी तो अंदर पकने लगीं! फिर दस-बारह पकौड़ियाँ बनाई और सबको एक-एक खिलाई। जरा शायद कच्ची रह गई होगी। क्योंकि यह बड़ा नहीं बनता न! बर्तन छोटा न! यह तो सिर्फ उतना उन्हें समझाने के लिए करना था कि यह हो सकता है। फिर सब मुझे कहने लगे कि, 'आप तो चमत्कार करना जानते हो, नहीं तो यह तो कहीं होता है?' मैंने कहा, 'यह तुझे सिखाऊँ तब तू भी कर सकेगा। जो दूसरों को आता है, उसे चमत्कार नहीं कह सकते।' मैं आपको एक बार कागज़ की कढ़ाई में पकौड़ियाँ बनाकर बताऊँ इसलिए फिर दूसरे दिन फिर आप बना सकोगे। आपको श्रद्धा बैठ जानी चाहिए कि यह मंत्र बोले बिना हो सकता है। तब आपसे हो सकेगा! यानी कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है कि जिसे चमत्कार आता हो। यह तो सब विज्ञान है। विज्ञान का स्वभाव है, यदि कागज़ में तेल रखो तो कैसी स्थिति में कागज़ जल जाता है और कैसी स्थिति में कागज़ नहीं जलता, वह विज्ञान जानता है। नीचे स्टोव जले. ऊपर तेल है, पर कौनसी स्थिति में कागज़ नहीं जलता! यह तो मैंने खुद अनुभव किया है। प्रश्नकर्ता : कागज़ जला नहीं, वह किस तरह? दादाश्री : उसका तरीका नहीं है, वह तो कागज़ का स्वभाव ही ऐसा है कि यदि नीचे थोड़ा भी तेल लगा हुआ होता न, तो विस्फोट होता। प्रश्नकर्ता : पर कागज़ तो तेल सोखता है न? दादाश्री : हाँ, तेल सोखता है। अंदर तेल सोखा हआ दिखता है हमें। उसका दाग़ दिखता है। पर तेल टपकाता हुआ नहीं दिखता। आश्चर्य है यह एक! और वह कागज़ का वैज्ञानिक स्वभाव है। पर बुद्धि तो ऐसा ही कहेगी न कि कागज़ को अग्नि जला देती है और तेलवाला है, इसलिए जल्दी जल जाएगा। पर नहीं, कागज़ के नीचे तेल टपक रहा होता तो जल जाता। इसलिए विज्ञान की कितनी ही बातें जाननी चाहिए। यह तो उनकी मति पहुँचती नहीं है, इसलिए इसे चमत्कार की तरह लोग एक्सेप्ट भी करते हैं ! मति पहुँचती हो, उसे दूसरे विचार भी आएँगे ! ये बड़ेबड़े दर्पण रखते हैं, वे धड़ाक से टूट जाते हैं! उसे सब लोग, चमत्कार किया, ऐसा कहते हैं। पर यह तो सब औषधियाँ हैं विज्ञान की! यानी कोई देहधारी मनुष्य चमत्कार नहीं कर सकता। और या तो हम उस विज्ञान के जानकार नहीं हों, तो वह विज्ञानवाला मनुष्य हमें मूर्ख बनाता है कि 'यह देखो मैं करता हूँ।' तब हमें ऐसा लगता है कि यह चमत्कार किया और विज्ञान जानने के बाद वह चमत्कार दो टके का! भगवान ने भी भोगे कर्म इसलिए यह सब फँसाव है। और सभी का मानना चाहिए, पर वह साइन्स कबूल करे वैसा हो तो मानना चाहिए। ऐसे गप्प नहीं होनी चाहिए। ऐसा गलत नहीं होना चाहिए। क्योंकि कृष्ण भगवान को आप जानते हो? ये कृष्ण भगवान ऐसे पैर पर पैर चढ़ाकर सो गए थे और शिकारी को ऐसा लगा कि हिरण है वह। उस बेचारे ने तीर मारा। और तीर लगा और भगवान ने देह छोड़ दी, वह बात जानते हो? जबकि वे
SR No.009581
Book TitleChamatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size228 KB
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