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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य ८७ संसार जीतने के लिए एक ही चाबी बताता हूँ कि विषय यदि विषयरूप नहीं हो तो सारा संसार जीत जाएँगे, क्योंकि वह फिर शीलवान में गिना जाएगा। संसार का परिवर्तन कर सकते हैं । आपका शील देखकर ही सामनेवाले में परिवर्तन हो जाएगा। वर्ना कोई परिवर्तन पाता ही नहीं। उल्टें विपरित होता है। अभी तो सारा शील ही समाप्त हो गया है! चौबीसों तीर्थकरों ने कहा कि एकांत शैयासन! क्योंकि दो प्रकृतियाँ एकरूप, पूर्णतया 'एडजस्टेबल' होती नहीं हैं। इसलिए 'डिस्एडजस्ट' होती रहेंगी और इसलिए संसार खड़ा होगा। इसलिए भगवान ने खोज निकाला कि एकांत शैया और आसन । खंड : २ आत्मजागृति से ब्रह्मचर्य का मार्ग १. विषयी स्पंदन, मात्र जोखिम विषयों से भगवान भी डरे हैं। वीतराग किसी वस्तु से डरे नहीं थे, किन्तु वे एक विषय से डरे थे। डरे अर्थात् क्या कि जैसे साँप आए तो प्रत्येक मनुष्य पैर ऊपर कर लेता है कि नहीं करता? २. विषय भूख की भयानकता जिसे खाने में असंतोष है उसका चित्त भोजन में जाता है और जहाँ होटल देखा वहाँ आकर्षित होता है, परंतु क्या खाना ही अकेला विषय है? यह तो पाँच इन्द्रियाँ और उनके कितने ही विषय हैं! खाने का असंतोष हो तो खाना आकर्षित करता है, वैसे ही जिसे देखने का असंतोष है वह यहाँ-वहाँ आँखे ही घुमाता रहता है। पुरुष को स्त्री का असंतोष हो और स्त्री को पुरुष का असंतोष हो तो फिर चित्त वहाँ खिंचता है। इसे भगवान ने 'मोह' कहा। देखते ही खिंचता है। स्त्री नज़र आई कि चित्त चिपक जाता है। 'यह स्त्री है' ऐसा देखते हैं। वह पुरुष के भीतर रोग हो तभी स्त्री ८८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य दिखती है, वर्ना आत्मा ही दिखे और 'यह पुरुष है' ऐसा देखती है, वह उस स्त्री का रोग है । निरोगी हो तो मोक्ष होता है। अभी हमारी निरोगी अवस्था है। इसलिए मुझे ऐसा विचार ही नहीं आता है। स्त्री-पुरुष को एक दूसरे को छूना नहीं चाहिए, बड़ा जोखिम है । जब तक पूर्ण नहीं हुए हैं, तब तक नहीं छू सकते। वर्ना एक परमाणु भी विषय का प्रवेश करे तो कई जन्म बिगाड़ डाले। हम में तो विषय का परमाणु ही नहीं है। एक परमाणु भी बिगड़े तो तुरंत ही प्रतिक्रमण करना पड़े। प्रतिक्रमण करने पर सामनेवाले को ( विषय का) भाव उत्पन्न नहीं होता। एक तो अपने स्वरूप का अज्ञान और वर्तमानकाल का ज्ञान इसलिए फिर उसे राग उत्पन्न होता है। बाकी यदि उसकी समझ में यह आए कि यह गर्भ में थी तब ऐसी दिखती थी, जन्म हुआ तब ऐसी दिखती थी, छोटी बच्ची थी तब ऐसी दिखती थी, बाद में ऐसी दिखती थी, अभी ऐसी दिखती है, बाद में ऐसी दिखेगी, बुड्ढी होने पर ऐसी दिखेगी, पक्षाघात हो जाए तो ऐसी दिखेगी, अरथी उठेगी तब ऐसी दिखेगी, ऐसी सभी अवस्थाएँ जिसके लक्ष्य में है, उसे वैराग्य सिखाना नहीं होता! यह तो जो आज का दिखता है उसे देखकर ही मूर्छित हो जाते हैं। ३. विषय सुख में दावे अनंत इन चार इन्द्रियों के विषय कोई परेशानी नहीं करते, किन्तु यह जो पाँचवा जो विषय है स्पर्श का, वह तो सामनेवाले जीवंत व्यक्ति के साथ है। वह व्यक्ति दावा दायर करे ऐसी है। अतः यह अकेले इस स्त्री विषय में ही हर्ज है। यह तो जीवित 'फाइल' कहलाए। हम कहें कि अब मुझे विषय बंद करना है तब वह कहे कि यह नहीं चलेगा। तब शादी क्यों की? अर्थात् यह जीवित 'फाइल' तो दावा दायर करेगी और दावा दायर करे तो हमें कैसे पुसाए? अर्थात् जीवित के साथ विषय ही नहीं करना । दो मन एकाकार हो ही नहीं सकते। इसलिए दावे ही शुरू हो जाते हैं। इस विषय के अलावा अन्य सभी विषयों में एक मन है, एकपक्ष है,
SR No.009580
Book TitleBrahamacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages55
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size47 KB
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