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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य दादाश्री : हमारी नियत चोर है, वह वृत्ति। हक़ का छोड़कर दूसरी किसी जगह पर 'प्रसंग' हुआ तो वह स्त्री जहाँ जाए, वहाँ हमें जन्म लेना पड़ता है। वह अधोगति में जाए तो हमें वहाँ जाना पड़े। आजकल बाहर तो सब यही चल रहा है। 'कहाँ जन्म होगा' उसका कोई ठिकाना ही नहीं है। बिना हक़ के विषय जिसने भोगे. उसे तो भयंकर यातनाएँ भुगतनी पड़ती है। उसकी बेटी भी किसी एक जन्म में चरित्रहीन होती है। नियम कैसा है कि जिसके साथ बिना हक़ के विषय भोगे होंगे वही फिर माँ अथवा बेटी बनती है। हक़ के विषय के लिए तो भगवान ने भी मना नहीं किया है। भगवान मना करें तो भगवान गुनहगार ठहरें। बिना हक़ के लिए तो मना ही है। यदि पछतावा करे तो भी छूट जाए। लेकिन ये तो बिना हक़ का आनंद के साथ भोगते हैं, इसलिए गाँठ पक्की हो जाती है। बिना हक़ का भोगने में तो पाँचों महाव्रतों का दोष आ जाता है। उसमें हिंसा होती है, झठ आ जाता है. यह खलेआम चोरी कहलाती है। बिना हक़ का तो सरेआम चोरी कहलाता है। फिर अब्रह्मचर्य तो है ही और पाँचवा परिग्रह। यह तो सबसे बडा परिग्रह है। हक़ के विषयवालों का मोक्ष है मगर बिना हक़ के विषयवालों का मोक्ष नहीं है, ऐसा भगवान ने कहा है। इन लोगों को तो कोई होश ही नहीं होता न! हरहा (भागा फिरनेवाला निरंकुश पशु, जिसका कोई मालिक न हो) की तरह होते हैं। हरहा का मतलब आप समझ गए? आपने देखा है कोई हरहा? हरहा यानी जिसका हाथ में आए उसका खा जाए। ऐसे भैंस-बंधु को आप जानते हैं न? वे सभी खेतों का सफाया ही कर देते हैं। बहुत कम लोग हैं कि जिन्हें इसका कुछ महत्व समझ में आया है। बाकी तो जब तक मिला नहीं तब तक हरहा नहीं हए! मिला कि हरहा होते देर नहीं लगती। यह हमें शोभा नहीं देता। हमारे हिन्दस्तान की कैसी विकसित प्रजा! हमें तो मोक्ष पाना है। ६८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य अब्रह्मचर्य का तो ऐसा है कि इस जन्म में पत्नी हुई हो, अथवा तो दूसरी रखैल हो तो अगले जन्म में खुद की बेटी बनकर आए ऐसी इस संसार की विचित्रता है! इसीलिए तो समझदार पुरुष ब्रह्मचर्य का पालन करके मोक्ष में गए हैं न! ४. एक पत्नीव्रत का अर्थ ही ब्रह्मचर्य जिसने शादी की है, उसके लिए तो हमने एक ही नियम रखा है कि तुझे दूसरी किसी स्त्री की ओर दृष्टि नहीं बिगाड़नी है। यदि कभी दृष्टि ऐसी हो जाए तो प्रतिक्रमण करके तय करना कि ऐसा फिर से नहीं करूंगा। खुद की स्त्री के सिवाय दूसरी स्त्री को देखता नहीं, दूसरी स्त्री पर जिसकी दृष्टि रहती नहीं है, दृष्टि जाए फिर भी उसके मन में विकारी भाव होता नहीं, विकारी भाव हो तो खुद बहुत पछतावा करता है, वह इस काल में एक स्त्री होने के बावजूद भी ब्रह्मचर्य कहलाता है। आज से तीन हजार साल पहले हिन्दुस्तान में सौ में से नब्बे मनुष्य एक पत्नीव्रत का पालन करते थे। एक पत्नीव्रत और एक पतिव्रत का पालन, कैसे अच्छे मनुष्य कहलाएँ वे! जब कि आज शायद ही हजार में एक होगा! प्रश्नकर्ता : मान लीजिए कि दो वाइफ हों तो वह क्यों खराब है? दादाश्री : रखो न दो वाइफ। रखने में हर्ज नहीं है। पाँच वाइफ रखो तो भी हर्ज नहीं है। लेकिन दूसरी किसी पर दृष्टि नहीं बिगाडो. दुसरी स्त्री जा रही हो, उस पर दृष्टि बिगाड़े तो बुरा कहलाए है। कुछ नीतिनियम तो होने चाहिए न? दूसरी बार ब्याहने में हर्ज नहीं है। मसलमानों ने एक कानुन निकाला कि बाहर दृष्टि बिगाड़नी नहीं चाहिए। बाहर किसी को छेड़ना नहीं चाहिए। यदि आप एक स्त्री से संतुष्ट नहीं हैं तो दो कीजिए। उन लोगों का कानून है कि चार तक आपको छूट है! और यदि अनकलता है तो चार कीजिए न? कौन मना करता है? लोग भले ही चिल्लाएँ। परन्तु अपनी स्त्री को दुःख नहीं होना चाहिए।
SR No.009580
Book TitleBrahamacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages55
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size47 KB
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