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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य ६५ मालूम ही नहीं कि विषय क्या है? एक बार के विषय में करोड़ों जीवों का घात होता है, एकबार में ही यह नहीं समझने के कारण यहाँ मौज उड़ाते हैं। समझते ही नहीं! मजबूरन जीव मरें ऐसा होना चाहिए। लेकिन समझ नहीं हो, वहाँ क्या किया जाए? यह हमारा थर्मामीटर मिला है। इसलिए हम कहते हैं न, कि स्त्री के साथ मोक्ष दिया है! अब आपको जैसा सदुपयोग करना हो वैसा करना । ऐसी सरलता किसी ने नहीं दी। बहुत सरल और सीधा मार्ग रखा है। अतिशय सरल! ऐसा हुआ नहीं! यह निर्मल मार्ग है, भगवान भी स्वीकार करें, ऐसा मार्ग है ! प्रश्नकर्ता: वाइफ (पत्नी) की इच्छा नहीं हो और हसबंड (पति) के फोर्स से दवाई पीनी पड़े, तब क्या करना चाहिए? दादाश्री : पर अब क्या करें? किसने कहा था कि शादी कर ? प्रश्नकर्ता: भुगते उसीकी भूल। लेकिन दादाजी कुछ ऐसी दवाई बताइए कि सामनेवाले मनुष्य का प्रतिक्रमण करें, कुछ करें तो कम हो जाए। दादाश्री : वह तो यह बात खुद समझने से, उसे बात समझाने से कि दादाजी ने कहा है कि यह बार-बार पीने जैसी चीज़ नहीं है। जरा सीधे चलिए। महीने में छ:- आठ दिन दवाई लेनी चाहिए। हमारा शरीर अच्छा रहे, दिमाग अच्छा रहे तो फाइल का निकाल हो । अतः हम अक्रम विज्ञान में तो खुद की स्त्री के साथ होते अब्रह्मचर्य व्यवहार को ब्रह्मचर्य कहते हैं। किन्तु वह विनयपूर्वक का और बाहर किसी स्त्री पर दृष्टि नहीं बिगड़नी चाहिए। दृष्टि बिगड़े तो तुरंत हटा देनी चाहिए। ऐसा हो तब उसे इस काल में हम 'ब्रह्मचारी' कहते हैं। अन्य जगह दृष्टि नहीं बिगड़ती इसलिए 'ब्रह्मचारी' कहते हैं। यह क्या ऐसा-वैसा पद कहलाए ? और फिर लम्बे समय के बाद उसे समझ में आए कि इसमें भी बहुत भूल है, तब हक़ का भी विषय छोड़ देता है । ६६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य २. दृष्टि दोष के जोखिम अभी तो सब ओपन (खुला) बाज़ार ही हो गया है। इसलिए शाम होते ऐसा लगता है कि कोई सौदा ही नहीं किया, मगर यों ही बारह सौदे हो गए होते हैं, यों देखने से ही सौदा हो जाता है। दूसरे सौदे तो होनेवाले होंगे वे तो होंगे, पर यह तो केवल देखने से ही सौदा हो जाता है! हमारा ज्ञान हो तो ऐसा नहीं होता। स्त्री जा रही हो तो आपको उसमें शुद्धात्मा दिखें, किन्तु दूसरे लोगों को शुद्धात्मा कैसे दिखें? किसी के यहाँ शादी में गए हों, उस दिन तो हम बहुत कुछ देखते हैं न? सौ एक सौदे हो जाते हैं न? अतः ऐसा है सब ! उसमें तेरा दोष नहीं है। मनुष्य मात्र को ऐसा हो ही जाता है, क्योंकि आकर्षणवाला देखे तो दृष्टि खिंच ही जाती है। उसमें स्त्रियों को भी ऐसा और पुरुषों को भी ऐसा, आकर्षणवाला देखा कि सौदा हो ही जाता है। विषय बुद्धि से दूर हो जाएँ ऐसा है। मैंने विषय बुद्धि से ही दूर किए थे। ज्ञान नहीं हो फिर भी विषय बुद्धि से दूर हो सकते हैं। यह तो कम बुद्धिवाले हैं, इससे विषय में टिके हैं। ३. बिना हक़ की गुनहगारी यदि तू संसारी है तो तेरे हक़ का विषय भोगना, परंतु बिना हक़ का विषय तो मत ही भोगना, क्योंकि उसका फल भयंकर है। और यदि तू त्यागी हो तो तेरी विषय की ओर दृष्टि ही नहीं जानी चाहिए। बिना हक़ का ले लेना, बिना हक़ की इच्छा रखना, बिना हक़ के विषय भोगने की भावना करना, वे सभी पाशवता कहलाएँ। हक़ और बिना हक़, इन दोनों के बीच लाईन ऑफ डिमार्केशन (भेदरेखा) तो होनी चाहिए न? और उस डिमार्केशन लाईन के बाहर निकलना ही नहीं। फिर भी लोग डिमार्केशन लाईन के बाहर निकले हैं न? वही पाशवता कहलाती है। प्रश्नकर्ता: बिना हक़ का भोगने में कौन-सी वृत्ति घसीट ले जाती है?
SR No.009580
Book TitleBrahamacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages55
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size47 KB
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