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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य लगती है, वैसे ही तुरंत नहीं होगा। अभी, एकदम से नहीं होगा। प्रश्नकर्ता : स्वप्नदोष क्यों होता होगा? दादाश्री : ऊपर पानी की टंकी हो, और उसमें से पानी नीचे गिरने लगे तो हम नहीं समझें कि छलक गई ! स्वप्नदोष अर्थात् छलकना। टंकी छलक गई! उसके लिए कॉक नहीं रखना चाहिए? आहार पर नियंत्रण रखेंगे तो स्वप्नदोष नहीं होगा। इसलिए ये महाराज एक बार ही आहार लेते हैं न वहाँ! और कछ लेते ही नहीं. चायवाय कुछ नहीं लेते। प्रश्नकर्ता : उसमें रात्रि भोजन का महत्व है, रात्रि भोजन कम करना चाहिए। दादाश्री: रात में भोजन ही नहीं लेना चाहिए। यह महाराज एक ही बार आहार करते हैं। फिर भी अगर डिस्चार्ज हो उसमें हर्ज नहीं है। यह तो भगवान ने कहा है कि हर्ज नहीं। वह तो जब भर जाता है तब ढक्कन खुल जाता है। ब्रह्मचर्य ऊर्ध्वगमन हुआ नहीं है, तब तक अधोगमन ही होता है। ऊर्ध्वगमन तो ब्रह्मचर्य का निश्चय किया तब से ही शुरू होता है। सावधान होकर चलना अच्छा। महीने में चार बार डिस्चार्ज हो तो भी हर्ज नहीं है। हमें जान-बूझकर डिस्चार्ज नहीं करना चाहिए। वह गुनाह है, आत्महत्या कहलाए। यों ही हो जाए उसमें हर्ज नहीं है। यह सब उलटासीधा खाने का परिणाम है। ऐसी डिस्चार्ज की कौन देगा? वे लोग कहते हैं, डिस्चार्ज भी नहीं होना चाहिए। तब कहें, 'क्या मैं मर जाऊँ? कुएँ में जा गिरूँ?' प्रश्नकर्ता : वीर्य का गलन होता है, वह पुद्गल के स्वभाव में होता है या किसी जगह हमारा लीकेज होता है, इसलिए होता है? दादाश्री : हम देखें और हमारी दृष्टि बिगड़ी, तब वीर्य का कुछ ४४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य भाग 'एग्जॉस्ट' (स्खलित) हो गया कहलाता है। प्रश्नकर्ता : वह तो विचारों से भी हो जाता है। दादाश्री : विचारों से भी 'एग्जॉस्ट' होता है, दृष्टि से भी 'एग्जॉस्ट' होता है। वह 'एग्जॉस्ट' हुआ माल फिर डिस्चार्ज होता रहता है। प्रश्नकर्ता : पर ये जो ब्रह्मचारी हैं, उन्हें तो कुछ ऐसे संयोग नहीं होते, वे स्त्रियों से दूर रहते हैं, तसवीरें नहीं रखते, केलेन्डर नहीं रखते हैं, फिर भी उन्हें डिस्चार्ज हो जाता है, तो उनका स्वाभाविक डिस्चार्ज नहीं कहलाता? दादाश्री : फिर भी उन्हें मन में यह सब दिखता है। दूसरे, वे आहार अधिक लेते हो और उसका वीर्य अधिक बनता हो, फिर वह प्रवाह बह जाता हो ऐसा भी हो सकता है। वीर्य का स्खलन किसे नहीं होता? जिसका वीर्य बहुत मज़बूत हो गया हो, बहुत गाढ़ा हो गया हो, उसे नहीं होता। यह तो सभी पतले हो गये वीर्य कहलाएँ। प्रश्नकर्ता : मनोबल से भी उसे रोका जा सकता है? दादाश्री : मनोबल तो बहुत काम करता है। मनोबल ही काम करता है पर वह ज्ञानपूर्वक होना चाहिए। यों ही मनोबल टिकता नहीं न! प्रश्नकर्ता : स्वप्न में डिस्चार्ज जो होता है, वह पिछला घाटा है? दादाश्री : उसका कोई सवाल नहीं। ये पिछले घाटे सभी स्वप्नावस्था में चले जाएंगे। स्वप्नावस्था के लिए हम किसी को गुनहगार नहीं मानते हैं। हम जागृत अवस्था (में डिस्चार्ज करनेवाले) को गुनहगार मानते हैं, खुली आँख से जागृत अवस्था ! फिर भी स्वप्नावस्था में जो हो जाता है उसे बिलकुल नज़रअंदाज़ करने जैसा नहीं है, वहाँ सावधानी बरतना। स्वप्नावस्था के बाद सबेरे पछतावा करना पड़ता है। उसका प्रतिक्रमण करना होगा कि दुबारा ऐसा नहीं हो। हमारी पाँच आज्ञा का पालन
SR No.009580
Book TitleBrahamacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages55
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size47 KB
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