SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य ४२ दादाश्री : उस रक्त का फिर क्या होता है? प्रश्नकर्ता : रक्त से वीर्य होता है। दादाश्री : ऐसा? वीर्य को समझता है? रक्त से वीर्य होगा, उस वीर्य का फिर क्या होगा? रक्त की सात धातुएँ कहते हैं न? उनमें एक से हड्डियाँ बनती है, एक से मांस बनता है, उनमें से फिर अंत में वीर्य बनता है। आखरी दशा वीर्य होती है। वीर्य पुद्गलसार कहलाता है। दूध का सार घी कहलाता है, ऐसे ही यह जो आहार ग्रहण किया उसका सार वीर्य कहलाता है। लोकसार मोक्ष है और पुद्गलसार वीर्य है। संसार की सारी चीजें अधोगामी हैं। वीर्य अकेला ही यदि चाहें तो ऊर्ध्वगामी हो सकता है। इसलिए वीर्य ऊर्ध्वगामी हो ऐसी भावना करनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : इस ज्ञान में रहें तो अपने आप ऊर्ध्वगमन होगा ही न? दादाश्री : हाँ, और यह ज्ञान ही ऐसा है कि यदि इस ज्ञान में रहें तो कोई हर्ज नहीं है, पर अज्ञान खड़ा हो जाए तब भीतर यह रोग पैदा होता है। उस समय जागृति रखनी पड़ती है। विषय में तो अत्याधिक हिंसा है, खाने-पीने में कुछ ऐसी हिंसा नहीं होती है। इस संसार में साइन्टिस्ट आदि सब लोग कहते हैं कि वीर्य-रज अधोगामी है। मगर अज्ञानता के कारण अधोगामी है। ज्ञान में तो ऊर्ध्वगामी होता है, क्योंकि ज्ञान का प्रभाव है न! ज्ञान हो तो कोई विकार ही नहीं होता है। प्रश्नकर्ता : आत्मवीर्य प्रकट हो तब उसमें क्या होता है? दादाश्री : आत्मा की शक्ति बहुत बढ़ जाती है। प्रश्नकर्ता : तब यह जो दर्शन है, जागृति है वह और उस आत्मवीर्य का, उन दोनों का कनेक्शन क्या है? दादाश्री : जागृति आत्मवीर्य कहलाती है। आत्मवीर्य का अभाव समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य हो तो वह व्यवहार का सोल्युशन नहीं करता, पर व्यवहार को हटाकर अलग कर देता है। आत्मवीर्यवाला तो कहेगा, 'चाहे जो भी आए', उसे उलझन नहीं होती। अब वे शक्तियाँ उत्पन्न होंगी। प्रश्नकर्ता : वे शक्तियाँ ब्रह्मचर्य से पैदा होती हैं? दादाश्री: हाँ, यदि ब्रह्मचर्य अच्छी तरह से पाला जाए तब और ज़रा-सा भी लीकेज नहीं होना चाहिए। यह तो क्या हुआ है कि व्यवहार सीखे नहीं और यों ही यह सब हाथ में आ गया है! जहाँ रुचि वहाँ आत्मा का वीर्य बरतेगा। इन लोगों की रुचि किसमें है? आईस्क्रीम में है पर आत्मा में नहीं। यह संसार रुचे नहीं, बहुत सुंदर से संदर चीज़ ज़रा भी रुचे नहीं। सिर्फ आत्मा की ओर ही रुचि रहा करे, रुचि बदल जाए। और जब देहवीर्य प्रकट होता है तब आत्मा की रुचि नहीं होती। प्रश्नकर्ता : आत्मवीर्य प्रकट होना, किस प्रकार होता है? दादाश्री : निश्चय किया हो और हमारी आज्ञा पाले. तब से उर्ध्वगति में जाता है। वीर्य को ऐसी आदत नहीं है, अधोगति में जाने की। वह तो खुद का निश्चय नहीं है इसलिए अधोगति में जाता है। निश्चय किया तो फिर दूसरी ओर मुड़ता है। फिर चेहरे पर दूसरों को तेज दिखने लगता है और यदि ब्रह्मचर्य पालते हुए चेहरे पर कोई असर नहीं हो, तो 'ब्रह्मचर्य पूर्ण रूप से पालन नहीं किया' ऐसा कहलाए। प्रश्नकर्ता : वीर्य का ऊर्ध्वगमन शुरू होनेवाला हो तो उसके लक्षण क्या हैं? दादाश्री : तेज आने लगता है, मनोबल बढ़ता जाता है, वाणी फर्स्ट क्लास (बहुत अच्छी) निकलती है, वाणी मिठासवाली होती है, वर्तन मिठासवाला होता है। ये सारे उसके लक्षण होते हैं। ऐसा होने में तो देर
SR No.009580
Book TitleBrahamacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages55
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size47 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy