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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य नहीं है। मात्र बिलीफ़ हैं। बिलीफ़ तोड़ डालें तो कुछ भी नहीं है। प्रश्नकर्ता : वह मान्यता खड़ी होती है, वह संयोग के मिलने के कारण होती है? दादाश्री : लोगों के कहने से हमें मान्यता होती है और आत्मा की उपस्थिति में मान्यता होती है इसलिए दृढ़ हो जाती है वर्ना उसमें ऐसा क्या है? केवल मांस के लौदे हैं! मन में विचार आए, वह विचार अपने आप ही आते रहते हैं, उसे हम प्रतिक्रमण से धो डालें। फिर वाणी में ऐसा नहीं बोलना कि विषयों का सेवन बहुत अच्छा है और वर्तन में भी ऐसा मत रखना। स्त्रियों की ओर दृष्टि मत करना। स्त्रियों को देखना नहीं, छना नहीं। स्त्री को छ लिया हो तो भी मन में प्रतिक्रमण हो जाना चाहिए कि 'अरे, इसे कहाँ छूआ!' क्योंकि स्पर्श से विषय का असर होता है। प्रश्नकर्ता : उसे तिरस्कार किया नहीं कहलाता? दादाश्री : उसे तिरस्कार नहीं कहते। प्रतिक्रमण में तो हम उसके आत्मा से कहते हैं कि 'हमारी भूल हो गई, फिर से ऐसी भूल नहीं हो ऐसी शक्ति दीजिए।' उसीके आत्मा से ऐसा कहना कि मझे शक्ति दीजिए। जहाँ हमारी भूल हुई हो वहीं शक्ति माँगना ताकि शक्ति मिलती रहे। प्रश्नकर्ता : स्पर्श का असर होता है न? दादाश्री : उस घड़ी हमें मन संकुचित कर देना है। मैं इस देह से अलग हूँ, मैं चंद्रेश ही नहीं हूँ, यह उपयोग रहना चाहिए, शुद्ध उपयोग रहना चाहिए। कभी कभार ऐसा हो जाए तो शुद्ध उपयोग में ही रहना, मैं 'चंद्रेश' ही नहीं हूँ। स्पर्श सुख का आनंद लेने का विचार आए तो उसे आने से पहले ही उखाड़ फेंकना। यदि तुरंत उखाड़कर नहीं फेंका तो वह पहले सेकन्ड में वृक्ष बन जाता है, दूसरे सेकन्ड में हमें वह अपनी पकड़ में ले लेता है और तीसरे सेकन्ड में फांसी पर लटकने की बारी आ जाती है। ૩૨ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य हिसाब नहीं होता तो टच (स्पर्श) भी नहीं होता। स्त्री-पुरुष एक ही कमरे में हों फिर भी विचार तक नहीं आता। प्रश्नकर्ता : आपने कहा कि हिसाब है इसलिए आकर्षण होता है। तो वह हिसाब पहले से कैसे उखाड़ा जाए? दादाश्री : वह तो उसी समय, ओन द मोमेन्ट करें तो ही जाए ऐसा है। पहले से नहीं होगा। मन में विचार आए कि 'स्त्री के लिए पास में जगह रखें' तब तुरंत ही उस विचार को उखाड़ देना। 'हेतु क्या है' यह देख लेना। हमारे सिद्धांत के अनुरूप है या सिद्धांत के विरुद्ध है? सिद्धांत के विरुद्ध हो तो तुरंत ही उखाड़कर फेंक देना। प्रश्नकर्ता : मुझे स्पर्श करना ही नहीं है पर कोई लड़की आकर स्पर्श करे तो फिर मैं क्या करूँ? दादाश्री : ठीक है। साँप जान-बूझकर छूए उसे हम क्या करते हैं? स्पर्श करना कैसे भाए पुरुष या स्त्री को? जहाँ मात्र गंध ही है, वहाँ छूना कैसे अच्छा लगे? प्रश्नकर्ता : लेकिन स्पर्श करते समय इसमें से कुछ याद नहीं आता। दादाश्री : हाँ, वह याद कैसे आए पर? उस समय तो वह स्पर्श इतना पोइजनस (जहरीला) होता है कि मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार सभी के ऊपर आवरण आ जाता है। मनुष्य मुर्छित हो जाता है, मानों जानवर ही हो उस घड़ी! स्पर्श या ऐसा कुछ हो तब आकर मुझे बता देना, मैं तुरंत शुद्ध कर दूंगा। स्त्री अथवा विषय में रमणता करें, ध्यान करें, निदिध्यासन करें तब तो वह विषय की गाँठ पड़ जाती है। वह कैसे खतम हो? विषय के विरोधी विचारों से खतम हो जाए। दृष्टि बदले (खींचे) फिर रमणता शुरू होती है। दृष्टि बदले तो उसके
SR No.009580
Book TitleBrahamacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages55
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size47 KB
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