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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य २९ दादाश्री: आज तक जो भूलें हो गई हों उनका प्रतिक्रमण करना। और भविष्य में ऐसी भूलें नहीं हों ऐसा निश्चय करना। प्रश्नकर्ता : हमें सामायिक में जो दोष हुए हैं, वे बार-बार दिखते हों तो? दादाश्री : दिखें तब तक उसकी क्षमा माँगना, क्षमापना करना, उसके लिए पश्चाताप करना, प्रतिक्रमण करना। प्रश्नकर्ता : अभी सामायिक में बैठे, यह जो दिखा, फिर भी वही बार-बार क्यों आता है? दादाश्री : वह तो आएगा न, भीतर परमाणु हों तो आएगा, उसमें हमें क्या हर्ज है? समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य ही नहीं रहता न? दादाश्री: वह व्यवहार ही बंद हो जाता है। आलपिन और लोहचुंबक का संबंध ही खतम हो जाता है। वह संबंध ही नहीं रहता। उस गाँठ के कारण यह व्यवहार चलता है न! अब विषय स्थूल स्वभावी है और आत्मा सूक्ष्म स्वभावी है, ऐसा भान रहना बड़ा मुश्किल है। इसलिए एकाग्रता हुए बगैर रहती ही नहीं न! वह काम तो ज्ञानी पुरुष का है, दूसरे किसी का यह काम ही नहीं है। विषय की गाँठ बड़ी होती है, उसके उन्मूलन की बहुत ही आवश्यकता है। इसलिए कुदरती तौर पर हमारे यहाँ यह सामायिक खड़ा हो गया है! सामायिक करो, सामायिक से सब खतम हो जाएगा। कुछ करना तो पड़ेगा न? दादाजी हैं, तब तक सारा रोग निकाल देना पड़ेगा न? एकाध गाँठ ही भारी होती है, पर जो रोग है उसे तो निकालना ही पड़ेगा। उसी रोग के कारण ही अनंत जन्म भटके हैं। यह सामायिक तो किसलिए है कि विषय-भाव का बीज अभी तक गया नहीं है और उस बीज में से ही चार्ज होता है, उस विषय-भाव के बीज के उन्मूलन के लिए यह सामायिक है। ८. स्पर्श सुख की भ्रामक मान्यता प्रश्नकर्ता : वह आता है तो लगता है कि अभी धुला नहीं। दादाश्री : नहीं, वह माल तो अभी लम्बे समय तक रहेगा। अभी भी दस-दस बरस तक रहेगा, पर तुम्हें सब निकालना है। प्रश्नकर्ता : यह जो अंकुर रूप में ही उखाड़ फेंकने का विज्ञान है. कि विषय की गाँठ फटे तब दो पत्तियाँ आते ही उखाड़ फेंकना, तो जीत जाएँगे न? दादाश्री: हाँ, मगर विषय ऐसी वस्त है कि यदि उसमें एकाग्रता हो तो आत्मा को भूल जाते हैं। यह गाँठ नुकसानदायक है, वह इसी लिए कि यह गाँठ फूटे तब एकाग्रता हो जाती है। एकाग्रता हुई तो वह विषय कहलाता है। एकाग्रता हुए बगैर विषय कहलाता ही नहीं न। वह गाँठ फूटे तब इतनी जागति रहनी चाहिए कि विचार आने के साथ ही उसे उखाड़कर फेंक दे तो फिर वहाँ उसे एकाग्रता नहीं होती। यदि एकाग्रता नहीं है तो वहाँ विषय ही नहीं है, तब वह गाँठ कहलाती है और वह गाँठ खत्म होगी तब काम होगा। विषय की गंदगी में लोग पड़े हैं। विषय के समय उजाला करें तो खुद को भी अच्छा न लगे। उजाला हो तो डर जाए, इसलिए अंधेरा रखते हैं। उजाला हो तो भोगने की जगह देखना अच्छा नहीं लगता। इसलिए कृपालुदेव ने भोगने के स्थान के संबंध में क्या कहा है? प्रश्नकर्ता : 'वमन करने योग्य भी चीज़ नहीं है।' प्रश्नकर्ता : फिर भी स्त्री के अंग की ओर आकर्षण होने का क्या कारण होगा? दादाश्री : हमारी मान्यता, रोंग बिलीफ़ हैं, इस वजह से। गाय के अंग के प्रति क्यों आकर्षण नहीं होता है? केवल मान्यताएँ; और कुछ होता प्रश्नकर्ता : वह गाँठ खतम हो जाए तो फिर आकर्षण का व्यवहार
SR No.009580
Book TitleBrahamacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages55
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size47 KB
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