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________________ आत्मबोध आत्मबोध किसी को ये ज्ञान नहीं मिल सकता। क्योंकि ये टिकट उसकी पुण्य से मिलती है। ये हरेक के लिए नहीं है। ये तो पुण्य के बदले में मिलती है। ऐसे मुफ्त में नहीं मिलती। कोटि जन्म की पुण्यै हो, तब 'ज्ञानी पुरुष' के दर्शन होते हैं। ने ये अक्रम मार्ग खोल दिया है। हम उसके निमित्त बन गये हैं। ये अक्रम विज्ञान है, वो सब सफोकेशन को फ्रेकचर कर देता है। ये विज्ञान संपूर्ण विज्ञान है और प्रगट विज्ञान है। ये विज्ञान से ही भ्रांति टूट जाती है। सारी दुनिया को अनुकूल आये, ऐसा ये विज्ञान है, बिलकुल अविरोधाभासी है और सैद्धान्तिक है। पूरा सिद्धांत है इसमें और स्याद्वाद भी है, अनेकान्त है, किसी प्रकार का इसमें आग्रह नहीं है। प्रश्नकर्ता : यह ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमारे में क्या पात्रता होनी चाहिये? प्रश्नकर्ता : स्याद् को कोई वाद नहीं होना चाहिए। दादाश्री : हाँ, स्याद् में कोई वाद नहीं चाहिये, नहीं तो एकान्तिक हो जायेगा। ये तो अक्रम विज्ञान है, बिलकुल स्याद्वाद है। सब लोगों को, पारसी को, मुस्लिम को, सबको अनुकूल आता है। एकान्तिक का अर्थ ही संसार और स्याद्वाद, अनेकान्त उसका नाम ही मोक्षमार्ग। दादाश्री : हमको मिले वो ही आपकी पात्रता है। बाकी इस कलियुग में कोई पात्र ही नहीं है। 33% से पास होता है। यहाँ तो सब माईनसवाले ही आते है। इस काल में पात्रता कहाँ से लाये? आप मुझे मिले वो ही आपकी पात्रता है। नहीं तो आप कौन से आधार से मुझे मिले? कई लोग को तो मैं सीढ़ी में देखते ही कह देता हूँ कि ये यहाँ आ तो रहा है, लेकिन ये अंदर तक नहीं आ सकेगा। जिसकी पुण्यै हो, वो ही यहाँ आ सकेगा, दूसरा नहीं। शुक्लध्यान इस काल में नहीं है। लेकिन ये 'अक्रम मार्ग' है, अपवाद मार्ग है, इसलिए यहाँ शुक्लध्यान होता है। क्रमिक मार्ग' से इस काल में शुक्लध्यान नहीं होता। 'क्रमिक मार्ग' में अभी धर्मध्यान तक जा सकता है। कई लोग हमको पूछने लगे कि, 'आपने 'अक्रम मार्ग' क्यों निकाला?' तो हमने बोल दिया कि 'क्रमिक मार्ग' का बेसमेन्ट सड़ गया है, इसलिए कुदरत ने ही ये अक्रम मार्ग ओपन किया है। ये मैंने नहीं निकाला। क्रमिक मार्ग का बेसमेन्ट सड़ गया है याने क्या? मन-वचन-काया का एकात्मयोग जब तक है, तब तक क्रमिक मार्ग चल सकता है। मन-वचन-काया का एकात्मयोग, याने मन में जो है, वैसा ही वाणी से बोलता है और वैसा ही वर्तन करता है। ऐसा इस काल में है? मोक्ष में जाने के लिए दो रास्ते ही अलग हैं। मोक्ष के लिए त्याग करने की जरूरत नहीं है। त्याग तो हरेक आदमी से नहीं हो सकता है। वो तो किसी आदमी से ही त्याग हो सकता है। तो जिससे त्याग नहीं हो सकता, उसके लिए तो मोक्ष का दूसरा रास्ता तो है न? भगवान ने सब रास्ते रखे हैं। क्रमिक मार्ग में सब त्याग करते करते मोक्ष जाने का। यह अक्रम मार्ग है, इधर कुछ भी त्याग करने का नहीं है। - जय सच्चिदानंद प्रश्नकर्ता : किसी को भी नहीं। दादाश्री : इसलिए क्रमिक मार्ग आज नहीं चल सकता। तो कुदरत
SR No.009577
Book TitleAtmabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size91 KB
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