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________________ आत्मबोध ६३ तो कुछ धर्मध्यान हो जाये ऐसा करते हैं और आर्तध्यान न हो जाये ऐसा करते हैं। दादाश्री : आपकी बात बिलकुल सच्ची है। आर्तध्यान- रौद्रध्यान बिलकुल नहीं रहना चाहिए । कुछ न कुछ धर्मध्यान रहना चाहिये । लेकिन 'ज्ञानी पुरुष' मिल जाये तो मोक्ष की इच्छा करनी चाहिये। 'ज्ञानी पुरुष' मोक्ष दे सकते हैं। वो मोक्ष में ही रहते हैं। वैसे आम आदमी के जैसे ही दिखते है, लेकिन ये शरीर में वो रहते ही नहीं है, वो देह के पड़ौसी की तरह रहते हैं। वो मोक्ष दे सकते हैं। 'ज्ञानी पुरुष' नहीं मिले, तो कुछ न कुछ हेल्प लेनी चाहिए कि अपने को आर्तध्यानरौद्रध्यान नहीं हो। इसको ही भगवान ने 'धर्मध्यान' बोला है। आपको इसके आगे कुछ जरूरत हो तो हम बता देंगे। प्रश्नकर्ता: आकुलता न हो और निराकुलता रहे, वो ही चाहिये। दादाश्री : बस, बस, निराकुलता वो ही लक्ष्य चाहिये। बराबर है, निराकुलता ही माँगना, जगत सारा आकुल व्याकुल है। जगत के लोगों को निरंतर आकुलता व्याकुलता होती है, शांति नहीं रहती। वो अशांति में नये कर्म पाप के बांधते हैं और शांति हो तो फिर नये कर्म पुण्य के बांधते हैं। लेकिन कर्म बांधते ही हैं और ये महात्मा लोग हैं, उनको हमने 'ज्ञान' दिया है, ये लोग कर्म नहीं बांधते। ये खाना-पीना सब कुछ करते हैं लेकिन कर्म नहीं बांधते हैं। फिर आकुलता - व्याकुलता बिलकुल नहीं होती है, निरंतर आनंद रहता है। क्योंकि छोड़ने के थे अहंकार-ममता, वो छोड़ दिये और ग्रहण करने का था निज स्वरूप, वो ग्रहण कर लिया। जानने का था वो सब जान लिया। हेय, उपादेय, ज्ञेय सब पूरे हो गये। नहीं तो लाख अवतार त्याग करे तो भी आत्मा मिले ऐसी चीज नहीं है और 'ज्ञानी पुरुष' की कृपा से एक घंटे में आत्मा मिल जाती है, क्योंकि 'ज्ञानी पुरुष' को मोक्षदाता बोला जाता है, मोक्ष का दान देने को आये हैं, दान लेनेवाला चाहिये। आत्मबोध हम जो बोलते हैं, उसकी कीमत आपको समझ में आ गई होती तो आप हमें छोड़ते ही नहीं। लेकिन आपको कीमत समझ में नहीं आयी और समझ में नहीं आयेगी। प्रश्नकर्ता: अभी तो संसार का चक्कर है। ६४ दादाश्री : नहीं, संसार का चक्कर तो सब को होता है। लेकिन मिथ्यात्व ज्यादा बढ़ गया है। इससे सच्ची बात सुनने में आये तो भी समझ में नहीं आती। सच्ची बात, धर्म की बात, द्रष्टि में ही नहीं आती। दूसरी ट्रिक की सब बात समझ जायेगा। जिधर ट्रिक कम है, वो धर्म की पूरी बात समझ जाता है। आपके पास सरलता है ? कोमलता, मृदुता, मार्दवता वो सब है ? सरलता किसको बोली जाती है कि जैसा मोड़े ऐसा मुड़ जाता है। आप तो मशीन लाये तो भी नहीं मुड़ सकते हैं। फिर आप क्या करेंगे? प्रश्नकर्ता: हमें तो अभी मिथ्यात्व है न? दादाश्री : नहीं, मिथ्यात्व सब को होता है, लेकिन आपको तो मिथ्यात्व गुणस्थानक है। सबको तो मिथ्यात्व गुणस्थानक भी नहीं, अज्ञ गुणस्थानक है। क्योंकि आप तो जानता हैं कि मोक्ष है, मोक्ष का मार्ग है और वीतराग भगवान मोक्ष ले जानेवाले हैं। इतनी बात आपकी समझ में आ गई है और आपकी श्रद्धा में भी आ गयी है, तो आपको मिथ्यात्व गुणस्थानक हो गया है। दूसरे लोगों को तो मोक्ष में कौन ले जायेगा, वो भी मालूम नहीं। अरे, मोक्ष को समझता ही नहीं । क्या पसंद ? सीढ़ी या लिफ्ट ? प्रश्नकर्ता : मोक्ष में जाने के लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : भगवान ने गीता में, रामायण में बताया है कि मोक्ष में जाने के लिए आत्मा प्राप्त करना चाहिये। लेकिन आत्मा पुस्तक में नहीं लिखी जा सकती। अवर्णनीय है, अव्यक्तव्य है। 'ज्ञानी पुरुष' के पास
SR No.009577
Book TitleAtmabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size91 KB
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