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________________ आत्मबोध ५७ आत्मबोध हिन्दुस्तान में सभी प्रकार की विद्या है, ज्ञान नहीं है। कितने प्रकार की विद्या है और कितने प्रकार की अविद्या है, लेकिन वो ज्ञान नहीं है। प्रश्नकर्ता : ज्ञान तो विद्या-अविद्या से आगे की बात है न? दादाश्री: विद्या-अविद्या वो अहंकारी ज्ञान है और (आत्म)ज्ञान तो निरअहंकारी ज्ञान है। जहाँ तक अहंकारी ज्ञान है वो विद्या है। आप को कुछ भी अहंकारी ज्ञान है, वो सब विद्या है और निरअहंकारी ज्ञान तो ज्ञान है। उसका भेद तो समझना चाहिये कि ज्ञान क्या चीज है, विद्या क्या चीज है, अविद्या क्या चीज है? अविद्या से दुःख होता है और विद्या से सुख होता है और ज्ञान से हम 'खुद' ही होते हैं। ज्ञान-अज्ञान का भेद ! प्रश्नकर्ता : ज्ञान एक है कि अलग अलग है? दादाश्री: सभी जीवों के अंदर ज्ञान है, वो ज्ञान एक ही है। लेकिन निकलता सूर्य है वो भी सूर्य है और डूबता सूर्य है वो भी सूर्य है। वो सर्य तो एक ही है, ऐसे ही ज्ञान भी एक ही है। धर्म का ज्ञान है और अधर्म का भी ज्ञान है, लेकिन ज्ञान एक ही है। धर्म और अधर्म तो आपको लगता है, हमें ऐसा नहीं लगता। हम तो एक ही, ज्ञान ही देखते हैं। आपको तो द्वन्द्व है न? प्रश्नकर्ता : जो सत्मार्ग पर चलता है, उसको ज्ञान कहते हैं और जो कुमार्ग में चलता है, उसको अज्ञान कहते हैं। अज्ञान याने इनके पास ज्ञान नहीं है। दादाश्री : ऐसा भगवान ने नहीं बोला है। ज्ञान-अज्ञान का भेद किया है, वो कहाँ तक भेद है, उसको मैं बता दूँ। जो धर्म जानता है, अच्छे काम करता है वो भी ज्ञान है और जो बुरे काम करता है, वो भी ज्ञान है, लेकिन दोनों 'अज्ञान' ही हैं। आत्मा जान लिया, खुद को जान लिया, वो ज्ञान ही 'ज्ञान' है। ये ज्ञान-अज्ञान का भेद मैंने बताया। लेकिन अज्ञान ये भी ज्ञान है। प्रश्नकर्ता : जब अज्ञान ही रहे तो आत्मा क्या जानेगा? दादाश्री : नहीं, 'अज्ञान' वो कोई खराब चीज नहीं है, वो भी ज्ञान है। जैसे डूबता सूर्य है और निकलता सूर्य है, वो सूर्य ही है। आत्मा का स्वरुप जाना, वो ही 'ज्ञान' बोला जाता है। आत्मा का स्वरुप नहीं जाना, लेकिन बाकी सब चीज जाना तो फिर वो 'अज्ञान' बोला जाता है। आत्मा के अलावा सब चीज जाने तो वो 'अज्ञान' बोला जाता है। ऐसे इसका भेद बताया है, लेकिन जानपना (स्वयं को जानना) वो ज्ञान ही है और वो ही आत्मा है। ज्ञान है, वो ही आत्मा है, दुसरा कोई आत्मा नहीं। आत्मा ऐसे हाथ में पकड़ा जायें ऐसी चीज नहीं है। वो तो आकाश जैसा है। आकाश जैसा सूक्ष्म है। क्या आप 'अपने' धर्म में हो ? प्रश्नकर्ता : मनुष्य का लक्ष्य तो आत्मसाक्षात्कार ही है न? दादाश्री : हाँ, आत्मसाक्षात्कार के लिए ही ये मनुष्य देह मिला है और वो भारत में ही होना चाहिए, दूसरी जगह पर नहीं। भारत के अलावा दूसरे सभी देशों के लोग पुनर्जन्म भी नहीं समझते हैं। भारत देश में पुनर्जन्म खुद तो समझ जाते हैं, लेकिन दूसरों को नहीं समझा सकते है कि पुनर्जन्म है। प्रश्नकर्ता : गीता में कहा है कि, मझे तत्त्व से जो कोई जानेसमझे तो फिर उसका पुनर्जन्म नहीं होता। दादाश्री : हाँ, वो क्या बोलते हैं कि 'मेरे को तत्त्व से जो जानता है, उसको पुनर्जन्म नहीं होता है।' तत्त्व को जानने से सब वीकनेस चली जाती है, क्रोध-मान-माया-लोभ सब चले जाते हैं। गीता आपने पढ़ी है? उसमें बताया है न कि, "सर्वधर्मान् परित्यज्य, माम् एकम् शरणम् व्रज।" वो कौन से
SR No.009577
Book TitleAtmabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size91 KB
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