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________________ E आत्मबोध आत्मबोध है। वो प्रकाश नहीं है। प्रकाश तो ये है कि, 'मैं खुद आत्मा हूँ, शुद्धात्मा हूँ' और इससे प्रकाश हो जाता है। उस प्रकाश से सब देख सकते हैं। दादाश्री : तो आप आत्मा नहीं है, आप रवीन्द्र हो गये। जो आत्मा है, तो इसको गाली नहीं लगती। पुद्गल की डाक आत्मा लेनेवाला नहीं है। आत्मा की डाक पुद्गल लेनेवाला नहीं। दोनों की डाक अलग है। हमको कोई गाली दे, कुछ भी करे, तो वो हम नहीं है। वो पुद्गल है, A.M.Patel है। ये A.M.Patel के साथ हमारा छब्बीस साल से क्या संबंध है? पहला पडौसी हो ऐसा। और उसका मालिक मैं नहीं हूँ, मेरा मालिक ये पुद्गल नहीं है, हम दोनों पडौसी हैं। हम देखकर बोलते हैं, पुस्तक में पढ़कर नहीं बोलते हैं। हमको लोग पूछते है कि, आप कहाँ से बोलते हैं। मैंने कहा कि मैं देखकर बोलता हूँ। ये बात, इधर का एक शब्द भी पुस्तक में से पढा हुआ नहीं है। ये 'अक्रम विज्ञान' है। दुनिया में दस लाख साल में एक दफे होता है। नहीं तो, ऐसा अक्रम तो होता ही नहीं। इसमें तप-त्याग कुछ करने का नहीं। 'अक्रम ज्ञानी' के पास आ गया, उसका सब काम पूरा हो गया। ये बोलता है, वह कौन है? ये ओरिजिनल टेपरेकर्ड है। हम इस वाणी के छब्बीस साल से मालिक नहीं हैं। हम खुद में ही रहते हैं, होम डिपार्टमेन्ट में ही रहते है। फोरेन डिपार्टमेन्ट में जाते ही नहीं। फोरेन की बात चल रही है. वो सब हम देख रहे हैं। व्यवहार में सब फोरेन ही है। प्रश्नकर्ता : व्यवहार में सब फोरेन कैसे है? दादाश्री : वो सब फोरेन ही है। आप फोरेन को होम मानते हैं। लेकिन वो तो फोरेन है, तो होम का काम कब होगा? हम तो होम में रहते हैं और फोरेन का भी काम करते हैं। अभी फोरेन का काम चल रहा है, इसके पर हम देखभाल रखते हैं। निरीक्षक रहते हैं और परीक्षक भी रहते हैं। ये टेपरेकर्ड क्या बोल रही है, उसके हम परीक्षक भी हैं। हम जुदा, ये जुदा। महत्वता, भौतिक ज्ञान की या स्वरूप ज्ञान की ? आप जिसको ज्ञान कहते हैं, वो लाइट सच्ची लाइट नहीं गीनी जाती है। सच्ची लाइट हो जाती है, तो उसके पर सब को आकर्षण हो जाता है और कायम की अंतर शांति भी हो जाती है। इसलिए पहले आत्मा का ही ज्ञान जानना। दूसरा सब जानते हैं तो ठीक बात है पर पहले ये लाइट हो गयी तो सभी (प्रकार के ज्ञानप्राप्ति की) तैयारी हो जाती है। तुम्हारे को जो जानने का था, वो सब ज्ञान अभी खुल्ला (प्रकट) हो जायेगा। लेकिन सच्चा जानने का क्या था? अपना खुद का स्वरूप, वो ही प्रकाश है और दुनिया में उस प्रकाश से ही सब दिखता है और प्रकाश के बिना जो देखा, वो बुद्धि से देखा है। प्रकाश से देखी हुई बात सच्ची है। बुद्धि से देखी हुई बात सच्ची नहीं है। बुद्धि जो बढ़ गई तो बुद्ध हो जाता है। फिर एकदम बुद्ध की तरह फिरता है। इसलिए बुद्धि का बहुत फायदा नहीं। हमने बुद्धि छोड़ दी, हम अबुध है। हमको बुद्धि इतनी भी नहीं है, हम तो 'ज्ञानी' है। बुद्धि से क्या होता है? इमोशनल होता है। फिर इमोश्नल से आदमी बुद्धू हो जाता है। बुद्धि संसार के बाहर निकलने नहीं देती। बुद्धि तो क्या बताती है? मुनाफा और घाटा। ज्ञानप्रकाश ही सच्ची बात है। हमने आपको जो ज्ञानप्रकाश दिया है, उससे आपको दूसरा सब ज्ञान हाथ में आ जायेगा और वो सब पूरा हो जायेगा। प्रश्नकर्ता : मुझे Numerology, Astrology का ज्ञान थोड़े समय में खुलनेवाला है, ऐसा मुझे लगता है। दादाश्री : आत्मा का ज्ञान खुल (प्रकट हो) जाये तो सब ज्ञान खुल जाते हैं। आत्मा का ज्ञान वो ही ज्ञान है, वो ही प्रकाश है, जिससे सब प्रकाश हो जाता है। Numerology, Astrology वो सब सब्जेक्ट
SR No.009577
Book TitleAtmabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size91 KB
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