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________________ आत्मबोध आत्मबोध दादाश्री : इन्सान तो ये शरीर को कहते हैं। चार पैर हो तो पशु कहते हैं। तो आप खुद कौन हैं? प्रश्नकर्ता : रवीन्द्र ही हूँ। पहचान के लिए दिया हुआ नाम है। दादाश्री : आपका नाम रवीन्द्र है, ये तो हम भी कबूल करते हैं। जैसे कोई दुकान का बोर्ड हो कि जनरल ट्रेडर्स, तो उसके मालिक को हम बुलायें कि 'हेय, जनरल ट्रेडर्स इधर आओ।' तो कैसा होगा? रवीन्द्र तो आपको पहचानने का बोर्ड है। आप खुद कौन हैं? 'मेरा नाम रवीन्द्र' और 'मैं रवीन्द्र', इसमें कोई फर्क लगता है क्या? जैसे 'ये शरीर मेरा है' ऐसा कहते हो कि 'मैं शरीर हूँ' ऐसा कहते हो? प्रश्नकर्ता : 'मेरा शरीर है' ऐसा कहूँगा। दादाश्री : 'मेरा माइन्ड' कहते हो कि 'मैं माइन्ड हूँ' कहते हो? प्रश्नकर्ता : 'मेरा माइन्ड' कहता हूँ। दादाश्री : और स्पीच? प्रश्नकर्ता : 'मेरी स्पीच' कहता हूँ। दादाश्री : इसका मतलब ये कि आप माइन्ड, स्पीच और शरीर के मालिक हैं, तो आप खुद कौन हो? इसकी तलाश की है या नहीं? शादी की तब औरत तलाश करके लाये थे कि नहीं? तो खुद की ही तलाश नहीं की? ये सब तो रिलेटिव है और आप खद रीयल है। All these Relatives are temporary adjustments and Real is Permanent. को रीयलाइज करने की है और उसके लिए सबसे पहले जगत को भूलना है। दादाश्री : हाँ, जगत विस्मृत करने का है, लेकिन वो पहले भूला नहीं जा सकता है न?! भगवान का रीयलाइजेशन हो गया तो जगत भूल जायेगा। हमको फोरेनवाले बोलते हैं कि, भगवान की पहचान करने के लिए शोर्टकट बता दो। तो हमने बताया कि separatel and My with separator! _ 'I' कौन ? 'My' क्या ? आप जो 'I' बोलते है, वो सच्ची बात नहीं है। कोई पूछे कि 'रवीन्द्र कौन है?' तो पहले आप बोलते हैं कि 'मैं रवीन्द्र हूँ।' फिर पूछे कि 'रवीन्द्र किसका नाम है?' तो आप बोलते है कि 'मेरा नाम है।' यह विरोधाभास लगता नहीं आपको? ये सब विरोधाभास है, तो separate 'T' & 'My'. पहले ये पाँव अलग रख दिया, 'माय फीट', फिर हाथ अलग रख दिया, 'माय हेन्ड'। फिर सर अलग रख दिया, 'माय हेड' और 'माय माइन्ड' बोलते हैं कि 'मैं माइन्ड हूँ' बोलते हैं? प्रश्नकर्ता : 'My Mind'. दादाश्री : तो उसको भी दूर रखने का। 'माय ईगोइज्म' बोलते है कि 'मैं ईगोइज्म हूँ' बोलते हैं? प्रश्नकर्ता : 'My Egoism.' दादाश्री : तो उसको भी दूर रखने का। फिर 'मैं बुद्धि हूँ' ऐसा बोलते हैं कि 'मेरी बुद्धि' ऐसा बोलते हैं? प्रश्नकर्ता : 'My Intellect.' दादाश्री : तो उसको भी दूर रखने का। मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार रीयल बात एक दफे करो तो फिर सभी पज़ल सोल्व हो जाते हैं। भगवान को पहचानने के लिए एक ही रीत नहीं है, दूसरी भी बहुत रीत है। प्रश्नकर्ता : जगत में सबसे बडी डिफिकल्टी होगी तो वह भगवान
SR No.009577
Book TitleAtmabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size91 KB
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