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________________ सबसे सरल कोई चीज़ हो तो मोक्षमार्ग! बैल खेत में से घर सरलता से जाता है और खेत में खींचकर ज़बरदस्ती ले जाना पड़ता है। मोक्ष तो खुद का ही घर है। संसार जुताई किया जानेवाला खेत है। वहाँ पर ही भयंकर कष्ट, विघ्न और विकल्प हैं। खुद के घर में निर्विकल्प दशा है, परमानंद है, अक्रियता है! 'आत्मा' निरंतर मुक्त ही है, कभी भी बंधा ही नहीं। भ्रांति से बंधन भासित होता है। ज्ञानी' कृपा से भ्रांति खत्म होते ही मुक्तता का भान होता है! क्या फल? उपवास और कषाय साथ में रहें, वह भयंकर नुकसान करवाता है। दो बजे तक भोजन नहीं मिले तब मन से कह देना कि आज उपवास है और वहाँ समता में रहे उसके जैसा एक भी उपवास नहीं है! [२२] लौकिक धर्म धर्म में सूक्ष्म इच्छाओं का भी वास रहा हो वह धर्म, धर्म नहीं है, व्यापार है!!! 'रिलेटिव' में कमाए, वह 'रियल' में लुट जाता है। धर्म में लूटबाजी नहीं चलती। उसके जोखिम तो कल्पना से बाहर है। साधना के सिद्धांत समझे बिना तो साधक क्या साधना करे? मोक्ष और पक्ष दोनों विरोधाभासी हैं। वीतराग वाणी के सिवाय और कोई उपाय नहीं है। प्रत्यक्ष ज्ञानी के बिना मोक्ष संभव नहीं है। [२३] मोक्ष प्राप्त करना, ध्येय सिद्ध दशा अर्थात् परमात्मस्वरूप की स्थिति। वहाँ करने को कुछ भी नहीं है। ज्ञाता-दृष्टा और परमानंद, वह उनकी स्वाभाविक दशा! वहाँ सिद्धगति के अनंत सुख का निरंतर वेदन करना होता है। मोक्ष अर्थात् मुक्त भाव। पहले संसारी दुःखों से मुक्ति फिर सर्व कर्मों से मुक्ति। जो मुक्तपुरुष हों, उनके पास से मुक्ति मिलती है। जहाँ किसी भी प्रकार की भीख नहीं, लक्ष्मी, कीर्ति, विषय, शिष्य, मंदिर, मान की, वहाँ जगत् की तमाम सत्ता झुकती हैं! समझ बिना भूल की हो जाए तब मोक्ष होता है। देह में आत्मबुद्धि, वह संसार और आत्मा में आत्मबुद्धि वह मोक्ष। मोक्ष, वह जाने की, प्राप्त करने की, या कोई स्थिति नहीं है। वह तो खुद का स्वभाव ही है। खुद मोक्ष स्वरूप ही है, मात्र उसका भान भूला हुआ है। 'ज्ञानी पुरुष' खुद के स्वरूप का स्वभाव का भान करवाते हैं। वहाँ से मोक्ष का अनुभव शुरू होता है! [२४] मोक्षमार्ग की प्रतीति! मोक्ष प्राप्त करने का: धर्म कौन-सा? : आत्मधर्म! वेश कौन-सा? : चाहे जो! कौन-से स्थानक में? : वीतराग स्थानक में! कौन-सी दशा में? : वीतराग दशा में! कौन-से संप्रदाय में? : निष्पक्ष है, वहाँ! सद्गुरु की पहचान क्या? : निशदिन आत्मा का उपयोग, अपूर्व, बेजोड़ फिर भी अनुभवगम्य वाणी ! प्रतीति क्या? : वहाँ आत्मा स्थिर हो। लक्षण क्या? : कषाय रहित परिणाम। इस काल में अस्ति कहाँ? :: संपूज्य श्री दादाश्री! प्राप्ति किस तरह? : परम विनय से। सम्यकत्व की प्राप्ति कहाँ से? : कषाय रहित सद्गुरु से। धर्म किस तरह होता है? : कषाय रहित सद्गुरु से। धर्म का साधन क्या? : उपादान की जागृति। धर्म किसे कहें? : कषायों का कम होना, वह। मोक्ष का सरल उपाय? : कषाय रहित 'ज्ञानी' की सेवा। ३५ ३६
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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